बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर; दर्शन होंगे पहले से आसान, पार्किंग सुविधा से लेकर... : लेकिन बांके बिहारी कॉरिडोर का विरोध थमने का नाम नहीं...जानें वजह?
बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर; दर्शन होंगे पहले से आसान, पार्किंग सुविधा से लेकर...

धर्म और संस्कृति: बांके बिहारी कॉरिडोर प्रोजेक्ट 900 करोड़ की लागत से भीड़ नियंत्रण और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए शुरू हुआ। गोस्वामी समुदाय और संपत्ति मालिकों का विरोध जारी है। 2028 तक पूरा होने का लक्ष्य है।

बांके बिहारी कॉरिडोर: 

बताया जा रहा है कि योगी सरकार का यह ड्रीम प्रोजेक्ट 5 एकड़ में बनकर तैयार होगा। इसके निर्माण में कम से कम 3 साल लगने वाले हैं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार लंबे समय से वृंदावन में बांके बिहारी कॉरिडोर का निर्माण चाहती है लेकिन गोस्वामी समाज के विरोध की वजह से सीएम योगी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट बीच मझधार में फंसा हुआ है। बड़ी बात यह है कि इस प्रोजेक्ट पर यूपी सरकार 500 करोड़ रुपए खर्च कर रही है अगर बांके बिहारी कॉरिडोर का निर्माण पूरा हो जाता है तो भक्त आसानी से दर्शन कर पाएंगे आरती के समय उन्हें ज्यादा जगह मिलेगी इसके ऊपर पार्किंग के लिए भी अलग से स्पेस होगा।

आखिर क्या है बांके बिहारी कॉरिडोर?

बताया जा रहा है कि योगी सरकार का यह ड्रीम प्रोजेक्ट 5 एकड़ में बनकर तैयार होगा। इसके निर्माण में कम से कम 3 साल लगने वाले हैं। कॉरिडोर की वजह से मंदिर का रास्ता पहले की तुलना में काफी चौड़ा तो हो ही जाएगा, इसके साथ-साथ एंट्री के लिए अलग से तीन गेट बनेंगे। 30000 वर्ग मीटर में पार्किंग एरिया खड़ा करने की भी तैयारी है। सरकार की माने तो इस कॉरिडोर को इस तरह से तैयार किया जाएगा कि इसका एक हिस्सा मंदिर क्षेत्र के लिए होगा तो वहीं दूसरा हिस्सा परिक्रमा का होगा।

अब सरकार के पास अपने सारे तर्क तैयार हैं, यूपी के ही कई बड़े अधिकारी इस समय वृंदावन में लोगों से बात कर रहे हैं। खुद सांसद हेमा मालिनी भी लोगों को इस कॉरिडोर के फायदे बताते नहीं थक रही हैं। सरकार के लिए राहत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी 5 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की इजाजत पहले ही दे दी है। ऐसे में कोर्ट की इजाजत है, सरकार के पास पैसा है लेकिन फिर भी सीएम योगी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट अभी पूरा नहीं हो पा रहा है।

लेकिन क्यों हो रहा है विरोध?

सबसे बड़ा विरोध मंदिर की सेवा करने वाले गोस्वामी समुदाय से है। वे कहते हैं कि मंदिर 1939 से मथुरा की अदालत की निगरानी में चला आ रहा है किसी ट्रस्ट या सरकार की दखलंदाजी यहां कभी नहीं रही। उन्हें डर है कि नए ट्रस्ट से पूजा-पद्धति और मंदिर की व्यवस्था पर असर पड़ेगा। इसके अलावा जिन 325 संपत्तियों को हटाया जाएगा उनके मालिक हो या चाहे दुकानदार हों या स्थानीय निवासी विरोध कर रहे हैं। कुछ ने तो खून से चिट्ठियां लिख दीं तो किसी ने बाजार बंद कर दिए। वे कहते हैं विरासत की ‘कुंज गलियां’ और कृष्ण लीलाओं से जुड़ी पहचान आधुनिक निर्माण में गुम हो जाएगी। विपक्षी दल खासकर समाजवादी पार्टी भी इसे मुद्दा बना रही है। सोशल मीडिया पर भावनात्मक पोस्ट्स वायरल हैं हालांकि इनमें से कई बिना प्रमाण के हैं।

बांके बिहारी कॉरिडोर बनने में होगा मंदिर फंड का इस्तेमाल

गोस्वामी समाज की नाराजगी इस समय इस कदर बढ़ चुकी है कि वो सरकार को सीधी चेतावनी दे रही है कि अगर सरकार ने कॉरिडोर बनाने का ज्यादा दबाव बनाया तो उस स्थिति में ठाकुर बांके बिहारी को यहां से लेकर पलायन कर जाएंगे।

एक हादसे के बाद कॉरिडोर की मांग

अब इस नाराजगी के बीच यह समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर बांके बिहारी में कॉरिडोर निर्माण की जरूरत क्यों पड़ी है। सरकार के जरूर अपने तर्क हैं, लेकिन एक हादसा भी है जिस वजह से इस कॉरिडोर की जरूरत महसूस होनी शुरू हो गई। यह बात 19 अगस्त 2022 की है जब मंगला आरती के दौरान दो श्रद्धालुओं क बांके बिहारी मंदिर में दर्दनाक मौत हो गई थी, वहा आठ भक्त घायल हुए थे। उस हादसे के बाद ही हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और वही से ही योगी सरकार को बांके बिहारी कॉरिडोर बनाने की इजाजत मिली। लेकिन अभी क्योंकि गोस्वामी समाज अपने विरोध पर अड़ा हुआ है, इस वजह से जमीन पर इस कॉरिडोर का निर्माण शुरू नहीं हो सका है।

अद्भुत है बांके बिहारी के प्रकट होने की ये कहानी.....

वृंदावन में बांके बिहारी जी का विशाल मंदिर है, जहां देश-विदेश से भक्त सिर्फ उनकी एक झलक पाने के लिए यहां आते हैं। किंवदंतियों के अनुसार मार्गशीर्ष माह की पंचम तिथि को बांके बिहारी यहां प्रकट हुए थे। यह मंदिर पुराने शहर में स्थित है। श्री बांके बिहारी मंदिर का निर्माण स्वामी हरिदास के वंशजों के सामूहिक के प्रयासों से हुआ था। मंदिर में बांके बिहारी की काले रंग की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में कृष्ण और राधा का मिलाजुला रूप समाया हुआ है। इसके पीछे प्रचलित लोक कथा के अनुसार स्वामी हरिदास भगवान श्रीकृष्ण को अपना आराध्य मानते थे।

उन्होंने अपना संगीत कन्हैया को ही समर्पित कर रखा था। वह अकसर वृंदावन स्थित श्री कृष्ण की रास लीला स्थली में बैठकर संगीत से कन्हैया की आराधना करते थे। माना जाता है कि जब भी स्वामी हरिदास श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होते तो श्रीकृष्ण उन्हें दर्शन देते थे। एक दिन स्वामी हरिदास के शिष्य ने कहा कि बाकी लोग भी राधे कृष्ण के दर्शन करना चाहते हैं। उनकी भावनाओं का ध्यान रखकर स्वामी हरिदास भजन गाने लगे। जब श्रीकृष्ण और राधा ने उन्हें दर्शन दिए।

स्वामी हरिदास ने बांके बिहारी नाम दिया...

तो उन्होंने भक्तों की इच्छा उनसे जाहिर की। तब राधा-कृष्ण ने उसी रूप में उनके पास ठहरने की बात कही। इस पर हरिदास ने कहा कि कान्हा मैं तो संत हूं, तुम्हें तो कैसे भी रख लूंगा लेकिन राधा रानी के लिए रोज नए आभूषण और वस्त्र कहां से लाऊंगा। भक्त की बात सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराए और इसके बाद राधा व कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई। कृष्ण-राधा के इस रूप को स्वामी हरिदास ने बांके बिहारी नाम दिया। ध्रुपद के जनक स्वामी हरिदास का जन्म विक्रम संवत 1535 में भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था।

पिता आशुधीर, माता गंगा देवी के साथ अपने उपास्य राधा माधव की प्रेरणा से अनेक तीर्थयात्रा करने के बाद अलीगढ़ के कोल स्थित हरिदासपुर गांव में बस गए। संगीत सम्राट तानसेन एवं बैजू बावरा जैसे संगीतज्ञ स्वामी हरिदास के शिष्य थे। संवत 1627 में एक बार अकबर बादशाह भी तानसेन की प्रेरणा से वृंदावन आए थे। 

तानसेन उन्हें स्वामीजी के पास ले गए किन्तु वे जानते थे स्वामी जी अपने मन से गाते हैं किसी को सुनाने के लिए नहीं। इसलिए एक दिन तानसेन एक राग का रियाज करने लगे और जानबूझ कर राग के सुर गलत लगा दिए। गलत सुर सुनकर स्वामी हरिदास जी की बहुत क्रोध आया और वह सही राग गाने लगे। उनका मधुर गायन सुनते ही आकाश के बदल झमाझम बरस उठे और सम्राट अकबर भी उनके मुरीद हो गए। बिहारी जी के सम्पूर्ण भारत में अलग-अलग नामों से कई मंदिर हैं, किन्तु इस मंदिर की विशेषता इसको अन्य मंदिरों से भिन्न बनाती है।

बांके बिहारी जी की मंगला आरती केवल जन्माष्टमी के दिन...

मदिर के सेवायत शैलेंद्र गोस्वामी बताते हैं कि अन्य मंदिरों की तरह यहां हर रोज मंगला आरती नहीं होती। कहते हैं कि यहां निधिवन में हर रात्रि रास लीला के बाद कृष्ण और राधा विश्राम करते हैं और सुबह-सुबह आरती करने से उनकी निद्रा भंग होती है। बांके बिहारी जी की मंगला आरती केवल जन्माष्टमी के दिन ही होती है। इसी प्रकार केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही श्री बांके बिहारी जी को बंशी धारण कराई जाती है।

केवल श्रावण तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं और उनके चरण दर्शन भी केवल अक्षय तृतीया के दिन होते हैं। इन दिनों में ठाकुर जी के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग उमड़ते हैं। मंदिर में भगवान कृष्ण की पूजा के तहत उनका विधिवत शृंगार किया जाता है। उन्हें भोग में माखन, मिश्री, केसर, चंदन और गुलाब जल चढ़ाया जाता है। वृन्दावन में सबसे ज्यादा भीड़ यदि किसी मंदिर में होती है तो वह यही मंदिर है।

मान्यता है कि बांके बिहारी की छवि को लगातार देखने से भक्त श्रीकृष्ण की भक्ति में वशीभूत हो उनके साथ ही चला जाता है। इसके लिए मंदिर में उनकी मूर्ति के आगे एक पर्दा लगा है जो हर दो मिनट में हिलता है ताकि कोई भी बांके बिहारी को एक टक न देख सके। माना जाता है कि उनकी मूर्ति में इतना आकर्षण है कि लोग उन्हें देखते ही उनकी ओर खींचे चले जाते हैं। साथ ही उनकी आंखों से अपने आप आंसू बहने लगते हैं।