सिंधु जल संधि टूटते ही आफत में पाकिस्तानी!: बोलते नजर आए न दाना मिलेगा न पानी...हमारी उपजाऊ जमीन भी बन जाएगी रेगिस्तान?
सिंधु जल संधि टूटते ही आफत में पाकिस्तानी!

नई दिल्ली: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने कड़ा फैसला लेते हुए खुद को सिंधु जल संधि से अलग कर लिया है। ये वही संधि है जो 1960 से अब तक भारत-पाकिस्तान के बीच हुए तीन बड़े युद्धों के बावजूद भी कायम रही थी। लेकिन अब जब भारत को एहसाह हो गया कि पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन करना कभी नहीं छोड़ेगा तो भारत सरकार एक बड़ा कदम उठाते हुए इस संधि को रद्द कर दिया है।अब जब भारत ने पानी को लेकर बड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है तो पाकिस्तान में खलबली मच गई है। हमेशा की तरह उसने धमकी दी है कि इस संधि को तोड़ना पाकिस्तान 'युद्ध की शुरुआत' मानेगा। लेकिन इस बार डर सिर्फ सरकार तक सीमित नहीं है बल्कि आम जनता भी दहशत में जी रही है।

पानी रुका तो रेगिस्तान बन जाएगा पाकिस्तान

एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तानी किसान होमला ठाकुर ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि नदियों का जलस्तर तेजी से घट रहा है। फसलें सूख रही हैं और अगर भारत ने पानी की आपूर्ति रोक दी तो पाकिस्तान का बड़ा हिस्सा थार रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा। लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएंगे।

पाकिस्तानी विशेषज्ञों ने हल्के में लिया खतरा

यूके स्थित ऑक्सफोर्ड पॉलिसी मैनेजमेंट के अर्थशास्त्री वकार अहमद ने साफ कहा कि पाकिस्तान ने भारत के कदम के खतरे को कम आंका था। अब जब संकट दरवाजे पर खड़ा है, तो उसे संभालना बेहद मुश्किल हो गया है।

पाकिस्तान का पानी रोकने का असर सिर्फ खेती पर ही नहीं पड़ेगी। बल्कि पानी की कमी से बिजली उत्पादन भी प्रभावित होगा और अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगेगा। कराची शोध फर्म पाकिस्तान एग्रीकल्चर रिसर्च के गशारिब शौकत ने कहा इस वक्त हमारे पास कोई विकल्प नहीं

भारत ने बनाई है पक्की योजना

भारत के जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने स्पष्ट कर दिया है कि अब सिंधु का एक भी बूंद पाकिस्तान नहीं जाएगा। सूत्रों के मुताबिक भारत ने नहरों के जरिए पानी को अपने खेतों तक मोड़ने की योजना तैयार कर ली है। हालांकि इन प्रोजेक्ट्स को पूरी तरह बनने में चार से सात साल लग सकते हैं लेकिन पानी मोड़ने का असर कुछ ही महीनों में दिखने लगेगा।

सिंधु जल संधि खत्म होने से पाकिस्तान को झेलने पड़ सकते ये दुष्परिणाम

1. खेती करना होगा मुश्किल

पाकिस्तान की 80 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि सिंधु नदी के पानी पर निर्भर है। इस पानी का अधिकांश हिस्सा (93 फीसदी) सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है जिससे पाकिस्तान की प्रमुख फसलें जैसे गेहूं, चावल और गन्ना उत्पादित होती हैं। अगर सिंधु नदी का पानी कम होता है तो इन फसलों की पैदावार में भारी गिरावट हो सकती है जिससे खाद्यान्न संकट पैदा हो सकता है। 

कृषि क्षेत्र पाकिस्तान की राष्ट्रीय आय में 23 प्रतिशत का योगदान करता है और यहां की लगभग 68 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है। इस संकट का पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ सकता है।

2. बूंद बूंद पानी के लिए तरस जाएगा पाकिस्तान

सिंधु जल संधि के समाप्त होने से पाकिस्तान के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की भारी किल्लत हो सकती है। पानी की आपूर्ति में कमी से न केवल कृषि क्षेत्र प्रभावित होगा बल्कि आम नागरिकों को भी पीने का पानी उपलब्ध कराना मुश्किल हो जाएगा। यह स्थिति पाकिस्तान में असहमति, तनाव और अशांति का कारण बनेगी।

3. बिजली उत्पादन में होगी भारी गिरावट

पाकिस्तान में सिंधु नदी के जल से चलने वाले कई जलविद्युत परियोजनाएं जैसे तरबेला और मंगला पावर प्रोजेक्ट्स हैं। इन परियोजनाओं को पानी की आपूर्ति में कमी का सामना करना पड़ा तो बिजली उत्पादन में बड़ी गिरावट हो सकती है। 

जिसकी वजह से पहले से संकटग्रस्त पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को और भी बड़ा झटका लगेगा और बिजली की भारी कमी से कई औद्योगिक गतिविधियां रुक जाएंगी।

4. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को होगा भारी नुकसान

सिंधु जल संधि का प्रभाव केवल कृषि और ऊर्जा क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा। पाकिस्तान की जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा इन क्षेत्रों से आता है और इन दोनों में गिरावट से समग्र अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का लग सकता है। महंगाई बढ़ने के साथ बेरोजगारी की दर भी बढ़ सकती है जिससे पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति और भी विकट हो सकती है। इस स्थिति के कारण देश के भीतर असंतोष और संघर्ष भी उत्पन्न हो सकता है।

अन्य खबरे