दिल्ली में कृत्रिम वर्षा; एक्सपर्ट्स की राय और टेंशन में सरकार!: करोडों का खर्च भी प्रदूषण पर नहीं रहा कारगर? विशेषज्ञों से जानें आखिर क्या हो सकते इसके वैकल्पिक स्थायी समाधान
दिल्ली में कृत्रिम वर्षा; एक्सपर्ट्स की राय और टेंशन में सरकार!

नई दिल्ली: दिल्ली की जहरीली हवा से निपटने के लिए सरकार द्वारा अपनाया गया 'क्लाउड सीडिंग' यानी कृत्रिम वर्षा का तरीका बुरी तरह विफल साबित हुआ है। हाल में हुए दो परीक्षणों के नतीजे चौंकाने वाले हैं - 1 करोड़ रुपये की लागत से महज 0.3MM बारिश दर्ज की गई, और वह भी दिल्ली में नहीं बल्कि नोएडा के इलाके में। इस विफलता ने एक बार फिर इस सवाल को जन्म दिया है कि क्या प्रदूषण से लड़ने के नाम पर सरकार महज 'दिखावटी उपाय' कर रही है?

1 करोड़ की कीमत, नोएडा में महज 0.3MM बारिश, दिल्ली में वह भी नहीं :

आपको बता दें कि 28 अक्टूबर को किए गए परीक्षण के परिणाम ने सरकार के इस प्रयास की पोल खोल कर रख दी, दो परीक्षणों पर 1 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आया। इतना भारी खर्च के बाद भी महज 0.3 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। यह नगण्य बारिश भी दिल्ली में नहीं, बल्कि नोएडा में हुई।

विशेषज्ञों की चेतावनी: केवल आपातकालीन व्यवस्था है क्लाउड सीडिंग'

आईआईटी कानपुर के निदेशक डॉ. मणींद्र अग्रवाल सहित कई विशेषज्ञ पहले ही इस तकनीक के प्रति आशंका जता चुकें हैं। डॉ. अग्रवाल के अनुसार, "यह वायु प्रदूषण कम करने का उपाय है ही नहीं। प्रदूषण नियंत्रण में कृत्रिम वर्षा सिर्फ आपातकालीन उपाय हो सकती है।" विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या का समाधान महज कुछ देर की वर्षा से नहीं हो सकता। यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं, बल्कि एक फर्स्ट एड मात्र है।

सबसे बड़ा सवाल; क्लाउड सीडिंग के पैसे से क्या-क्या हो सकता था?

आपको बता दें कि 3.21 करोड़ रुपये के क्लाउड सीडिंग बजट को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस पैसे का बेहतर इस्तेमाल हो सकता था? इस रकम से:

● दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन के लिए कई नई बसें खरीदी जा सकती थीं।
● 70 विधानसभा क्षेत्रों में से हर एक के लिए एक वाटर स्प्रिंकलर या मैकेनिकल स्वीपिंग मशीन की व्यवस्था की जा सकती थी।
● शहर में साइकिल इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जा सकता था।

सरकारी दावे और जमीन पर हालात :

सरकार ने प्रदूषण रोकथाम के लिए कई दावे किए हैं, लेकिन जमीन पर हकीकत कुछ और ही है। 86 मैकेनिकल स्वीपर, 300 स्प्रिंकलर का दावा, लेकिन सड़कों पर धूल के ढेर बिना रोक-टोक मौजूद हैं। इसके साथ ही एंटी-स्मॉग गन का ऐलान किया गया, लेकिन जमीन पर उनका अभाव नजर आता है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि सीपीसीबी के 'समीर' ऐप पर दर्ज 8,480 शिकायतों में से केवल 65% का ही निवारण हो पाया है।

वैकल्पिक रास्ता: क्या है प्रदूषण का स्थायी इलाज?

विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण से निपटने का एकमात्र कारगर तरीका जमीनी स्तर पर काम करना है:

1. स्रोत पर नियंत्रणं के उत्सर्जन
उद्योगों के प्रदूषण और निर्माण कार्यों की धूल पर सख्ती से नियंत्रण जरूरी है।

2. क्षेत्रीय दृष्टिकोण:
प्रदूषण सिर्फ दिल्ली की समस्या नहीं है। पूरे के मैदान को एक एयरशेड मानकर काम करने की जरूरत है।

3. सार्वजनिक परिवहन को मजबूती:
दिल्ली में वाहन प्रदूषण 39-41% तक जिम्मेदार है। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा और मेट्रो-बस नेटवर्क का विस्तार जरूरी है।

क्लाउड सीडिंग की विफलता ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या का समाधान तेज रफ्तार, त्वरित उपायों से नहीं, बल्कि टिकाऊ, व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से ही संभव है। सरकार को स्मॉग टावर, एंटी-स्मॉग गन और क्लाउड सीडिंग जैसे 'कॉस्मेटिक उपायों' पर पैसा बहाने के बजाय, प्रदूषण के वास्तविक स्रोतों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की जरूरत है। जब तक ऐसा नहीं होगा, दिल्ली की हवा में सांस लेना हर सर्दी में 'जहर घोलने' जैसा बना रहेगा।

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