महत्वपूर्ण व्यक्तित्व: 5 नवंबर 2025 को पूरी दुनिया में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है गुरु नानक देव जी की जयंती, जिसे गुरुपर्व या प्रकाश पर्व कहा जाता है। यह दिन सिर्फ सिख समुदाय का पर्व नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रकाश और शांति का उत्सव है क्योंकि नानक जी ने हमें यह सिखाया कि “ईश्वर एक है, और हर प्राणी में वही बसता है।”
जन्म और बचपन की अद्भुत कहानी
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 (कार्तिक पूर्णिमा) को राय भोए दी तलवंडी (अब पाकिस्तान के ननकाना साहिब) में हुआ। उनके पिता मेहता कालू चंद एक पटवारी थे और माता माता तृप्ता एक धार्मिक और दयालु स्त्री थीं।
बचपन से ही नानक जी सामान्य बच्चों से अलग थे उनमें गहरी आध्यात्मिक जिज्ञासा थी। कहा जाता है कि बचपन में ही वे पंडितों से पूछते “अगर भगवान हर जगह है तो पूजा केवल एक दिशा में क्यों की जाती है?”
उनका मन सांसारिक बातों में नहीं, बल्कि सत्य और ईश्वर की खोज में रमता था।
गुरु नानक जी के जीवन के चमत्कार
एक बार जब वे गंगा स्नान के लिए गए, तो जल में उतरकर ध्यान लगाने लगे और तीन दिन तक लापता रहे। जब वे लौटे, तो बोले “ना कोई हिन्दू, ना कोई मुसलमान; सब एक ही ईश्वर की संतान हैं।”
उसके बाद उन्होंने अपना जीवन मानवता की सेवा, सत्य के प्रचार और समानता के संदेश में समर्पित कर दिया।
गुरु नानक जी की तीन अमर शिक्षाएँ
नाम जपना – ईश्वर का सदा स्मरण करो।
किरत करना – मेहनत और ईमानदारी से काम करो।
वंड छकना – अपनी कमाई दूसरों के साथ बाँटो।
उनका यह सिद्धांत आज भी सिख धर्म की आत्मा है। उन्होंने कहा “ईश्वर मंदिरों और मस्जिदों में नहीं, बल्कि हर इंसान के दिल में बसता है।”
समाज सुधार और चार प्रमुख यात्राएँ (उदासियाँ)
गुरु नानक देव जी ने लगभग 20 वर्षों तक चार दिशाओं में यात्राएँ कीं जिन्हें उदासियाँ कहा जाता है। इन यात्राओं के माध्यम से उन्होंने मानवता, समानता, और प्रेम का संदेश फैलाया।
पूर्व यात्रा: बंगाल, असम और बांग्लादेश तक पहुँचे।
पश्चिम यात्रा: मक्का, मदीना और बगदाद तक गए वहाँ कहा, “ईश्वर हर दिशा में है।”
उत्तर यात्रा: तिब्बत और हिमालय तक पहुँचे।
दक्षिण यात्रा: श्रीलंका तक गए और लोगों को मानवता का संदेश दिया। इन यात्राओं में उनके साथ भाई मरदाना रहते जो रबाब बजाकर उनके भजन गाते थे, यहीं से कीर्तन परंपरा की शुरुआत हुई।
समाज के लिए संघर्ष और बलिदान
गुरु नानक देव जी ने उस युग में आवाज उठाई जब समाज जाति, धर्म और ऊँच-नीच के भेदभाव से बँटा हुआ था।
उन्होंने अंधविश्वास, मूर्तिपूजा और कट्टरता का विरोध किया। उन्होंने लंगर की प्रथा शुरू की ताकि हर जाति और धर्म का व्यक्ति एक साथ बैठकर भोजन कर सके।
“सच्चा धर्म वह है जिसमें सबका भला हो।”
उनका पूरा जीवन समानता, सेवा और सच्चाई का प्रतीक बना रहा।
गुरु नानक देव जी के बाद के दस सिख गुरु
गुरु नानक जी ने अपने प्रिय शिष्य भाई लहणा को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जिन्हें आगे चलकर गुरु अंगद देव जी कहा गया। उनके बाद सिख धर्म की अगुवाई कुल 10 गुरुओं ने की
गुरु नानक देव जी (1469–1539)- सिख धर्म के संस्थापक
गुरु अंगद देव जी (1539–1552)- गुरुमुखी लिपि का प्रचार
गुरु अमरदास जी (1552–1574)- लंगर परंपरा को सशक्त किया
गुरु रामदास जी (1574–1581)- अमृतसर नगर की स्थापना
गुरु अर्जन देव जी (1581–1606)- ‘आदि ग्रंथ’ की रचना व शहादत
गुरु हरगोबिंद जी (1606–1644)- मिरी-पिरी (धर्म व शक्ति का संतुलन)
गुरु हर राय जी (1644–1661)- सेवा और करुणा के प्रतीक
गुरु हरकृष्ण जी (1661–1664)- रोगियों की सेवा में जीवन न्योछावर
गुरु तेग बहादुर जी (1664–1675)- धर्म की रक्षा के लिए बलिदान
गुरु गोविंद सिंह जी (1675–1708)- खालसा पंथ की स्थापना
अंतिम क्षण और अमरता का प्रतीक
जब गुरु नानक देव जी का देहांत हुआ (22 सितंबर 1539), तो हिंदू और मुसलमान अनुयायियों में विवाद हुआ कि उनका अंतिम संस्कार कैसे किया जाए, लेकिन जब चादर हटाई गई, तो उनका शरीर नहीं था केवल फूल रखे थे, यह घटना बताती है कि वे धर्म नहीं, मानवता के प्रतीक बन चुके थे।
गुरु नानक जी की 10 अनमोल शिक्षाएँ
“ईश्वर एक है, वही सबका सृजनहार है।”
“सत्य बोलो, पर किसी का दिल मत दुखाओ।”
“किसी की निंदा मत करो, खुद को सुधारो।”
“मेहनत करो, बाँटो और नाम जपो।”
“जिसका मन निर्मल है, वही सच्चा तीर्थ है।”
“धर्म वह है जो दूसरों का भला करे।”
“लोभ और अहंकार ही अंधकार हैं।”
“स्त्री और पुरुष एक समान हैं, दोनों ईश्वर की रचना हैं।”
“जो दूसरों को दुख देता है, वह खुद दुखी रहता है।”
“सच्चा मार्ग वही है जो प्रेम और सत्य से जुड़ा है।”
आधुनिक युग में गुरु नानक की प्रासंगिकता
आज जब समाज में नफरत और स्वार्थ बढ़ रहा है, गुरु नानक जी का संदेश “सब में रब है” पहले से भी अधिक जरूरी हो गया है। उनकी वाणी हमें सिखाती है कि “धर्म वही है जो इंसान को इंसान से जोड़े, तोड़े नहीं।”
गुरुपर्व पर झलकियाँ
इस दिन स्वर्ण मंदिर (अमृतसर) और ननकाना साहिब (पाकिस्तान) में दीपों और सजावट से जगमग दृश्य होता है।
लोग नगर कीर्तन निकालते हैं, लंगर लगाते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं।
बच्चे गुरु नानक की शिक्षाओं पर आधारित नाटक प्रस्तुत करते हैं। हर घर, हर दिल में बस एक ही प्रार्थना होती है “वाहेगुरु, सबका भला कर।”
“विश्व गुरु नानक” दुनियाभर में प्रभाव
पाकिस्तान में ननकाना साहिब हर वर्ष लाखों श्रद्धालु जाते हैं। इंग्लैंड, कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया में गुरुपर्व के विशेष कार्यक्रम होते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 550वीं जयंती पर उन्हें Global Messenger of Peace कहा था।
निष्कर्ष
गुरु नानक देव जी केवल धर्मगुरु नहीं थे, बल्कि विश्व मानवता के शिक्षक थे। उन्होंने सिखाया कि सच्चा जीवन किसी धर्म से नहीं, बल्कि दयालु हृदय और सच्चे कर्मों से बनता है।
“ना कोई हिन्दू, ना कोई मुसलमान,
सब एक ही प्रभु की संतान।”
उनकी वाणी आज भी गूंजती है “सत नाम वाहेगुरु” — यही जीवन की सच्ची रोशनी है।