वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2025: नार्वे नम्बर 1 और भारत की रैंकिंग 151, चीन की स्थिति भी चिंताजनक तो पड़ोसी पाकिस्तान की हालत...
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2025


 पेरिस: आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा जारी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2025 में भारत को 151वां स्थान प्राप्त हुआ है। 180 देशों की इस सूची में भारत की रैंकिंग ने एक बार फिर देश में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर चिंताओं को उजागर कर दिया है। वहीं नार्वे लगातार 7 वर्षों से शीर्ष स्थान पर बना हुआ है।

क्या है प्रेस फ्रीडम इंडेक्स, कौन करता जारी?

आपको बता दे कि RSF (Reporters Without Borders) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना 1985 में फ्रांस में हुई थी। इसका मकसद दुनिया भर में पत्रकारों की स्वतंत्रता और सुरक्षा की रक्षा करना है। हर साल ये संगठन "वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स" जारी करता है, जिसमें 180 देशों में मीडिया की आज़ादी का मूल्यांकन किया जाता है।

रैंकिंग कैसे तय होती है? जानिए पांच प्रमुख संकेतक

गौरतलब है कि RSF की यह रिपोर्ट पांच प्रमुख कारकों के आधार पर तैयार की जाती है:

 1. राजनीतिक परिप्रेक्ष्य: सरकारों द्वारा मीडिया में हस्तक्षेप या दखल।

 2. कानूनी ढांचा: कानूनों का प्रेस पर प्रभाव और पत्रकारों की सुरक्षा।

 3. आर्थिक दबाव: विज्ञापन, सरकारी अनुदान या कॉर्पोरेट दबाव का असर।

 4. सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण: समाज की सहिष्णुता और मीडिया पर सामाजिक हमले।

 5. सुरक्षा की स्थिति: पत्रकारों पर हमले, डराने-धमकाने की घटनाएं या गिरफ्तारी।

भारत को सुरक्षा, राजनीतिक हस्तक्षेप, और कानूनी अवरोधों के संदर्भ में काफी कमजोर स्कोर मिला है।

भारत की स्थिति क्यों चिंताजनक है?

विदित है कि भारत पिछले कुछ वर्षों से लगातार नीचे की ओर जा रहा है, इसकी पिछले कुछ सालों से निम्नलिखित रैंकिंग प्राप्त हुई है।

2021: 142वीं रैंक

2022: 150वीं रैंक

2023: 161वीं रैंक

2024: 159वीं रैंक

2025: 151वीं रैंक

हालांकि इस साल भारत की रैंकिंग में 8 स्थानों का सुधार हुआ है, लेकिन अब भी यह रैंकिंग दक्षिण एशियाई लोकतांत्रिक ढांचे के लिए संतोषजनक नहीं मानी जा रही।

क्या है प्रमुख देशों की स्थिति:

नार्वे - 1
ब्रिटेन - 20
अमेरिका - 57
इजरायल - 112
रूस - 171
चीन - 178
उत्तर कोरिया - 179
इरिट्रिया - 180

रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में क्या कहा गया?

RSF की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ पत्रकारों पर आतंकवाद विरोधी कानूनों का प्रयोग किया गया है वहीं कश्मीर क्षेत्र में पत्रकारों की स्वतंत्रता सीमित है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि स्वतंत्र पत्रकारों को अक्सर डराया-धमकाया जाता है। वहीं डिजिटल निगरानी और सोशल मीडिया पर नियंत्रण पर भी चिंता जाहिर की गई है।उन्होंने कहा कि कई मीडिया समूहों पर राजनीतिक और आर्थिक दबाव देखा गया है।

सरकारी पक्ष क्या कहता है?

आपको बता दे कि भारत सरकार ने अतीत में RSF की रिपोर्टों और इसके पश्चिमी देशों के प्रति निष्पक्षता पर सवाल उठाया है।अधिकारियों का कहना रहा है कि रिपोर्ट्स में भौगोलिक और सांस्कृतिक समझ की कमी है, और भारत में प्रेस स्वतंत्र है लेकिन उसे जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल करना ज़रूरी है।

इसके अलावा, भारत में विभिन्न मीडिया संस्थान, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, और न्यायपालिका पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा में सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं।

दक्षिण एशिया में भारत की तुलना

श्रीलंका - 139
भारत - 151
भूटान - 152
पाकिस्तान -158
बांग्लादेश -149
अफगानिस्तान - 175

भारत की स्थिति अपने पड़ोसी देशों से बहुत बेहतर नहीं है,
 हालांकि वह चीन (178) और उत्तर कोरिया (179) जैसे निरंकुश देशों से ऊपर है।

पत्रकारों की सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा

RSF और अन्य संगठनों ने यह भी नोट किया है कि भारत में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा और मुकदमों की संख्या में इजाफा हुआ है। 2024-25 में कई पत्रकारों को रिपोर्टिंग के कारण हिरासत में लिया गया, जबकि कुछ को ऑनलाइन ट्रोलिंग और धमकियों का सामना करना पड़ा।

स्वतंत्र मीडिया के लिए जरूरी है संतुलन और सुरक्षा

भारत एक जीवंत लोकतंत्र है, और स्वतंत्र प्रेस उसकी रीढ़ है। लेकिन वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में लगातार निचली रैंकिंग यह संकेत देती है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा के क्षेत्र में सुधार की गुंजाइश अभी भी काफी है।सरकार, मीडिया हाउस और नागरिक समाज  सभी को मिलकर ऐसा वातावरण तैयार करना होगा जिसमें पत्रकार स्वतंत्र, निष्पक्ष और निर्भीक होकर काम कर सकें।