धर्म और संस्कृति: जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का संहार किया, तब देवताओं ने काशी में दीप जलाकर मनाई दिवाली। यही कहलाती है देव दिवाली।
हर साल दीपावली अमावस्या की रात मनुष्यों द्वारा मनाई जाती है, लेकिन देव दिवाली कार्तिक पूर्णिमा की रात देवताओं की दिवाली के रूप में मनाई जाती है। यह दिन भगवान शिव की असुर त्रिपुरासुर पर विजय का प्रतीक है। इसीलिए इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
इस बार देव दिवाली 2025 क्यों खास है?
इस वर्ष देव दिवाली 14 नवंबर (शुक्रवार) को मनाई जा रही है और इस दिन बन रहे हैं पाँच दुर्लभ संयोग, जो इसे अत्यंत शुभ बनाते हैं-
कार्तिक पूर्णिमा का दिन
त्रिपुरारी पूर्णिमा योग
चंद्रमा का वृषभ राशि में गोचर
गुरु और शुक्र का उच्च राशि में होना
सर्वार्थ सिद्धि योग
कहा गया है कि इन संयोगों में दीपदान, स्नान और दान का फल साधारण दिनों की तुलना में कई गुना बढ़ जाता है।
शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 14 नवंबर 2025, दोपहर 2:10 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 15 नवंबर 2025, शाम 4:25 बजे
दीपदान का सर्वश्रेष्ठ समय: शाम 6:00 बजे से रात 8:30 बजे तक
देव दिवाली की पौराणिक कथा- जब शिव बने ‘त्रिपुरारी’
पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक दैत्य ने तीन नगरों त्रिपुर में अत्याचार मचाया था। देवता भयभीत होकर भगवान शिव की शरण में पहुँचे। शिवजी ने ब्रह्मा के वरदान से प्राप्त पशुपतास्त्र से त्रिपुरासुर का वध किया। यह युद्ध कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस विजय से प्रसन्न होकर देवताओं ने काशी में दीप जलाकर उत्सव मनाया, और तब से यह पर्व देव दिवाली कहलाया। इसी कारण भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा गया।
काशी में जगमगाती देव दिवाली- धरती पर उतरते तारे
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष काशी में गंगा के 84 घाटों पर 15 लाख से अधिक दीपक जलाने की तैयारी है। दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट और मणिकर्णिका घाट पर होने वाली भव्य गंगा आरती में देवता स्वयं उतरते हैं, ऐसी मान्यता है।
काशी में इस अवसर पर पाँच दिन चलने वाला गंगा महोत्सव भी मनाया जाता है। इसका समापन देव दिवाली की रात दीपदान और आरती के साथ होता है। संगीत, नृत्य, शंखध्वनि और दीपों की लहरों से सजी यह रात मानो स्वर्ग को धरती पर उतार देती है।
“जब गंगा की लहरों पर दीप तैरते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे स्वयं देवता गंगा में स्नान करने आए हों।”
घर पर कैसे करें देव दिवाली पूजा
यदि आप काशी नहीं जा सकते, तो घर पर भी सरल विधि से देव दिवाली मना सकते हैं:
प्रातः गंगाजल मिलाकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
घर के मंदिर में भगवान शिव, विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखें।
दीप जलाने से पहले यह मंत्र बोलें-
“ॐ नमः शिवाय, ॐ विष्णवे नमः, ॐ लक्ष्म्यै नमः।”
भगवान को खीर, गुड़, तिल, पुष्प और दीप अर्पित करें।
21 दीपक जलाएं, जिनमें 11 मंदिर में, 5 तुलसी के पास, और 5 घर के द्वार पर रखें।
संध्या के समय दीपदान करें और भक्ति गीत या आरती गाएं।
रात्रि में दीपों की रोशनी से आँगन, छत और द्वार को आलोकित करें।
कार्तिक पूर्णिमा पर क्या दान करें?
इस दिन का दान और स्नान अक्षय पुण्यदायी माना गया है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए निम्न दान अत्यंत शुभ माने गए हैं-
• तिल, गुड़, वस्त्र, अनाज, घी, दीपक और कंबल
• ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराना
• तुलसी के पौधे के पास दीप जलाना
• मंदिर में तिल के तेल का दीपदान करना
तुलसी के समीप दीप जलाने से धन और समृद्धि की वृद्धि होती है, और गंगा स्नान से पापों का नाश होता है।
भारत के अन्य तीर्थों में देव दिवाली
हालाँकि काशी देव दिवाली का केंद्र है, परंतु यह पर्व सम्पूर्ण भारत में श्रद्धा से मनाया जाता है:
प्रयागराज (त्रिवेणी संगम)– लाखों दीपों से संगम क्षेत्र आलोकित होता है।
हरिद्वार और ऋषिकेश– भव्य गंगा आरती और दीपदान के साथ।
अयोध्या, चित्रकूट, मथुरा– जहाँ विष्णु और लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है।
द्वारका और सोमनाथ– समुद्र तटों पर दीपमालाएँ सजती हैं।
ग्रंथों में देव दिवाली का उल्लेख
स्कंद पुराण के अनुसार “कार्तिक पूर्णिमा का स्नान और दीपदान हजार अश्वमेध यज्ञों के समान पुण्य देता है।”
पद्म पुराण में इस दिन को “देव दीपावली महोत्सव” कहा गया है, जो देवताओं, पितरों और मानव के बीच एक दिव्य सेतु बनाता है।
व्रत एवं धार्मिक नियम
• सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
• दिनभर सात्विक भोजन करें और देवताओं की आराधना करें।
• संध्या में दीपदान करें और शिव-लक्ष्मी-विष्णु आरती करें।
• रात में दीपों के बीच ध्यान लगाकर शांति और सद्बुद्धि की प्रार्थना करें।
लोक परंपरा और भावनात्मक दृश्य
पूर्वांचल और काशी क्षेत्र में महिलाएँ इस दिन लोकगीत गाती हैं “गंगा जी के घाटे, दीप जलाए देवता…”
नवविवाहित जोड़े इस दिन दीपदान करते हैं ताकि उनके जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे। काशी के घाटों से उठती आरती, शंखध्वनि और दीपों की चमक से ऐसा लगता है जैसे आकाश के तारे धरती पर उतर आए हों।
देव दिवाली का गूढ़ संदेश
देव दिवाली हमें यह सिखाती है कि जैसे दीप अंधकार को मिटाता है, वैसे ही हमें अपने भीतर के अंधकार ईर्ष्या, अहंकार और आलस्य को मिटाकर ज्ञान, प्रेम और भक्ति का प्रकाश फैलाना चाहिए।
“अंधकार तब मिटता है जब भीतर का दीप जलता है। देव दिवाली केवल दीपों की नहीं, आत्मा की जागृति की दिवाली है।”
काशी से लेकर हर घर तक जगमगाएंगे दीप
देवताओं की दिवाली में जलाएं श्रद्धा का प्रकाश, मिटाएं मन का अंधकार, और पाएं शिव-लक्ष्मी-नारायण का आशीर्वाद।