दृष्टि-IAS; इस मामले को लेकर विकास दिव्यकीर्ति की बढ़ सकती हैं मुश्किलें!: अजमेर कोर्ट के आदेश के खिलाफ पहुंचे हाईकोर्ट, इस दिन होगी सुनवाई...जानें क्या हैं पूरा मामला
दृष्टि-IAS; इस मामले को लेकर विकास दिव्यकीर्ति की बढ़ सकती हैं मुश्किलें!

जयपुर : देश के चर्चित कोचिंग संस्थान दृष्टि IAS के संचालक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति अब एक गंभीर कानूनी संकट में घिरते नजर आ रहे हैं। जजों पर कथित अपमानजनक टिप्पणी मामले में अजमेर कोर्ट के आदेश के खिलाफ दिव्यकीर्ति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, और अब यह विवाद एक राष्ट्रीय बहस का रूप ले चुका है।

क्या कहा हाईकोर्ट ने?

आपको बता दें कि राजस्थान हाईकोर्ट ने विकास दिव्यकीर्ति की अपील को स्वीकार करते हुए 21 जुलाई को सुनवाई की तारीख तय की है। यानि अब यह तय होगा कि डॉ. दिव्यकीर्ति की "बोलने की आज़ादी" कहाँ तक सीमित है। उनके वकील पुनीत सिंघवी का कहना है कि - "हमने किसी की भावना को ठेस नहीं पहुंचाई। जो क्रिमिनल प्रोसिडिंग्स अजमेर कोर्ट ने शुरू की हैं, वे पूरी तरह गलत हैं।"

कैसे शुरू हुआ विवाद?

गौरतलब है कि विवाद की जड़ है डॉ. दिव्यकीर्ति का एक लोकप्रिय वीडियो शो, जिसमें उन्होंने "IAS बनाम जज – कौन ज्यादा ताकतवर?" विषय पर चर्चा की थी। इसमें दिव्यकीर्ति ने कहा था कि – "IAS अधिकारियों के पास निर्णय की व्यापक शक्तियां होती हैं, जबकि जजों का अधिकारक्षेत्र सीमित होता है।"
इस बयान को "न्यायपालिका का अपमान" बताते हुए वकील कमलेश मंडोलिया ने अजमेर कोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर किया। इसके बाद कोर्ट ने 40 पन्नों के आदेश में केस को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिव्यकीर्ति को 22 जुलाई को पेश होने का आदेश दिया।

कोर्ट की टिप्पणी और नोटिस :

आपको बता दें कि अजमेर न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-2 के न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने टिप्पणी की कि – "वीडियो में की गई टिप्पणियां न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली प्रतीत होती हैं।" कोर्ट ने दिव्यकीर्ति को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का नोटिस जारी किया है।

क्या बोले विकास दिव्यकीर्ति?

विदित है कि हालांकि दिव्यकीर्ति की ओर से अब तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं आया है, लेकिन उनके वकील का दावा है कि - "विवादित वीडियो में न तो किसी विशेष जज का नाम लिया गया, और न ही किसी संस्था का अपमान किया गया। यह केवल छात्रों को समझाने की एक शैक्षिक शैली थी।"

सामाजिक बहस: बोलने की आज़ादी बनाम कोर्ट सम्मान?

आपको बता दें कि यह मामला अब केवल एक लीगल लड़ाई नहीं, बल्कि एक गहरी चर्चा का रूप ले चुका है कि क्या शिक्षा-जगत की आलोचना या तुलना को मानहानि माना जा सकता है? क्या लोकतंत्र में आलोचना की सीमा तय होनी चाहिए? क्या यह मामला बोलने की आज़ादी की सीमाओं की परीक्षा है?

जाने अब आगे क्या?

गौरतलब है कि अब इस मामले की 21 जुलाई को हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। साथ ही 22 जुलाई को अजमेर कोर्ट में पेशी की तारीख भी पहले आ चुकी है। दोनों जगहों से आने वाले आदेश तय करेंगे कि विकास दिव्यकीर्ति के खिलाफ मुकदमा चलेगा या वे निर्दोष साबित होंगे

जहां एक ओर दिव्यकीर्ति के समर्थक इस कार्रवाई को शिक्षा पर हमला बता रहे हैं, वहीं न्यायिक समुदाय इसे अपने सम्मान की रक्षा का सवाल मान रहा है। अब निगाहें हाईकोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं जहां ये तय होगा कि डॉ. दिव्यकीर्ति सिर्फ एक शिक्षक के तौर पर कानून के दायरे से बाहर बोल गए हैं या वो निर्दोष है।

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