जयपुर: आज प्रदेश में पशुपालन विभाग की तरफ से चलाए जा रहे एक ब्रूसीलोसिस नाम की बीमारी के टीकाकरण अभियान में खुद ही पशुधन निरीक्षकों की जान एक तरह से खतरे में आ गई है।
आपको बता दें कि पॉलीक्लिनिक की सैंपल टेस्टिंग में लगभग 23 पशुधन निरीक्षक और अधिकारी ब्रूसीलोसिस, लेप्टोस्पिरोसिस और स्क्रब टाइफस जैसी जानलेवा और जानवरों से इंसानों में फैलने वाली इस ख़तरनाक बीमारी से संक्रमित पाए गए हैं।
वहीं पर इससे भी ज्यादा अहम और गंभीर बात ये है कि इन संक्रमित पशु निरीक्षकों में से अधिकतर को ये पता भी नहीं है कि वे लोग संक्रमित भी हो चुके हैं। ऐसे में वे अपने परिवार, मिलने जुलने वाले लोगों को और प्रदेश के बाकी दूसरे पशुधन को भी संक्रमित कर सकते हैं।
आपको बता दें कि सिर्फ 47 कर्मियों की जांच की गयी थी, जिसमें से लगभग 23 कर्मचारी संक्रमित मिले, यानी 50 प्रतिशत। जबकि पूरे प्रदेशभर में लगभग 7000 से ज्यादा कर्मचारी हैं, जो इस टीकाकरण अभियान में लगे हुए हैं। इसके बावजूद भी सरकार की ओर से अब तक किसी भी तरह कि न तो कोई मेडिकल जांच कराई गई है और न ही किसी तरह का कोई बचाव के लिए गाइडलाइन जारी की गई है। और हाल ये है कि पशुपालन निदेशक डॉ. भवानी सिंह राठौड़ का ये कहना है कि ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता कि 23 लोग पॉजिटिव हों। ऐसे में उनको रिपोर्ट भेजी गई और मेडिकल प्रोजेक्ट के तहत जांच में 47 में से 23 लोग संक्रमित मिले।
आपको बता दें कि सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज में एक मेडिकल प्रोजेक्ट करने के दौरान वहां के मेडिकल स्टूडेंट्स ने पालतू जानवरों के मालिकों, पशु पालकों और उनके साथ साथ पशुधन सुरक्षा में लगे हुए वेटरनेरी डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ का मेडिकल मुआयना किया।
उसके बाद टीम ने दिनांक 25 फरवरी, 26 फरवरी, 6 मार्च, 11 मार्च और 15 मार्च को पॉलीक्लिनिक पांच बत्ती में और पॉलीक्लिनिक लैब जो कि राज्य रोग निदान केंद्र के कुल मिलाकर 47 कर्मियों के सैंपल लिए गए। और इसके बाद जांच में इनमें से 23 ब्रूसीलोसिस, लेप्टोस्पिरोसिस और स्क्रब टाइफस से संक्रमित पाए गए।
बता दें कि 23 संक्रमित लोगों में से 17 ब्रूसीलोसिस, 4 लेप्टोस्पिरोसिस, 2 स्क्रब टाइफस से संक्रमित पाए गए। और इनमे चार लोग ऐसे भी थे, जो कि एक से ज्यादा बीमारी से संक्रमित पाए गए। वहीं पॉलीक्लिनिक के पशुधन निरीक्षकों और बाक़ी अन्य स्टाफ ने नामों को उजागर न करने की शर्त पर खुलासा किया कि केवल जयपुर में एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत हुई इस मेडिकल जांच में लगभग आधे सैंपल पॉजिटिव मिले हैं। और पूरे प्रदेश में ऐसे हजारों पशुधन निरीक्षक होंगे, जिन्हें उनके संक्रमित होने की बिल्कुल भनक तक नहीं होगी। जबकि होना तो यह चाहिए कि पशु चिकित्सा यूनिट के अंदर कार्यरत सभी कर्मचारियों की मेडिकल जांच होनी चाहिए और उसके बाद यह टीकाकरण कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए।
ब्रूसीलोसिस : यह एक ब्रूसेला प्रजाति का बैक्टीरिया है जो कि आमतौर पर गाय, भैंस, घोड़ा, बकरी, भेड़ और कुत्तों के अंदर पाया जाता है। हम इंसान पशुधन के ज्यादा संपर्क में आने से, पशुधन के जननांगों के उपचार करने से, और उनके गर्भाशय के ऑपरेशन से या फिर संक्रमित व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से संक्रमित हो सकता है। इसके लक्षण है कि इसमें लगातार बुखार रहता है और साथ ही भूख नहीं लगती। शरीर में लगातार कमजोरी महसूस होती है। इतना ही नहीं इस बीमारी से संक्रमित गर्भवती महिला का मिसकैरेज तक भी हो सकता है।
लेप्टोस्पिरोसिस : यह बीमारी संक्रमित पशु के मूत्र, मिटटी, पानी और उसके चारे के माध्यम से फैलता है। इससे संक्रमित होने पर बहुत तेज बुखार और सिर दर्द रहता है। ठंड लगने लगती है और आंखें एकदम लाल रहती हैं। ये संक्रमण खास तौर से किडनी और लीवर पर अटैक करता है और इस बीमारी का समय पर इलाज न मिलने पर मौत भी हो सकती है।
स्क्रब टाइफस : ये तीसरी बीमारी जानवरों में खून चूसने वाले चीचड़ों (टिक्स) के द्वारा फैलता है। इसमें तेज बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द और इसके साथ साथ शरीर पर लाल चकते इसके लक्षण हैं। और इसका अगर समय रहते इलाज न मिले और अगर यह संक्रमण शरीर में ज्यादा फैल जाए तो रोगी की ऐसे हालात में ये बीमारी जानलेवा भी हो सकती है।
अकेले जयपुर शहर के अंदर संक्रमित पाए गए इन 23 पशुधन निरीक्षकों की तरह से पूरे प्रदेश में इस समय जारी इस वैक्सीनेशन प्रोग्राम में शामिल कर्मचारियों की संख्या लगभग 7000 से ज्यादा है। इसके बावजूद भी मेडिकल जांच कैंप का आयोजन नहीं कर रही है। वहीं पर राजस्थान पशु चिकित्सा कर्मचारी संघ ने भी इन जूनोटिक बीमारियों से बचाव के संसाधन उपलब्ध करवाने की मांग की हुई है। बता दें कि ब्रूसीलोसिस का टीका एक लाइव वैक्सीन है, यानी उसमें एक जिंदा वायरस होता है और जरा सी लापरवाही पशुधन निरीक्षक को भी संक्रमित कर सकती है।
लैब या स्टॉक से टीका लगाने वाली जगह तक वैक्सीन को पहुंचाने की जिम्मेदारी विभाग की होती है। इन टीकों को लगभग 2 से 8 डिग्री सेलिसियस तापमान पर रखना होता है। सभी सेंटर्स को यह कोल्ड चेन भी मेन्टेन करनी होती है। लेकिन ऐसा नहीं होता है और सीधे टीके पशु निरीक्षकों को इश्यू कर दिए जाते हैं।
जांच के अंदर संक्रमित पाए गए 23 लोग सामाजिक बहिष्कार और विभागीय कार्रवाई के डर से सामने नही आ रहे हैं। वहीं पॉजिटिव लोगों को उनके मोबाइल पर मिली जांच रिपोर्ट के बाद वे सभी निजी अस्पतालों में अपना अपना इलाज ले रहे हैं।
और इधर लोकसभा चुनावों के चलते प्रदेश में इन सभी पशुधन निरीक्षकों, अधिकारियों और नर्सिंग कर्मियों की चुनाव के अंदर भी ड्यूटी लगा रहे हैं।
• पशुपालन निदेशक डॉ. भवानी सिंह राठौड़ ने मामले में कहा कि मोटे तौर पर पशुओं के जननांगों पर हाथ लगाने या उनके अंदरूनी अंगों को छूने पर संक्रमण संभव है। कुल 23 लोग पॉजिटिव हैं, यह मैं बिल्कुल नहीं मान सकता, लेकिन अगर ऐसा है तो मैं बात करता हूं और ऐसे पॉजिटिव स्टाफ की ड्यूटी हम बिल्कुल नहीं लगाते हैं।
• एसएमएस मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायोलॉजी की एक सीनियर प्रोफेसर डॉ. भारती मल्होत्रा ने कहा कि नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल, भारत सरकार के एक नेशनल प्रोजेक्ट के अंतर्गत एक सिरो सर्वे किया जा रहा है। यह सीरो सर्वे इसलिए किया जाता है कि इन बीमारियों का संक्रमित व्यक्ति में कितना प्रतिशत असर है या जाना जा सके। इसकी रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को वो जल्द भेजेंगे।
• राजस्थान के पशु चिकित्सा संघ प्रदेश महामंत्री अर्जुन शर्मा का ये कहना है कि अगर ऐसा है तो यह बहुत ही ज्यादा गंभीर मामला है। ऐसे में सभी अधिकारियों-और सभी कर्मचारियों के स्वास्थ्य का परीक्षण होना चाहिए। साथ हीविभाग को उनके स्वास्थ्य के प्रति गंभीरता दिखानी चाहिए।