स्टेट बैंक को आज ही देनी होगी चुनावी बांड/चंदे को किसने खरीदा, किसने भुनाया की पूरी जानकारी: सुप्रीम कोर्ट ने SBI की याचिका को ख़ारिज करते हुऐ लगाई फटकार, दिया अंतिम अल्टीमेटम
स्टेट बैंक को आज ही देनी होगी चुनावी बांड/चंदे को किसने खरीदा, किसने भुनाया की पूरी जानकारी

सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी समस्त जानकारी 11 मार्च तक देने के अपने निर्णय के बाद एसबीआई यानी भारतीय स्टेट बैंक को और अधिक समय देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि इसी माह की 12 तारीख तक एसबीआई इलेक्टोरल बॉन्ड की ख़रीद से संबंधित समस्त जानकारी उपलब्ध कराए।

बता दें की न्यायालय ने चुनाव आयोग को भी यह निर्देश दिया है की वह इस जानकारी को अपनी बेवसाइट पर 15 मार्च की शाम 5 बजे तक सार्वजनिक कर दे।

अदालत द्वारा दिए गए इस निर्णय के बाद पारदर्शिता की बात करने वाले लोगों ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी को सार्वजनिक किया जाता है तो जनता को भी राजनीतिक दलों के लिए होने वाली फंडिंग के बारे में पता चल सकेगा। 

समझते हैं कोर्ट का पूरा विवरण:

दरअसल SBI ने 4 मार्च को एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी। SBI ने इस याचिका में इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े समस्त विवरण को देने हेतु 30 जून तक के समय की मांग की थी।

बता दें की सुप्रीम कोर्ट ने 15 फ़रवरी को अपने एक फ़ैसले में यह कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड को किसके द्वारा खरीदा गया एवं उसको किसने भुनाया है, इन सबकी जानकारी एसबीआई 6 मार्च तक उपलब्ध कराए।
जिसके बाद दायर याचिका में SBI के द्वारा यह कहा गया था की इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाने वाले तथा बॉन्ड को भुनाए वाले से जुड़े डेटा को दो अलग-अलग स्थानों पर रखा गया है। 

SBI का कहना था ये सभी डेटा उसके सेंट्रल डेटाबेस में उपलब्ध नहीं है। इसलिए उसका कहना था कि इन सभी का मिलान करने के लिए अधिक से अधिक काम करने की ज़रूरत पड़ेगी। SBI ने अपनी दलील में कहा था कि हर बॉन्ड में एक यूनिक नंबर दिया जाता है, जिसे अल्ट्रा वॉयलट लाइट में पढ़ना पड़ेगा।
इसके बाद ही किसी बॉन्ड का पता चल पाएगा। इसके अतरिक्त बॉन्ड पर ऐसा कोई चिह्न नहीं है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि उस बॉन्ड का ख़रीदार कौन है क्योंकि ये सभी बियरर बॉन्ड हैं। 

एसबीआई ने अपनी अपील में कहा था कि डिज़िटल तरीक़े से बॉन्ड की संख्या की सभी जानकारी को रखा गया है। वहीं दूसरी तरफ उसे ख़रीदने वालों की समस्त जानकारी को भौतिक रूप में रखा गया है। ऐसे में दोनों जानकारियों को मिलाने में काफी समय लगेगा। 

बता दें की एसबीआई को अप्रैल 2019 से लेकर फरवरी 2024 के बीच करीबन 22,217 बॉन्ड बेचे गए हैं। इन सभी बॉन्ड्स की जानकारी का बैंक को मिलान करना था।

जानते है की क्या कहा अदालत ने:

SBI द्वारा दायर की गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि कोर्ट ने एसबीआई से यह नहीं कहा है कि उसको इन दोनों जानकारियों को मिलाना है। बल्कि अदालत के द्वारा तो एसबीआई से यह कहा गया है कि उन्हें सिर्फ 2 तरह की जानकारी देनी है। 

जिसमे पहली यह है कि बॉन्ड कोई भी कब ख़रीदा गया। जिसमे ख़रीदने वाले का नाम तथा ख़रीदे गए प्रत्येक बॉन्ड की क्या क़ीमत थी, ये बताना होगा। वहीं दूसरी यह की कितने बॉन्ड किस पार्टी ने भुनाया है तथा ये बॉन्ड किस तारीख़ को भुनाए गए हैं तथा भुनाए गए सभी बॉन्ड का कितना मूल्य है।

अदालत का यह मानना है कि यह सभी जानकारी एसबीआई के पास मौजूद थी। इसलिए बिना किसी देरी किए वह चुनाव आयोग के साथ अपनी जानकारी साझा कर सकता है। हालांकि एसबीआई के द्वारा भी इस बात को स्वीकार किया गया था किंतु उसने जानकारी उपलब्ध कराने के लिए और 3 हफ्तों की मांग की थी। जिसके बाद  अदालत के द्वारा उसके इस अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया गया है।

कोर्ट ने 12 अप्रैल 2019 को अपने दिए एक निर्णय में सभी राजनीतिक दलों को यह आदेश दिया था की वे हर इलेक्टोरल बॉन्ड के दानदाताओं का विवरण चुनाव आयोग को उपबंध कराएंगे। कोर्ट ने इसमें यह भी कहा गया था कि राजनीतिक दल यह भी बताएं की बॉन्ड की क़ीमत क्या थी तथा उसे किस खाते में और किस तारीख़ को भुनाया गया था। कोर्ट का यह आदेश सितंबर 2023 वर्ष तक के लिए ही था। अदालत ने बीते सोमवार को इसकी जानकारी चुनाव आयोग को अपनी बेवसाइट देने के लिए कहा। 

इसके साथ ही अदालत ने SBI के अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक से यह भी कहा है कि यदि वे 12 मार्च तक समस्त जानकारी को पेश नहीं करेंगे तो इसे आदेश को जानबूझकर ना मानना समझा जायेगा और उनके ख़िलाफ़ अवमानना की कार्रवाई भी की जाएगी।

अदालत ने एसबीआई को भी लगाई फटकार:

चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि ''पिछले 26 दिनों में आपने इनके मिलान का कितना काम कर लिया है? कोर्ट ने कहा कि आपने अपनी याचिका में ये सभी बातें क्यों नहीं बताई। आपको इसकी जानकारी अपने हलफ़नामे में दी जानी चाहिए थी। उन्होंने कहा की हम कुछ हद तक आपसे यह उम्मीद करते हैं कि अपने यह काम किया है।''

SBI के वकील हरीश साल्वे ने कोर्ट के इस सवाल पर यह तर्क दिया कि वह इसलिए समय मांग रहे हैं जिससे बैंक ख़रीदारों की पहचान अच्छे से की जा से और उसमे कोई ग़लती न हो। उनके इस तर्क पर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा की ''यह बैंक देश का नंबर-1 बैंक है। इसलिए हम यह भी उम्मीद करते हैं कि वे इसे संभाल पाने में भी सक्षम होंगे।'’

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का क्या होगा असर:

क़ाननू के कई जानकारों ने तो अदालत के इस फ़ैसले का दिल से स्वागत किया है। उनका यह कहना है कि इस फैसले का असर बहुत बड़ा होगा। 
कहा जा रहा है की इसका देश के सभी राजनीतिक दलों तथा उनको मिलने वाले चंदे पर भी व्यापक प्रभाव पड़ेगा। सभी राजनीतिक दलों के लिए अब चीजें पारदर्शी हो जाएंगी। जिससे समस्त राजनीतिक पार्टियां अब इस बात कि भी चिंता करेंगी कि उन्हें चंदा किससे तथा किस कार्य के लिए मिला है। 

बता दें की सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश दीपक गुप्ता के द्वारा चुनावी बॉन्ड मामले पर एक बार सुनवाई की गई थी। जिसके बाद अब फिसरे फ़ैसला आने पर कोर्ट ने कहा है की '' एसबीआई को यह आदेश दिया गया है कि वह 12 मार्च की शाम तक समस्त जानकारी दें।”

उन्होंने यह भी कहा कि एसबीआई का यह तर्क बिल्कुल बेतुका है कि उन्हें दोनो जानकारी को आपस में मिलने की ज़रूरत है। वे सिर्फ़ जानकारी को छिपाना चाहते थे ,ताकि जानकारी न देनी पड़े। 

ग़ैर सरकारी संगठन ADR यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट के जगदीप ने भी इसे कोर्ट का एक महत्वपूर्ण आदेश बताया है। बता दें की इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े हुए मामले में एडीआर भी एक याचिकाकर्ता के रूप में शामिल था। 
उन्होंने कहा की ''हालांकि अब अलग-अलग सूचियां होंगी। जिसमे एक सूची देने वालों की होगी जबकि दूसरी बॉन्ड को भुनाने से मिलने वाले पैसे की होगी। इसलिए इससे अब नई जानकारी भी सामने आएगी।''

उन्होंने आगे कहा की ''अलग सूची में पहचान संबंधी भी कई विशेषताएं होंगी, जैसे की तारीख़ क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड को मात्र 15 दिन में ही भुनाना होता था। इसलिए इससे यह पता लगेगा की किसी राजनीतिक दल ने कितनी राशि का बॉन्ड भुनाया है तथा किसने क्या छुड़ाया है।

फ़ैसले का बीजेपी पर क्या प्रभाव पड़ेगा:

चुनावी चंदे को लेकर इसमें पारदर्शिता की बात करने वाली अंजली भारद्वाज ने कहा है की ऐसा कोई भी कारण नहीं था कि एसबीआई के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का पालन ना किया जाए क्योंकि उनके पास पहले से ही पूरा डेटा मौजूद है। इसलिए ऐसा लगता है कि एसबीआई जान बूझ कर चुनाव से पहले यह डेटा देना ही नहीं चाहती थी।

उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे में एक सवाल पैदा होना तो स्वाभाविक है कि एसबीआई यह डेटा क्यों नहीं देना चाहती थी? एसबीआई को कौन रोक रहा था तथा इसमें एसबीआई क्या छुपा रही है तथा यह सब किसके लिए छुपा रही है?

भारद्वाज ने कहा की जो राजनीतिक दल हैं, ख़ासकर देखे तो सत्ताधारी दल हैं, उन्हें ही केवल इलेक्टोरल बॉन्ड का काफी बड़ा हिस्सा मिलेगा। इसलिए यह तो तय बात है कि बीजेपी को ही सबसे ज़्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम पैसा मिला है।

बीजेपी के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड सबसे ज्यादा फ़ायदेमंद रहे हैं। उन्होंने बताया की इलेक्टोरल बॉन्ड पर आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के हिसाब से देखे तो बीजेपी को साल 2017-18 से लेकर साल 2022-23 के बीच करीबन 6,566 करोड़ रुपये तक के इलेक्टोरल बॉन्ड मिले है। जिसमे इस दौरान कुल 9,200 करोड़ रूपये के इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए गए थे। 

कोर्ट ने अपने फ़ैसले में यह भी कहा था कि ऐसा भी हो सकता है की जब कंपनियां राजनीतिक दलों को कोई चंदा देती हैं, तो उन्होंने भी चंदे के बदले में किसी प्रकार का फायदा दिया जाता हो। 
इसको आधार बना कर भारद्वाज कहती हैं की ''जब सत्ताधारी दल को किसी के द्वारा चंदा दिया जाता है तो ऐसा बिल्कुल हो सकता है की वह किसी उम्मीद में दिया गया हो। चंदा देने वाला यह सोचता है कि यदि हम पैसे देंगे तो इससे हम सरकार के फ़ैसलों तथा उसकी नीतियों पर भी प्रभाव डाल पाएंगे।''

अंजली का कहना है की '' कोर्ट के फैसले के बाद बहुत सारी चीज़ों पर रोशनी पड़ेगी। उनका मानना है की कोई भी फ़ायदा लेना भ्रष्टाचार के लिए सबसे बड़ा कारण होता है। किसकी तथा किस कंपनी को कोई ठेका मिल रहा है, देश में क्या नीतियां बन रही हैं तथा क्या वो सभी नीतिया देश की कुछ कंपनियों को ही फ़ायदा पहुंचा रही हैं? तथा क्या उन कंपनियों ने कोई इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से सत्ताधारी दल को पैसे दिए थे। '’ ये समस्त बाते अब उजागर हो सकेंगी।

ट्विटर पर आई प्रतिक्रियाएं:

सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने मीडिया अकाउंट एक्स पर लिखा की ''इलेक्टोरल बॉन्ड जल्द ही भारतीय इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला साबित होने वाला है, जो भ्रष्ट उद्योगपतियों तथा सरकार के नेक्सस की पोल खोल देगा तथा साथ ही नरेंद्र मोदी का भी असली चेहरा देश के सामने ले आएगा।''

वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर बीजेपी नेता पृथ्वीराज हरिचंदन ने कहा की इसकी पूरी तरह अच्छे से जांच होनी चाहिए कि क्या इलेक्टोरल बॉन्ड से किसी प्रकार का राजनीतिक भ्रष्टाचार बढ़ा है या कम हुआ है? उन्होंने कहा की कोर्ट को ही इसकी दोबारा जांच करानी चाहिए और ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुरोध है।

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