आतंकवाद: कश्मीर घाटी में पाकिस्तान समर्थित नेटवर्क पर अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई हुई है। जम्मू-कश्मीर पुलिस, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और राज्य जांच एजेंसी (SIA) ने संयुक्त अभियान चलाकर 120 से ज्यादा जगहों पर छापेमारी की।
इस दौरान मोबाइल फोन, सिम कार्ड, लैपटॉप, हार्ड ड्राइव, पेन ड्राइव और डिजिटल रिकॉर्ड जब्त किए गए हैं। यह नेटवर्क कथित तौर पर पाकिस्तान और पाक-अधिग्रहीत कश्मीर (PoK) में बैठे हैंडलर्स द्वारा संचालित किया जा रहा था, जो घाटी में बैठे अपने रिश्तेदारों के जरिए आतंकी प्रचार, धन प्रवाह और सोशल-मीडिया प्रोपेगेंडा चला रहे थे।
कैसे चला यह ऑपरेशन:
अधिकारियों के अनुसार, छापे कुलगाम, पुलवामा, शोपियां, सोपोरे, बारामूला, बडगाम, अनंतनाग और श्रीनगर सहित कई जिलों में एक साथ डाले गए। इसमें पुलिस, सेना, CRPF और खुफिया एजेंसियों की संयुक्त टीमों ने सुबह-सुबह सर्च ऑपरेशन (CASO) चलाया। डिजिटल डिवाइसों की फोरेंसिक जांच जारी है ताकि कॉल रिकॉर्ड, चैट हिस्ट्री और फंडिंग चैनल का पूरा नेटवर्क उजागर हो सके।
क्या मिला अब तक:
• कई सिम कार्ड और मोबाइल नंबर पाकिस्तान से संपर्क में थे।
• Telegram, Signal और WhatsApp पर कई ग्रुप्स और चैनल्स से आतंक और नफरत भरा कंटेंट फैलाया जा रहा था।
• कुछ मामलों में पाक हैंडलर्स ने घाटी के युवाओं को “धार्मिक मिशन” के नाम पर प्रभावित किया।
• सुरक्षा एजेंसियों को कुछ वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग्स भी मिली हैं जिनकी जांच चल रही है।
आतंकवाद का नया चेहरा: “डिजिटल जिहाद”
विशेषज्ञों का कहना है कि अब आतंकवाद का तरीका बदल गया है। “अब बंदूकें नहीं, मोबाइल फोन सबसे खतरनाक हथियार हैं” एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने कहा।
सोशल मीडिया, एन्क्रिप्टेड ऐप्स और डिजिटल करेंसी का इस्तेमाल करके ‘डिजिटल जिहाद’ चलाया जा रहा है। इससे पाकिस्तान बिना सीमा पार किए भी घाटी में अस्थिरता फैला पा रहा है।
पाकिस्तान का पुराना नेटवर्क, नया तरीका:
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI पिछले तीन दशकों से कश्मीर में आतंकी नेटवर्क चला रही है, लेकिन अब उसने रिश्तेदारों और स्थानीय नागरिकों के जरिए “ऑनलाइन प्रचार” का नया मॉडल अपना लिया है। पहले जहां हथियार, गोला-बारूद और घुसपैठ मुख्य माध्यम थे, अब WhatsApp ग्रुप, Twitter/X हैंडल, Telegram चैनल और छोटे वीडियो के जरिए मनोवैज्ञानिक युद्ध (Information Warfare) चलाया जा रहा है।
Over-Ground Workers (OGWs) का नेटवर्क:
इस नेटवर्क में शामिल लोग किसी संगठन का सदस्य नहीं होते, लेकिन आतंकियों को ठिकाना देना, आर्थिक मदद पहुँचाना या सोशल मीडिया पर भारत विरोधी नैरेटिव चलाना, ये सब उनका काम होता है। कई बार ये लोग अपने ही परिवार के किसी सदस्य या रिश्तेदार के जरिए पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के संपर्क में रहते हैं।
सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की सख्ती:
गृह मंत्रालय ने इस ऑपरेशन को “Zero Tolerance Against Terrorism” नीति का हिस्सा बताया है। पुलिस और SIA ने बताया कि यह कार्रवाई एक “प्रिवेंटिव ऑपरेशन” है, ताकि नेटवर्क को जड़ से खत्म किया जा सके। सभी डिजिटल डेटा की AI आधारित फोरेंसिक जांच चल रही है, जिससे चैट पैटर्न और डिवाइस लोकेशन ट्रेस की जा रही है।
स्थानीय समाज पर असर:
घाटी में ऐसे नेटवर्क के कारण आम लोगों में भय और अस्थिरता फैलती है। कई निर्दोष युवा गलत जानकारी और ऑनलाइन ब्रेनवॉशिंग के शिकार होकर हिंसा के रास्ते पर चले जाते हैं। हालांकि अब बड़ी संख्या में लोग शांति और सामान्य जीवन चाहते हैं और वे आतंक से दूरी बनाकर सरकार और सेना की मदद कर रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय:
सुरक्षा विश्लेषक अमरदीप सिंह का कहना है:
“कश्मीर की लड़ाई अब जमीन से नहीं, बल्कि डेटा से लड़ी जा रही है। हर सिम कार्ड और हर चैट अब एक हथियार है।”
रिटायर्ड DGP एस.पी. वैद्य के मुताबिक “अगर डिजिटल फंडिंग और प्रचार को रोका गया तो 70% आतंक अपने आप खत्म हो जाएगा।”
अंतरराष्ट्रीय एंगल:
भारत ने कई बार संयुक्त राष्ट्र और FATF में पाकिस्तान की भूमिका उजागर की है कि कैसे वह आतंकवाद को ‘डिजिटल रूप में निर्यात’ कर रहा है। अब इस कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय मीडिया (BBC, Reuters, Al Jazeera आदि) ने भी साइबर टेररिज़्म के खिलाफ भारत की निर्णायक कार्रवाई बताया है।
निष्कर्ष:
कश्मीर की यह कार्रवाई सिर्फ छापेमारी नहीं, बल्कि एक नए दौर की लड़ाई की शुरुआत है जहाँ हथियारों से नहीं, बल्कि डेटा, सिग्नल और नेटवर्क से आतंक को जड़ से काटा जा रहा है।
“हर जब्त मोबाइल, हर सिम कार्ड अब एक गवाही है कि आतंक अब डिजिटल बन चुका है।”