नई दिल्ली: पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में जंग के बादल मंडरा रहे हैं। सिंधु जल संधि से लेकर एलओसी तक हालात तेजी से बदले हैं। ऐसे में आम जनता से लेकर रणनीतिक थिंक टैंक तक एक ही खौफनाक सवाल कर रहे हैं—क्या अगला युद्ध ‘परमाणु’ होगा?और फिर उठता है सबसे भयानक सवाल—एटम बम और हाइड्रोजन बम में आखिर फर्क क्या है? कौन ज्यादा खतरनाक है? क्या भारत और पाकिस्तान के पास वो बटन है, जो एशिया को राख में बदल सकता है?
एटम बम: हिरोशिमा-नागासाकी की चीखें आज भी जिंदा हैं!
गौरतलब है कि एटम बम या परमाणु बम विज्ञान का वो सबसे काला चेहरा जिसे दुनिया ने पहली बार 6 और 9 अगस्त 1945 को देखा। अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर जो गिराया, वो सिर्फ बम नहीं था, बल्कि एक ‘इंसानी नरसंहार’ का ट्रेलर था।
कैसे काम करता है परमाणु बम?
परमाणु बम विस्फोट में पहले यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 का नाभिक टूटता है।
इसके बाद श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा इस अभिक्रिया में एक परमाणु का विखंडन, दूसरों को ट्रिगर करता है
तबाही: इसमें 2-3 किमी तक पूर्ण विनाश, हजारों की जान, रेडिएशन का आतंक बन जाता है।
यह वही बम है जिसने युद्ध की परिभाषा ही बदल दी थी। लेकिन यह सिर्फ शुरुआत थी...
हाइड्रोजन बम: जब एटम बम भी छोटा लगने लगा!
आपको बता दें कि हाइड्रोजन बम या थर्मोन्यूक्लियर बम—जिसे 'डूम्सडे डिवाइस' भी कहा जाता है। इसमें फ्यूजन तकनीक का इस्तेमाल होता है, यानी हल्के हाइड्रोजन समस्थानिक (ड्यूटेरियम और ट्रिटियम) को जोड़कर भारी ऊर्जा उत्पन्न करना।
कैसे होता है विस्फोट?
हाइड्रोजन बम में पहले फिशन बम छोटा धमाका करता है वही ऊर्जा फ्यूजन प्रक्रिया को ट्रिगर करती है।
इसके परिणामस्वरूप सैकड़ों एटम बमों जितनी ताकत, एक ही विस्फोट में होता है।
जब सोवियत संघ ने किया सबसे बड़ा परीक्षण:
आपको बता दे कि 1961 में सोवियत यूनियन ने 'Tsar Bomba' नामक 50 मेगाटन का हाइड्रोजन बम फोड़ा जो कि हिरोशिमा से 3,800 गुना ज्यादा ताकतवर था।
भारत या पाकिस्तान द्वारा एक बटन दबते ही मच सकती है तबाही:
आपको बता दे कि भारत और पाकिस्तान दोनों के पास एटम बम हैं, और कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, हाइड्रोजन बम की क्षमता भी भारत विकसित कर चुका है। पाकिस्तान भी थर्मोन्यूक्लियर तकनीक के विकास का दावा करता रहा है। दोनों देशों की मिसाइलें कई सौ किलोमीटर दूर तक मार करने में सक्षम हैं।
भारत की ‘नो फर्स्ट यूज़’ नीति भले ही संतुलन का दावा करती हो, लेकिन पाकिस्तान की रणनीति में पहले हमले का विकल्प खुला है। यह स्थिति उस आग से खेलने जैसी है, जिसमें अगर एक चिंगारी भी गिरी, तो पूरा उपमहाद्वीप जल सकता है।
क्या इस बार हथियार नहीं, होश से होगा फैसला?
गौरतलब है कि भारत-पाक रिश्ते वहाँ खड़े है कि जहां गलती की कोई गुंजाइश नहीं है। एटम बम और हाइड्रोजन बम जैसे हथियारों की मौजूदगी केवल सैन्य ताकत नहीं, बल्कि एक खतरनाक संतुलन है। यह एक ऐसा संतुलन है जो अगर डगमगाया, तो न भूलेगा इतिहास, न बचेगा भविष्य।अब वक्त है सवाल पूछने का कि क्या हमारे नेता, हमारी सेनाएं, और हम सभी इतना समझदार हैं कि उस बटन से दूर रह सकें… या फिर एक दिन यह सब कुछ सिर्फ राख बन जाएगा?