जानें क्यों जरूरी हैं आतंक के खिलाफ लड़ाई में सैन्य कार्रवाई के साथ कूटनीतिक कार्रवाई!: भारत-पाक के बीच शांति ही क्यूँ है सबसे उचित विकल्प, जानें क्या कहते हैं रक्षा एक्सपर्ट्स
जानें क्यों जरूरी हैं आतंक के खिलाफ लड़ाई में सैन्य कार्रवाई के साथ कूटनीतिक कार्रवाई!

नई दिल्ली: पहलगाम हमले की बदले की आग में जलते भारत ने जब ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान के आतंकी ढांचे पर सीधा वार किया, तो पूरी दुनिया सन्न रह गई। लेकिन इसके महज पांच दिन बाद 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच अचानक शांति की सहमति ने कई सवाल खड़े कर दिए। आखिर क्यों हथियारों की गूंज के बाद बातचीत का दौर आया? क्या भारत झुक गया या फिर ये एक गहरी कूटनीतिक चाल थी?

इस पूरे घटनाक्रम को लेकर बड़े अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों ने जो अंदरूनी तस्वीर दिखाई और कारण बताया उससे ये पता चलता कि सिर्फ बंदूक से नहीं कूटनीति से भी युद्ध जीतनी पड़ती है।

भारत बुद्ध और गांधी का देश है, जंग हमारी नीति नहीं :

एक रिपोर्ट के अनुसार वरिष्ठ रणनीतिक विश्लेषक कमर आगा ने कहा कि भारत की नीति हमेशा से युद्ध से बचने की रही है। हम दुनिया को शांति का संदेश देते हैं और यही वजह है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने सैन्य सफलता के बावजूद कूटनीतिक मोर्चा मजबूत किया। उन्होनें कहा कि :

"पाकिस्तान की आदत है कि जैसे ही बातचीत किसी ठोस मुकाम पर पहुंचती है, वो एक आतंकी हमला करता है। मुंबई, उरी, पुलवामा... और अब पहलगाम। लेकिन इस बार भारत ने जवाब भी दिया और संयम भी रखा।"

आगा मानते हैं कि पाकिस्तान को टेरर और टॉक साथ नहीं चल सकते, ये साफ तौर पर समझना होगा। सीजफायर की स्थिति को बनाए रखना और साथ ही पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना ही फिलहाल सबसे व्यावहारिक रास्ता है।

"ऑपरेशन के बाद असली लड़ाई डिप्लोमेसी की होती है" :

आपको बता दें कि विश्लेषक ओमैर अनस इस मुद्दे पर कहते हैं कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर से यह साबित कर दिया कि वह आतंकी हमलों को बर्दाश्त नहीं करेगा, लेकिन युद्ध का विकल्प हमेशा अंतिम होता है। उनका कहना है कि :

"अब असली मोर्चा डिप्लोमेसी का है। हमें पाकिस्तान के प्रोपेगेंडा को वैश्विक मंचों पर चुनौती देनी होगी। जो देश पाकिस्तान के साथ रिश्ते रखते हैं—जैसे सऊदी, यूएई, टर्की—उनसे भारत को ज्यादा प्रभावशाली संवाद बनाना होगा।"

उन्होंने चेताया कि पाकिस्तान को पूरी तरह आइसोलेट नहीं किया जा सकता, पर उसे वैश्विक स्तर पर बेनकाब करना अब भारत की डिप्लोमेटिक मशीनरी की परीक्षा है।

"हम इजरायल नहीं, हमारी लड़ाई अलग ढंग से लड़ी जाती है" :

गौरतलब है कि पॉलिसी एक्सपर्ट अमिताभ सिंह मानते हैं कि भारत की स्थिति विशिष्ट है—हमारे पास इजरायल जैसा अमेरिका का खुला समर्थन नहीं और न ही चीन जैसी असीम वित्तीय ताकत। ऐसे में भारत को डिप्लोमेसी के जरिए ही पाकिस्तान को घेरना होगा।
उन्होंने आगे कहा कि :

 "हमने ऑपरेशन करके अपनी ताकत दिखाई। अब पाकिस्तान को ये समझाना जरूरी है कि हम शांत हैं, लेकिन कमजोर नहीं। ताली दोनों हाथों से बजती है, पाकिस्तान को भी अपनी सोच बदलनी होगी।"

वो मानते हैं कि पाकिस्तान की राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व की खींचतान के चलते कोई स्थाई समाधान अभी नहीं दिखता, लेकिन शांति को एक रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करना ही भारत का सबसे मजबूत दांव हो सकता है।

ऑपरेशन सिन्दूर से दिया दुनिया को संदेश:

आपको बता दें कि जहां एक ओर सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे कदम भारत की नई सैन्य सोच को दर्शाते हैं, वहीं दूसरी ओर ऑपरेशन सिंदूर के बाद बातचीत की पहल इस बात का संकेत है कि भारत अब युद्ध नहीं, असरदार दबाव की भाषा बोलता है।

ये शांति सिर्फ एक मजबूरी नहीं, बल्कि एक रणनीतिक विकल्प है, जो पाकिस्तान को सैन्य मोर्चे पर मात देने के साथ-साथ वैश्विक मंच पर अलग-थलग भी करता है।

युद्ध से नहीं, अब रणनीति से होगा भारत-पाक विवाद का समाधान:

भारत ने ऑपरेशन सिंदूर से अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है कि आतंक पर वार भी होगा, लेकिन दिमाग से। डिप्लोमेसी, ग्लोबल दबाव और संयम की नीति अब भारत की नई युद्ध नीति बनती दिख रही है।

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