राजस्थान सरकार ने सरपंच-पार्षद चुनाव की योग्यता में किया बड़ा बदलाव!: अब पढ़े-लिखे लोग ही लड़ सकेंगे चुनाव, हजारों नेताओं की कुर्सी खतरे में? जानें फैसले की वजह
राजस्थान सरकार ने सरपंच-पार्षद चुनाव की योग्यता में किया बड़ा बदलाव!

जयपुर: राजस्थान सरकार ने पंचायत और निकाय राजनीति में बड़ा बदलाव किया है। साल 2025 में होने वाले पंचायती राज और शहरी निकाय चुनावों से पहले सरकार ने साफ संकेत दे दिए हैं कि अब बिना पढ़े-लिखे नेता राजनीति में नहीं चलेंगे। सरकार ने पंचायती राज और नगर निकाय कानून में बड़ा संशोधन तैयार कर लिया है, जिसके लागू होते ही हजारों नेता चुनाव लड़ने की योग्यता खो देंगे।

जानें क्या है नया नियम? किस पर गिरेगी गाज?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सरकार ने निम्नलिखित बदलाव किया है।

सरपंच चुनाव: कम से कम 10वीं पास अनिवार्य

नगर निकाय पार्षद: 10वीं या 12वीं पास होना जरूरी

आदिवासी क्षेत्र: पहले 5वीं योग्यता थी, अब बढ़ेगी।

जिला परिषद सदस्य, प्रधान, अध्यक्ष: यह सब पर लागू।

यानी अगली बार पंचायत भवन से लेकर नगर परिषद तक बिना शैक्षणिक योग्यता कोई नेता मैदान में उतर ही नहीं सकेगा।

2015 की तरह एक बार फिर बड़ा बदलाव; लेकिन इस बार और सख्त:

आपको बता दें कि 2015 में वसुंधरा राजे सरकार ने पहली बार शैक्षणिक योग्यता लागू की थी

  • सरपंच: 8वीं पास

  • पार्षद: 10वीं पास

  • आदिवासी सरपंच: 5वीं पास

अब गहलोत सरकार गई, नई सरकार आई लेकिन योग्यता इससे भी आगे बढ़ाने की तैयारी है।

राज्य में राजनीतिक भूचाल; क्योंकि हजारों नेताओं का भविष्य दांव पर:

विदित है कि स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि “प्रस्ताव तैयार है, जल्द ही कानून में संशोधन लाया जाएगा।” मतलब अब बिना पढ़े-लिखे सरपंच चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। पार्षद पद भी अब ‘योग्य उम्मीदवार’ की मांग करेगा। इसके साथ ही जिला प्रमुख, सभापति, नगर अध्यक्ष भी पात्रता से बाहर हो सकते हैं।

अगले विधानसभा सत्र में आएगा विधेयक:

गौरतलब है कि सरकार पंचायती राज अधिनियम और नगर पालिका अधिनियम में संशोधन के लिए विधेयक लाने जा रही है। विधेयक पास होते ही राज्य निर्वाचन आयोग इस नियम को लागू करते हुए चुनाव प्रक्रिया शुरू करेगा।

क्या बदलने वाला है? आम जनता पर क्या असर?

  1. राजनीति में शिक्षित नेतृत्व आएगा
    ग्राम पंचायतों में कच्ची दीवार, अधूरे काम, भ्रष्टाचार; इन सब पर रोक लगने की उम्मीद है।

  2. कई मौजूदा नेताओं के लिए खतरे की घंटी
    जो सरपंच बिना पढ़े-लिखे राजनीति में थे; अब चुनाव लड़ने की योग्यता ही खत्म होगी।

  3. पंचायतों में प्रबंधन और डिजिटल कार्य क्षमता बढ़ेगी
    यह फैसला स्मार्ट पंचायत की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा।

  4. विपक्ष में हलचल
    कई दल इसे “गरीबों के अधिकार छीनने वाला फैसला” बता रहे हैं।

राजस्थान सरकार के इस प्रस्ताव ने पंचायत स्तर पर राजनीति की तस्वीर बदलने की नींव रख दी है। अब सवाल यह है कि क्या राजनीति में शिक्षित नेतृत्व की ये नई शर्तें विकास का रास्ता खोलेंगी या गरीब और कम शिक्षित वर्ग की भागीदारी कम कर देंगी? जवाब विधानसभा के अगले सत्र के साथ सामने आएगा।

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