वेस्ट यूपी: होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले चरण में उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर चुनाव होने हैं लेकिन पश्चिमी यूपी में देखा जाए तो पार्टियों का शोर यहां कमजोर नजर आ रहा है। फिलहाल यहां पर ऐसा सन्नाटा पसरा हुआ है मानों चुनाव है ही नहीं। चुनावों के लाउडस्पीकर गायब हैं। पोस्टर्स के साथ साथ होर्डिंग भी इस बार बेहद कम नजर आ रहे हैं।
समझते हैं क्या हैं कमजोर माहौल के प्रमुख कारण:
किसी भी चुनाव में नेताओ के मुद्दो की प्रमुख भूमिका रहती है। उनके चुनावी प्रचार में उनके मुद्दो से आकर्षित होकर ही लोग राजनीति और चुनाव में दिलचस्प लेते हैं। लेकिन इस बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को आकर्षित करने वाले मुद्दों पर अपनी चुप्पी साधी हुई है। जिस वजह से लोग चुनाव में बढ़ चढ़ कर भाग नहीं ले रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों एवं उनके नेताओं की सक्रियता भी इस बार कम दिखाई दे रही है। विभिन्न दल लगातार पार्टी के उम्मीदवारों में बदलाव करते नजर आ रहे हैं। जिससे पार्टी के साथ साथ जनता भी असमंजस में पड़ी हुई है और खुल कर किसी प्रत्याशी एवं पार्टी का समर्थन नहीं कर पा रही है।
इसके साथ ही चुनाव का यह समय ग्रामीण क्षेत्रों में गेंहू कटाई का भी समय है और लोग चुनाव में भाग लेने से ज्यादा अपने खेतों और फसलों पर ध्यान दे रहे हैं, जो जरूरी भी नजर आता है। वहीं दूसरी ओर मैदानी क्षेत्रों में गर्मी का पारा इतना चढ़ गया है की लोगों की चुनाव प्रचार में भागीदारी कम हो गई है।
चुनाव के इस मौसम में देश में विभिन्न त्यौहारों का भी समय है। जैसे ईद, रमजान और रामनवमी जैसे त्यौहारों के चलते भी लोग अपने घरों पर रह रहे हैं तथा चुनाव प्रचार में अपनी रुचि कम दिखा रहे हैं।
नेताओं की आगामी दिनों में प्रस्तावित कुछ रैलियां:
10 अप्रैल को मंत्री राजनाथ सिंह की सहारनपुर में
10 अप्रैल को जयंत चौधरी की मुजफ्फरनगर में
12 अप्रैल की अमित शाह की मुरादाबाद में
12 अप्रैल को अखिलेश यादव की पीलीभीत और पूरनपुर में
12 अप्रैल को जयंत चौधरी की बिजनौर में
14 अप्रैल को अखिलेश यादव की रामपुर जिले में
14 अप्रैल की मायावती की सहारनपुर और मुजफ्फरपुर में
बसपा और सपा ने अभी तक नहीं दिया कोई चुनावी नारा:
राजनीतिक दलों के अलावा अगर मतदाताओं की बात करें तो उनमें भी चुनावी उदासीनता नजर आ रही है। इसके साथ ही यहां नारों का शोर भी काफी कम या यूं कहें कि बिल्कुल नहीं है। भाजपा अपने सिर्फ एक ही नारे, 'अबकी बार 400 पार, के साथ ही लगातार आगे बढ़ रही है। तो वहीं कांग्रेस पार्टी 'अब होगा न्याय' वाले अपने नारे के साथ चुनाव में जनता को जोड़ना चाहती है।
वही दूसरी ओर चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस को छोड़ बसपा और सपा ने तो अब तक कोई चुनावी नारा ही नहीं दिया है। मेरठ और सहारनपुर में प्रधानमंत्री की रैली के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सभी सीटों पर प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन भी कर चुके हैं।
अखिलेश यादव, मायावती तथा कांग्रेस से राहुल और प्रियंका की कई सभाएं अभी प्रस्तावित हैं। पार्टी चुनाव में अपने प्रत्याशियों को लेकर भी असमंजस में पड़ी हुई हैं और इस वजह से भी चुनाव प्रचार फिलहाल ठंडा पड़ा हुआ है।
पहले तांगे से होता था प्रचार, अब आया सोशल मीडिया का दौर:
81 वर्षीय लाजकृष्ण गांधी जी सहारनपुर नगर से विधायक रहे हैं। उन्होने अपने पुराने दिनों के चुनाव को याद करते हुए बताया कि उनके समय में तांगे से चुनाव प्रचार हुआ करता था। उस दौरान घरों और अन्य किसी दीवार पर लेखन ही प्रचार का प्रमुख तथा एक मात्र तरीका था।
तांगे के बाद विकास हुआ और समय बदला तो खुली जीप का दौर आया। धीरे धीरे समाज और देश में विकास होता गया । उसी का।परिणाम है की आज का दौर पूरी तरह से सोशल मीडिया का दौर है। हम एक स्थान पर बैठ कर ही पूरे देश में चुनाव प्रचार कर सकते हैं।
साल 2014 में इन 8 सीटों पर मतदान की दर:
स्थान वर्ष
सहारनुपर 74.24
कैराना 73.08
मुजफ्फरनगर 69.72
बिजनौर 67.88
नगीना 63.09
रामपुर 59.16
मुरादाबाद 63.66
पीलीभीत 62.87
साल 2019 में इन 8 सीटों पर मतदान की दर:
स्थान वर्ष
सहारनुपर 70.87
कैराना 67.45
मुजफ्फरनगर 68.42
बिजनौर 66.22
नगीना 63.66
रामपुर 63.15
मुरादाबाद 65.46
पीलीभीत 67.41
वेस्ट यूपी: होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले चरण में उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर चुनाव होने हैं लेकिन पश्चिमी यूपी में देखा जाए तो पार्टियों का शोर यहां कमजोर नजर आ रहा है। फिलहाल यहां पर ऐसा सन्नाटा पसरा हुआ है मानों चुनाव है ही नहीं।
चुनावों के लाउडस्पीकर गायब हैं। पोस्टर्स के साथ साथ होर्डिंग भी इस बार बेहद कम नजर आ रहे हैं।
समझते हैं क्या हैं कमजोर माहौल के प्रमुख कारण:
किसी भी चुनाव में नेताओ के मुद्दो की प्रमुख भूमिका रहती है। उनके चुनावी प्रचार में उनके मुद्दो से आकर्षित होकर ही लोग राजनीति और चुनाव में दिलचस्प लेते हैं। लेकिन इस बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को आकर्षित करने वाले मुद्दों पर अपनी चुप्पी साधी हुई है। जिस वजह से लोग चुनाव में बढ़ चढ़ कर भाग नहीं ले रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों एवं उनके नेताओं की सक्रियता भी इस बार कम दिखाई दे रही है। विभिन्न दल लगातार पार्टी के उम्मीदवारों में बदलाव करते नजर आ रहे हैं। जिससे पार्टी के साथ साथ जनता भी असमंजस में पड़ी हुई है और खुल कर किसी प्रत्याशी एवं पार्टी का समर्थन नहीं कर पा रही है।
इसके साथ ही चुनाव का यह समय ग्रामीण क्षेत्रों में गेंहू कटाई का भी समय है और लोग चुनाव में भाग लेने से ज्यादा अपने खेतों और फसलों पर ध्यान दे रहे हैं, जो जरूरी भी नजर आता है। वहीं दूसरी ओर मैदानी क्षेत्रों में गर्मी का पारा इतना चढ़ गया है की लोगों की चुनाव प्रचार में भागीदारी कम हो गई है।
चुनाव के इस मौसम में देश में विभिन्न त्यौहारों का भी समय है। जैसे ईद, रमजान और रामनवमी जैसे त्यौहारों के चलते भी लोग अपने घरों पर रह रहे हैं तथा चुनाव प्रचार में अपनी रुचि कम दिखा रहे हैं।
नेताओं की आगामी दिनों में प्रस्तावित कुछ रैलियां:
10 अप्रैल को मंत्री राजनाथ सिंह की सहारनपुर में
10 अप्रैल को जयंत चौधरी की मुजफ्फरनगर में
12 अप्रैल की अमित शाह की मुरादाबाद में
12 अप्रैल को अखिलेश यादव की पीलीभीत और पूरनपुर में
12 अप्रैल को जयंत चौधरी की बिजनौर में
14 अप्रैल को अखिलेश यादव की रामपुर जिले में
14 अप्रैल की मायावती की सहारनपुर और मुजफ्फरपुर में
बसपा और सपा ने अभी तक नहीं दिया कोई चुनावी नारा:
राजनीतिक दलों के अलावा अगर मतदाताओं की बात करें तो उनमें भी चुनावी उदासीनता नजर आ रही है। इसके साथ ही यहां नारों का शोर भी काफी कम या यूं कहें कि बिल्कुल नहीं है। भाजपा अपने सिर्फ एक ही नारे, 'अबकी बार 400 पार, के साथ ही लगातार आगे बढ़ रही है। तो वहीं कांग्रेस पार्टी 'अब होगा न्याय' वाले अपने नारे के साथ चुनाव में जनता को जोड़ना चाहती है।
वही दूसरी ओर चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस को छोड़ बसपा और सपा ने तो अब तक कोई चुनावी नारा ही नहीं दिया है। मेरठ और सहारनपुर में प्रधानमंत्री की रैली के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सभी सीटों पर प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन भी कर चुके हैं।
अखिलेश यादव, मायावती तथा कांग्रेस से राहुल और प्रियंका की कई सभाएं अभी प्रस्तावित हैं। पार्टी चुनाव में अपने प्रत्याशियों को लेकर भी असमंजस में पड़ी हुई हैं और इस वजह से भी चुनाव प्रचार फिलहाल ठंडा पड़ा हुआ है।
पहले तांगे से होता था प्रचार, अब आया सोशल मीडिया का दौर:
81 वर्षीय लाजकृष्ण गांधी जी सहारनपुर नगर से विधायक रहे हैं। उन्होने अपने पुराने दिनों के चुनाव को याद करते हुए बताया कि उनके समय में तांगे से चुनाव प्रचार हुआ करता था। उस दौरान घरों और अन्य किसी दीवार पर लेखन ही प्रचार का प्रमुख तथा एक मात्र तरीका था।
तांगे के बाद विकास हुआ और समय बदला तो खुली जीप का दौर आया। धीरे धीरे समाज और देश में विकास होता गया । उसी का।परिणाम है की आज का दौर पूरी तरह से सोशल मीडिया का दौर है। हम एक स्थान पर बैठ कर ही पूरे देश में चुनाव प्रचार कर सकते हैं।
साल 2014 में इन 8 सीटों पर मतदान की दर:
स्थान वर्ष
सहारनुपर 74.24
कैराना 73.08
मुजफ्फरनगर 69.72
बिजनौर 67.88
नगीना 63.09
रामपुर 59.16
मुरादाबाद 63.66
पीलीभीत 62.87
साल 2019 में इन 8 सीटों पर मतदान की दर:
स्थान वर्ष
सहारनुपर 70.87
कैराना 67.45
मुजफ्फरनगर 68.42
बिजनौर 66.22
नगीना 63.66
रामपुर 63.15
मुरादाबाद 65.46
पीलीभीत 67.41