गौतम बुद्ध नगर का क्षेत्र जो लंबे समय तक बहुजन समाज पार्टी का एक मजबूत गढ़ रहा है। लेकिन समय और परिस्थितियों में हुए बदलाव के बाद धीरे-धीरे यहां से बसपा की बुनियाद कमजोर होती चली गई और समय के साथ बसपा सुप्रीमो के गृह जनपद में अभेद्य दुर्ग की मीनारें भी पूरी तरह ढह गई। क्या हुआ ऐसा जो अपने ही गढ़ में बसपा सुप्रीमो की पकड़ न के बराबर हो गई, यह चिंतन मनन का विषय हैं।
आपको बता दें कि वर्तमान में गौतमबुद्ध नगर की पांचों विधानसभा तथा लोकसभा सीट पर है भाजपा का कब्जा विद्यमान है। वर्तमान में बसपा पुराने कांग्रेसियों के सहारे ही अपनी नैया को पार लगाने की कोशिश में है। बसपा ने इस बार यहां से राजेंद्र सिंह सोलंकी को प्रत्याशी बनाया है और बिना गठबंधन के आगे बढ रही हैं।
दरअसल पार्टी में समय के साथ हुए परिवर्तन की वजह से कि इसके योद्धा अर्थात नेता अपना राजनीतिक भविष्य तलाशते हुए पार्टी से अलग हो गए। जिस वजह से बसपा का कैडर वोट भी धीरे धीरे समय के साथ दूसरे दलों में शिफ्ट होता चला गया।
गौतमबुद्ध नगर से साल 2009 में सांसद रहे सुरेंद्र नागर, जेवर से विधायक रहे पूर्व मंत्री वेदराम भाटी, दादरी के पूर्व विधायक सतवीर गुर्जर, जेवर से पूर्व प्रत्याशी नरेंद्र भाटी डाढ़ा समेत कई नेता धीरे-धीरे पार्टी से अलग हो गए। इन सभी ने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया।
अगर पार्टी के वोट प्रतिशत की बात की जाए तो साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा को कुल 33.24 प्रतिशत वोट मिले तथा सुरेंद्र नागर ने यहां से जीत भी हासिल की थी। वहीं इसके बाद साल 2014 और साल 2019 में बसपा के मतों का प्रतिशत गिरता चला गया और यह क्रमशः 16.53 प्रतिशत और 35.46 प्रतिशत ही शेष बचा।
इसी प्रकार से जेवर विधानसभा के चुनाव में भी साल 2012 में वेदराम भाटी को 37.82 प्रतिशत वोट मिले थे। लेकिन साल 2022 तक यह सिर्फ 19.51 प्रतिशत ही रह गया। इसी प्रकार दादरी में साल 2012 से लेकर साल 2022 तक के हुए विधानसभा चुनावों में भी बसपा का वोट प्रतिशत 40.68 प्रतिशत से गिरता हुआ 11.44 प्रतिशत तक पहुंच गया। नोएडा में अगर बसपा के प्रदर्शन और उसके वोट प्रतिशत की बात करें तो यह साल 2022 तक मात्र 4.68 प्रतिशत ही बचा था।
मतदाताओं के शिफ्ट होने से जातीय समीकरण भी हो गए फेल
बहुजन समाज पार्टी ने कभी पिछड़ा और दलित कार्ड के सहारे राजनीति की ऊंची उड़ान थामी थी। पार्टी ने बीच बीच में कई बार ब्राह्मण कार्ड भी खेला। बाद में यह मतदाता दूसरी पार्टियों में शिफ्ट होते चले गए। मोदी लहर में भाजपा की जीत ने बसपा के सारे समीकरण फेल कर दिए।
साल 2019 में हुए लोकसभा और साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने गौतमबुद्ध नगर संसदीय क्षेत्र के पांचों विधानसभाओं पर अपनी जीत हासिल की और एक मजबूत किलेबंदी कर ली। जिसके बाद से बहुजन समाज पार्टी का पुराना किला यहां से समाप्त हो गया और वर्तमान समय में पार्टी सिर्फ अपना अस्तित्व बचाने के लिए ही चुनाव लड़ रही है।
होम डिस्ट्रिक्ट होने से मायावती को मिली थी मजबूती
आंकड़ों के मुताबिक देखें तो साल 1995, 1997, 2002 से लेकर साल 2003 तक तथा 2007 से लेकर साल 2012 के अपने कार्यकाल में बसपा लगातार मजबूत होती ही रही। इसकी अगर सबसे बड़ी वजह देखी जाए तो यह मायावती का गृह जनपद गौतमबुद्ध नगर होना रहा है।
इसी कड़ी में बसपा के टिकट पर जेवर विधानसभा क्षेत्र से साल 2002 में नरेंद्र कुमार, साल 2007 में होराम सिंह और साल 2012 और साल 2017 में वेदराम भाटी पार्टी की तरफ से विजेता घोषित हुए। इसी तरह से दादरी में विधानसभा क्षेत्र से साल 2007 से लेकर साल 2017 तक सतवीर सिंह गुर्जर का यहां कब्जा रहा।
नए परिसीमन होने के बाद साल 2009 के चुनाव में बसपा के टिकट पर सुरेंद्र नागर ने गौतमबुद्ध नगर लोकसभा क्षेत्र से अपनी जीत दर्ज की थी।