उत्तर प्रदेश में अस्तित्व के संकट से जूझती कांग्रेस: लायक उम्मीदवारों की कमी और गांधी परिवार के न लड़ने से कार्यकर्ताओं में हैं निराशा का माहौल? 
उत्तर प्रदेश में अस्तित्व के संकट से जूझती कांग्रेस

भारत में सबसे ज्यादा समय तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पार्टी वर्तमान समय में सीटों के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में केवल सोनिया गांधी के तहत् कांग्रेस 1 सीट जीतने में कामयाब हो सकी थी। ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि बीजेपी के "अब की बार 400 पार" के नारे के बीच कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंडिया गठबंधन तथा उत्तर प्रदेश में खुद कांग्रेस इसका प्रतिकार किस प्रकार से कर पाएगी। 

इस समय उत्तर प्रदेश से कांग्रेस का कोई भी सदस्य राज्यसभा में नहीं है वहीं, लोकसभा में केवल एक सीट है। 1984 में 85(उत्तराखंड सहित) में से 83 सीट जीतने वाली कांग्रेस पार्टी में कोई भी लोकसभा सिटिंग सदस्य नहीं है जो चुनाव लड़ सके।

 गौरतलब है कि सोनिया गांधी राज्यसभा जा चुकी हैं। ऐसे में कोई भी राष्ट्रीय स्तर का नेता उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से चुनाव लड़ने का इच्छुक नहीं है। 

 कार्यकर्ताओं में कम होता जा रहा है उत्साह

भारत जोड़ों यात्रा के माध्यम से राहुल गांधी ने कांग्रेस में नया उत्साह पैदा किया था। ऐसे में उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ता उम्मीद कर रहे थे कि यहां से कांग्रेस के बड़े चेहरे मैदान में उतरेंगे किंतु अभी तक ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है। 2019 के पिछले चुनाव में पूरे प्रदेश में सिर्फ सोनिया गांधी ही जीत सकी थीं, जबकि राहुल गांधी तक अमेठी से स्मृति ईरानी से हार गये थे। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 67 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। अभी, हाल ही में गठित कांग्रेस की यूपी इकाई की राज्य चुनाव समिति ने "सर्वसम्मति से सिफारिश" की कि गांधी परिवार के सदस्यों को अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ना चाहिए। 

इस बीच सोनिया गांधी राज्यसभा में चली गईं और राहुल गांधी के अमेठी से चुनावी मैदान में लड़ने की कोई संभावना नहीं दिख रही है। ऐसे में कार्यकर्ताओं का उत्साह कम होना ही था।कार्यकर्ताओं को प्रियंका गांधी से उम्मीद थी, लेकिन उनके भी चुनाव लड़ने की संभावना नहीं दिख रही है। इससे कार्यकर्ता निराश हैं। यूपी में फिलहाल समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का गठजोड़ है। पार्टी के पास समस्या यह है कि सपा ने उसे सिर्फ 17 सीटें ही दी हैं, लेकिन इन सीटों पर भी उतारने के लिए उसके पास उम्मीदवार नहीं हैं।

 कांग्रेस का घट रहा लगातार जनाधार

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस न केवल सीटों के लिहाज से बल्कि वोटिंग के लिहाज से भी लगातार कम होती जा रही है। कांग्रेस के कई  उम्मीदवारों की चुनावों में जमानत तक जब्त हो जा रहीं हैं।

कांग्रेस का घटता जनाधार –
 

  • 2004 में कांग्रेस ने स्वयं 73 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पार्टी ने 9 सीटें जीतीं। बाकी सीटें लोकजन शक्ति पार्टी या कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए छोड़ दी। सहयोगी व समर्थक एक भी सीट नहीं जीत सके। कांग्रेस को 12.18 प्रतिशत वोट मिले।
  • 2009 में कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए 69 सीटों पर चुनाव लड़ा। पार्टी ने 21 सीटें जीतीं। वोट शेयर बढ़कर 18.25 प्रतिशत हो गया।
  • 2014 में आरएलडी और महान दल से गठबंधन कर कांग्रेस चुनाव लड़ी। कांग्रेस अमेठी व रायबरेली की सीट ही जीत सकी।
  • 2014 में आरएलडी और महान दल से गठबंधन कर कांग्रेस चुनाव लड़ी। कांग्रेस अमेठी व रायबरेली की सीट ही जीत सकी। 
  • 2019 में कांग्रेस फिर अकेले मैदान में आई। 67 सीटों पर भाग्य आजमाया। महज सोनिया गांधी रायबरेली सीट जीत पाईं। राहुल गांधी तक अमेठी सीट हार गए। 
  • 2024 में कांग्रेस ने सपा से हाथ मिलाया है। गठबंधन में 17 सीटें मिली हैं।

 उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का क्या रहा है इतिहास 

अविभाजित उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 85 सीटें थीं। आजादी के बाद से कांग्रेस ने सिर्फ दो मौकों (1952 और 1984) पर उत्तर प्रदेश में 80 से ज्यादा सीटें जीती हैं। इसी तरह, 1957 और 1971 में ही कांग्रेस 70 से ज्यादा सीटें जीत सकी थी। 1957 में 70 और 1971 में 73 सीटे जीती थीं। दो बार 1977 और 1998 में कांग्रेस पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल सकी थी। इसके अलावा,1991 और 1996 में 5; 1999 में 10; 2004 में 9; 2014 में 2; और 2019 में सिर्फ 1 सीट ही कांग्रेस पार्टी के पास आ सकी।

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