आयुष्मान आरोग्य मंदिर में परिवर्तित होगा मोहल्ला क्लिनिक! : कर्मचारियों को सता रहा हैं नौकरी जाने का डर वही मुख्यमंत्री ने?
आयुष्मान आरोग्य मंदिर में परिवर्तित होगा मोहल्ला क्लिनिक!

दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। मौजूदा मोहल्ला क्लिनिक को अब अर्बन आयुष्मान आरोग्य मंदिर (U-AAM) में बदला जा रहा है। सरकार का दावा है कि इस योजना से सुविधाएं और आधुनिक होंगी, लेकिन इसके साथ ही पहले से काम कर रहे स्टाफ में नौकरी जाने की आशंका गहराती जा रही है। कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें बिना किसी गलती के हटाने की कोशिश की जा रही है, जबकि सरकार इस बात से इनकार कर रही है।

स्टाफ की शिकायतें और डर 
मोहल्ला क्लिनिक में लंबे समय से काम कर रहे डॉक्टर, नर्स और अन्य स्टाफ का कहना है कि हाल के दिनों में उन्हें फोन पर इस्तीफा देने के लिए कहा गया। कई कर्मचारियों का आरोप है कि कोई लिखित आदेश या आधिकारिक पत्र नहीं दिया गया, सिर्फ मौखिक रूप से हटाने की बात हो रही है। एक कर्मचारी ने कहा, “हमने फर्स्ट एड की ट्रेनिंग ली, दिल्ली सरकार का एग्ज़ाम पास किया, फिर भी हमें क्यों हटाया जा रहा है? अगर नया स्टाफ बुलाना है तो पहले हमें ही नौकरी में प्राथमिकता दी जाए।”

 सरकार का पक्ष और आश्वासन 
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इस मामले पर स्पष्ट बयान देते हुए कहा कि "किसी की नौकरी नहीं जाएगी।" उन्होंने भरोसा दिलाया कि मौजूदा स्टाफ को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में भर्ती प्रक्रिया में प्राथमिकता दी जाएगी। स्वास्थ्य मंत्री ने भी दोहराया कि जो कर्मचारी आवश्यक योग्यता और परीक्षा की शर्तें पूरी करेंगे, उन्हें नई व्यवस्था में शामिल किया जाएगा। सरकार का कहना है कि बदलाव का मकसद सुविधाएं बढ़ाना है, न कि किसी को बेरोजगार करना।

 विरोध और राजनीतिक आरोप 
इस आश्वासन के बावजूद, कर्मचारियों का आक्रोश कम नहीं हुआ है। बीते दिनों लगभग 500 डॉक्टर और 1500 स्टाफ सदस्य दिल्ली सचिवालय के बाहर मौन धरने पर बैठे। उनका कहना था कि मौखिक वादों से काम नहीं चलेगा, सरकार को लिखित में गारंटी देनी चाहिए। दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी (AAP) ने आरोप लगाया कि यह योजना वास्तव में मोहल्ला क्लिनिक स्टाफ को धीरे-धीरे हटाने की साजिश है।

 अदालत की दखलअंदाजी 
मामला दिल्ली हाई कोर्ट तक पहुंचा, जहां कर्मचारियों ने याचिका दायर की। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि अगर 31 मार्च 2026 से पहले किसी कर्मचारी का कॉन्ट्रैक्ट खत्म करना हो, तो कम से कम दो हफ्ते पहले लिखित नोटिस देना अनिवार्य है। अदालत के इस आदेश को कर्मचारियों ने आंशिक राहत माना है, लेकिन उनका कहना है कि यह स्थायी समाधान नहीं है।
 
आगे की राह 

हालांकि सरकार की ओर से मौजूदा स्टाफ को प्राथमिकता देने और नौकरी बचाने के आश्वासन दिए गए हैं, पर कर्मचारियों को अब भी आशंका है कि बिना पक्के लिखित आदेश के उनके भविष्य पर संकट बना रहेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस पूरे विवाद का समाधान तभी संभव है, जब सरकार पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया और स्पष्ट नियम लागू करे, जिससे किसी के साथ अन्याय न हो।

दिल्ली के स्वास्थ्य तंत्र में यह बदलाव भले ही सुविधाओं को आधुनिक बनाने की दिशा में एक कदम हो, लेकिन इसमें काम करने वाले लोगों की आजीविका और सुरक्षा सुनिश्चित करना उतना ही जरूरी है। आने वाले महीनों में यह देखना अहम होगा कि सरकार अपने वादों को कितनी ईमानदारी से निभाती है और कर्मचारियों का भरोसा जीत पाती है या नहीं।

अन्य खबरे