स्कूल, अस्पताल और सड़कों से हटेंगे आवारा कुत्ते!: जानें क्या हैं सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी; 8 हफ्तों में हटाएं सभी आवारा पशु, जिम्मेदारी होगी तय वही?
स्कूल, अस्पताल और सड़कों से हटेंगे आवारा कुत्ते!

समाज: सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की सरकारों को सख्त निर्देश दिए, 8 हफ्तों में सभी स्कूल, अस्पताल, रेलवे स्टेशन और सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों और पशुओं को हटाकर शेल्टर में भेजा जाए। आदेश न मानने पर अधिकारियों की व्यक्तिगत जवाबदेही तय की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या है?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिसमें राज्य सरकारों, नगर निगमों और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को निर्देश दिया गया है कि देशभर के शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, सार्वजनिक पार्कों और हाईवे से आवारा कुत्तों और अन्य पशुओं को हटाया जाए।

कोर्ट ने स्पष्ट कहा “सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है। लोगों, विशेषकर बच्चों और मरीजों को डर के माहौल में जीने पर मजबूर नहीं किया जा सकता।”

इस आदेश के तहत सभी आवारा कुत्तों को 8 हफ्तों के भीतर पहचान कर सुरक्षित शेल्टरों में भेजना होगा, ताकि वे सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर न रहें।

आदेश के मुख्य बिंदु:

  1. समयसीमा: 8 हफ्तों में कार्रवाई पूरी होनी चाहिए।

  2. स्थान: स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, बस अड्डे, रेलवे स्टेशन, हाईवे, सरकारी परिसर।

  3. जवाबदेही: मुख्य सचिव, नगर निगम आयुक्त, जिला अधिकारी और NHAI के अधिकारी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार रहेंगे।

  4. वापसी नहीं: जिन क्षेत्रों से आवारा कुत्तों को हटाया जाएगा, उन्हें दोबारा उसी स्थान पर नहीं छोड़ा जा सकेगा।

  5. हाईवे अभियान: सड़कों और एक्सप्रेसवे पर पशु हटाने की संयुक्त ड्राइव राज्य सरकारें व NHAI मिलकर चलाएंगे।

क्यों जरूरी पड़ा यह फैसला?

• पिछले कुछ वर्षों में देशभर में कुत्तों के काटने की घटनाएँ तेजी से बढ़ी हैं।
• 2024 में ही करीब 18 लाख लोग डॉग-बाइट के शिकार हुए, जिनमें से अधिकांश बच्चे थे।
• रैबीज (Rabies) के कारण हर साल लगभग 20 हजार मौतें होती हैं (WHO India Report)।
• कई अस्पतालों, स्कूलों और हाउसिंग सोसाइटियों से लगातार शिकायतें आ रही थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा “सरकारों की लापरवाही अब असहनीय है। यह न केवल नागरिकों की सुरक्षा का मामला है, बल्कि प्रशासन की कार्यक्षमता की परीक्षा भी।”

कानूनी पृष्ठभूमि (Background):

यह आदेश किसी एक दिन में नहीं आया। 2015 और 2022 में भी सुप्रीम कोर्ट ने Animal Birth Control (Dogs) Rules के तहत निर्देश दिए थे कि आवारा कुत्तों की नसबंदी कर उन्हें उसी इलाके में छोड़ा जाए।

लेकिन इन नियमों के बावजूद स्थिति नहीं सुधरी। बढ़ती घटनाओं और कई जनहित याचिकाओं (PILs) के बाद कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। इस बार कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संवेदनशील क्षेत्रों (जैसे स्कूल, अस्पताल, स्टेशन) पर अब यह “वापसी नियम” लागू नहीं होगा।

भारत में आवारा कुत्तों की स्थिति:

भारत में आवारा कुत्तों की संख्या: करीब 1.8 से 2 करोड़ (स्रोत: NDDB, WHO India, 2023–24)
 सबसे प्रभावित राज्य: यूपी, महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु और कर्नाटक
हर साल 25 लाख से अधिक काटने के मामले दर्ज (स्वास्थ्य मंत्रालय डेटा)
 रैबीज से 18–20 हजार मौतें प्रतिवर्ष (WHO India रिपोर्ट)
 केवल 35–40% कुत्तों को अब तक टीका लग पाया है
 Animal Birth Control (ABC) Rules, 2023 के तहत नसबंदी कार्य 50% से कम पूरा
शहरी कचरा और खुला भोजन उनकी संख्या बढ़ाने का मुख्य कारण
 नगर निगमों के पास पर्याप्त शेल्टर नहीं, जिससे संकट और बढ़ा
 गांवों में व्यवहार शांत, लेकिन शहरों में वे अधिक आक्रामक
 जन-जागरूकता की कमी - पालतू रजिस्ट्रेशन, वैक्सीनेशन की जानकारी नहीं

कुत्तों को कहाँ और कैसे भेजा जाएगा?

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सभी कुत्तों को अस्थायी पशु आश्रय गृह (shelters) में रखा जाए। वहाँ उनका वैक्सीनेशन, स्टेरिलाइजेशन (नसबंदी) और स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाए। किसी भी स्थिति में उन्हें संवेदनशील सार्वजनिक स्थानों पर वापस नहीं छोड़ा जाए।

पशु अधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया:

जहाँ एक ओर लोग इसे “सुरक्षा की दिशा में बड़ा कदम” मान रहे हैं, वहीं पशु-अधिकार समूहों (PETA, People for Animals आदि) ने इसे “अवैज्ञानिक और अमानवीय” बताया है। उनका कहना है “कुत्ते भी समाज का हिस्सा हैं, उन्हें हटाने से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि cruelty बढ़ेगी।”

वहीं कोर्ट ने स्पष्ट कहा “यह कदम कुत्तों के खिलाफ नहीं, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा के हित में है। हर पशु को भोजन और आश्रय का अधिकार है, लेकिन वह मानव जीवन को खतरे में नहीं डाल सकता।”

नगर निगमों और राज्यों की तैयारी:

• दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, चेन्नई, जयपुर जैसे शहरों ने पहले ही “डॉग मैपिंग ड्राइव” शुरू कर दी है।
• कई राज्यों ने “डॉग शेल्टर जोन” बनाने की घोषणा की है।
• पशु चिकित्सा टीमें और वाहन तैयार किए जा रहे हैं।
• निगम क्षेत्रों में नोडल अधिकारी नियुक्त किए जा रहे हैं।

मुख्य चुनौतियाँ:

  1. शेल्टर हाउस की कमी: अभी देशभर में पर्याप्त आश्रय गृह नहीं हैं।

  2. लॉजिस्टिक समस्या: इतने पशुओं को ट्रांसपोर्ट करना और देखभाल करना मुश्किल होगा।

  3. जन प्रतिक्रिया: कई लोग “कम्युनिटी डॉग्स” को पालते हैं, विवाद बढ़ सकता है।

  4. नियमों का टकराव: पुरानी ABC नीति और नए आदेश में अंतर है, जिससे प्रशासनिक उलझनें बढ़ेंगी।

5+2 बड़े सवाल–जवाब (Explainer Section):

Q1. कब तक कार्रवाई पूरी करनी होगी?
➡️ 8 हफ्तों के भीतर हर राज्य को रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करनी होगी।

Q2. जिम्मेदारी किसकी है?
➡️ राज्य सरकारों, नगर निगमों, जिला प्रशासन और NHAI की।

Q3. क्या सिर्फ कुत्तों पर लागू होगा?
➡️ नहीं, आदेश में “आवारा पशु” शब्द शामिल है यानी सांड, गाय, सूअर आदि पर भी लागू।

Q4. हटाए गए कुत्तों का क्या होगा?
➡️ उन्हें शेल्टर हाउस भेजा जाएगा, वैक्सीनेशन व स्टेरिलाइजेशन कराया जाएगा।

Q5. क्या उन्हें वापस छोड़ा जा सकता है?
➡️ नहीं, खासकर स्कूलों, अस्पतालों और सार्वजनिक स्थलों पर नहीं।

Q6. अगर लापरवाही हुई तो?
➡️ अधिकारी व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह होंगे; सुप्रीम कोर्ट में अनुपालन रिपोर्ट मांगी जाएगी।

Q7. क्या यह पूरे भारत में लागू है?
➡️ हाँ, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर समान रूप से लागू होगा।

आगे की दिशा और सुझाव:

• विशेषज्ञों का मानना है कि केवल हटाने से नहीं, बल्कि Responsible Pet Ownership पर भी ध्यान देना जरूरी है।
• नागरिकों को अपने पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रेशन और वैक्सीनेशन करवाना चाहिए।
• निगमों को डॉग-बर्थ-कंट्रोल (ABC) को और प्रभावी बनाना चाहिए।
• स्कूलों और अस्पतालों के आसपास पशु रोकने के उपाय किए जाएँ जैसे फेंसिंग, अल्ट्रासोनिक डिटर डिवाइस आदि।

ह्यूमन टच लाइन (Impact Line):

“यह फैसला सिर्फ कानून नहीं, एक चेतावनी है, अब शहरों की गलियों में डर नहीं, संतुलन दिखना चाहिए। इंसान और पशु, दोनों का सम्मान तभी होगा जब सुरक्षा और संवेदना साथ चलें।”

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