राजनीति: भारतीय लोकतंत्र की नींव चुनावों पर टिकी है। 1952–1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव समकालीन रूप से होते थे, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और समयपूर्व विघटन के कारण यह परंपरा टूट गई। आज “एक देश, एक चुनाव” पुनः चर्चा का केंद्र बन गया है।
राष्ट्रीय बहस का केंद्र क्यों बना?
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति (2024) ने इसे लागू करने के लिए विस्तृत रिपोर्ट दी।
नीति आयोग (2017) ने इसे चुनावी व्यय और प्रशासनिक बोझ कम करने के उपाय के रूप में प्रस्तुत किया।
निर्वाचन आयोग ने बार-बार चुनाव के कारण सुरक्षा बलों पर दबाव और काले धन की समस्या उजागर की।
क्यों है इसकी आवश्यकता?
लगातार चुनाव प्रशासन और विकास कार्यों में बाधा डालते हैं।
चुनावी खर्च में वृद्धि (नीति आयोग, 2017) और बार-बार लागू होने वाली मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट नीति निर्माण में रुकावट डालती है।
मतदाता थकान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
आर्थिक, प्रशासनिक और राजनीतिक लाभ
आर्थिक बचत – चुनावी खर्च में हजारों करोड़ रुपये की कमी।
नीति निर्माण में स्थिरता – आचार संहिता की बार-बार बाधा समाप्त।
प्रशासनिक दक्षता – संसाधनों (EVMs, VVPATs, सुरक्षा बल) का बेहतर उपयोग।
मतदाता सुविधा – बार-बार मतदान की आवश्यकता नहीं।
राजनीतिक स्थिरता – सरकारें दीर्घकालिक योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
काले धन पर अंकुश – चुनावी व्यय में नियंत्रण।
संभावित चुनौतियाँ और जोखिम
संवैधानिक संशोधन आवश्यक – अनुच्छेद 83, 172, 174, 356 में बदलाव।
संघीय संतुलन पर असर – राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है।
स्थानीय मुद्दों की उपेक्षा – राष्ट्रीय मुद्दों की छाया में क्षेत्रीय चिंताएँ दब सकती हैं।
सदन का विघटन – समयपूर्व भंग होने पर तालमेल बिगड़ सकता है।
तकनीकी एवं संसाधन चुनौती – लाखों EVMs, VVPATs और कर्मियों की आवश्यकता।
राजनीतिक सहमति का अभाव – क्षेत्रीय दल इसे संघीय लोकतंत्र के लिए खतरा मान सकते हैं।
विशेषज्ञों और आयोगों की राय
विधि आयोग (170वीं व 255वीं रिपोर्ट) – चुनाव एक साथ कराने की संभावना पर जोर।
नीति आयोग (2017) – आर्थिक और प्रशासनिक लाभ के दृष्टिकोण से समर्थन।
निर्वाचन आयोग – संसाधन प्रबंधन के लिए व्यावहारिक समाधान सुझाया।
उच्चस्तरीय समिति (2024) – संवैधानिक संशोधन और चरणबद्ध कार्यान्वयन की सिफारिश।
आगे की राह :
चरणबद्ध और संवैधानिक कार्यान्वयन
चरणबद्ध प्रक्रिया – शुरुआत में कुछ राज्यों के चुनावों को लोकसभा के साथ समन्वित करना।
राजनीतिक सर्वसम्मति – सभी दलों का समर्थन आवश्यक।
संसाधनों की तैयारी – पर्याप्त EVMs, VVPATs और सुरक्षा बल सुनिश्चित।
संघीय संतुलन बनाए रखना – राज्यों की स्वायत्तता और स्थानीय मुद्दों का ध्यान रखना।
दूरदर्शी पहल या संवैधानिक चुनौती?
“एक देश, एक चुनाव” भारतीय लोकतंत्र को स्थिर, किफायती और प्रभावी बनाने की दिशा में एक दूरदर्शी पहल है। इसके सफल कार्यान्वयन के लिए संवैधानिक संशोधन, संसाधन तैयारी और सर्वदलीय सहमति अनिवार्य हैं। यदि यह चरणबद्ध और विचारशील तरीके से लागू किया जाए, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अधिक संगठित, प्रभावी और जनता के अनुकूल बना सकता है।