शादी ही नहीं, लिव-इन रिलेशन में रहने वालो पर भी लागू होता है धर्म परिवर्तन निषेध कानून: अंतरधार्मिक जोड़े की सुरक्षा मांग की याचिका को भी किया खारिज?
शादी ही नहीं, लिव-इन रिलेशन में रहने वालो पर भी लागू होता है धर्म परिवर्तन निषेध कानून

प्रयागराज: आज कल के युवा खास करके मेट्रो सिटी में लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं। हालांकि ये पश्चिमी देशों की सभ्यता है। लेकिन अब भारत में भी कपल शादी से पहले एक दूसरे को जानने के लिए लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं। इसको लेकर अलग अलग लोगों की अपनी अपनी राय है। हालांकि कोर्ट भी आए दिन कुछ न कुछ टिप्पणी करती है। इस समय इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कुछ ऐसा बोला है जो  खास करके उन कपल के लिए है जो अलग अलग धर्म के लोगों के साथ रहते हैं। 

बताते चलें कि हिंदू-मुस्लिम जोड़े को उनके जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा देने की मांग को लेकर उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। हालांकि हाई कोर्ट का इस विषय में कहना है कि धर्म परिवर्तन कानून विवाह के साथ-साथ लिव-इन रिलेशनशिप पर भी लागू होता है। बता दें कि न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल ने लिव इन कपल की पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने की अपील खारिज को करते हुए टिप्पणी की है। इस संबंध में उनका कहना है कि दोनों ने अभी तक धर्म परिवर्तन कानून की धारा आठ और नौ के प्रावधानों के तहत आवेदन नहीं किया है। इसी के अंतर्गत उनका ये मांग खारिज किया गया है। 

धर्म परिवर्तन के लिए नहीं किया कोई आवेदन

गौरतलब है कि अदालत का कहना है कि यहां यह उल्लेख करना उचित है कि उत्तर प्रदेश गैर कानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 पांच मार्च, 2021 को प्रभावी हुआ जिसके बाद अंतरधार्मिक युगल के लिए इस कानून के प्रावधानों के मुताबिक धर्म परिवर्तन के लिए आवेदन करना अनिवार्य है। अभी जो मामलें कोर्ट में आए हैं उसमें दोनों में से किसी भी याचिकाकर्ता ने धर्म परिवर्तन के लिए आवेदन नहीं किया है। इसी को देखते हुए इनकी मांग को खारिज किया गया है। 
मामले के तथ्यों के  अनुसार दोनों याचिकाकर्ता बालिक हैं और एक दूसरे से प्रेम होने के बाद जोड़े ने एक जनवरी 2024 को आर्य समाज रीति के अनुसार शादी किया और विवाह के पंजीकरण के लिए अधिकारी के पास ऑनलाइन आवेदन किया है। वही इनका आवेदन लंबित है। हालांकि इन्होंने गैर कानूनी धर्म परिवर्तन रोधी अधिनियम की धारा आठ और नौ के प्रावधानों के मुताबिक धर्म परिवर्तन के लिए अभी तक कोई आवेदन नहीं किया है।

परिवर्तन विवाह की प्रकृति के संबंध में है जरूरी 

बता दें कि इस अधिनियम की धारा 3 (1) के मुताबिक कोई भी व्यक्ति किसी को बहकाकर, या किसी से जबरदस्ती, या फिर अनुचित प्रभाव, दबाव, लालच एवं अन्य किसी धोखाधड़ी से किसी दूसरे व्यक्ति का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से धर्म परिवर्तित नहीं कराएगा या ऐसा कराने का प्रयास नहीं करेगा। अगर कोई भी ऐसा करता है तो उसे दण्डित किया जाएगा। इसके लिए सजा का भी प्रावधान है। 
बताते चलें कि अदालत का अपने निर्णय में साफ तौर कहना है कि यदि कानून भी के प्रावधानों में अस्पष्टता होती है तो साफ तौर पर जाहिर होता है कि अदालतों को उन प्रावधानों के तहत इसकी व्याख्या करने का अधिकार है। लेकिन इस कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि परिवर्तन ना केवल अंतर-धार्मिक विवाहों के मामले में जरूरी है, बल्कि विवाह की प्रकृति के संबंध में भी यह जरूरी है।

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