पाकिस्तान-अफगानिस्तान एक दूसरे के यहां हमले क्यों कर रहे हैं : अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान की सैन्य कार्रवाई से बढ़ा तनाव, आखिर क्या है इसमें तालिबान की भूमिका........?
पाकिस्तान-अफगानिस्तान एक दूसरे के यहां हमले क्यों कर रहे हैं

Pakistan vs Taliban: इस साल ईरान के बाद अफ़ग़ानिस्तान दूसरा इस्लामिक पड़ोसी है, जिसके साथ पाकिस्तान की इस तरह की सैन्य तनातनी हुई है। इन दिनों पाकिस्तान और अफगानिस्तान आमने-सामने हैं। शनिवार को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के मीर अली में एक आत्मघाती हमलावर ने अपने विस्फोटक से भरे ट्रक को एक सैन्य चौकी में घुसा दिया था। तब से अफगानिस्तान–पाकिस्तान एक दूसरे के यहां हमले कर रहे हैं। 
  
दुनिया के कई देशों में पहले से जारी संघर्ष के बीच अब एशिया में दो देश आपस में भिड़ गए हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने एक दूसरे के विरोध में कार्रवाई की है। तनाव तब और हो गया जब सोमवार को डूरंड रेखा पर तालिबान और पाकिस्तानी सीमा सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़प हो गई। बाद में पाकिस्तान की ओर से अफगानिस्तान के इलाकों में रॉकेट हमले किए गए। जवाब में तालिबान की सेनाओं ने भी डूरंड रेखा के पास स्थित पाकिस्तानी सैन्य चौकियों को ध्वस्त कर दिया। 

दोनो देशों की बयानबाजी के बीच पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप भी लगाया तो वहीं तालिबान ने आरोप से साफ इनकार किया। 

मुजाहिद ने लिखा कि पाकिस्तानी विमानों ने उनके पक्तिका और खोस्त प्रांतों पर बमबारी की। इन हमलों में पांच महिलाओं और तीन बच्चों समेत आठ लोग मारे गए।

मुजाहिद ने इस हमले की निंदा करते हुए कहा कि यह अफ़ग़ानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप था। उन्होंने कहा कि इसके परिणाम ऐसे हो सकते हैं, जिन्हें पाकिस्तान नियंत्रित नहीं कर पाएगा। इस बयान के बाद अफ़ग़ान सीमा की तरफ़ से गोलीबारी की गई। इसमें भारी हथियारों का इस्तेमाल हुआ। उन्होंने हवाई हमलों के जवाब में सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों को निशाना बनाया।

अफ़ग़ानिस्तान की गोलीबारी के कारण हुए नुकसान को लेकर पाकिस्तान ने कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है। कुर्रम के सीमावर्ती इलाक़े में कई लोगों के घायल होने की ख़बर सामने आई है। पाकिस्तान ने भी यह पुष्टि दी है कि उसने अफ़ग़ानिस्तान के अंदर सीमावर्ती इलाक़ों में ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर चरमपंथ विरोधी अभियान चलाया।

पाकिस्तान के विदेश कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में इस अभियान का कोई विवरण नहीं दिया गया है, लेकिन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पर अपनी चिंताओं पर अफ़ग़ानिस्तान की ओर से से कार्रवाई की कमी पर देश की निराशा की बात की गई है।

जिसमें आगे बताया "आज के ऑपरेशन का निशाना हाफ़िज़ गुल बहादुर समूह के चरमपंथी थे जो टीटीपी से मिलकर पाकिस्तान के अंदर कई आतंकवादी हमलों के ज़िम्मेदार हैं। हमलों में सैकड़ों नागरिकों और क़ानून प्रवर्तन अधिकारियों की जान गई।''

16 मार्च को सेना की चौकी पर हुए हमले की हाफ़िज़ गुल बहादुर समूह ने ज़िम्मेदारी ली थी। पाकिस्तान के सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक गुल बहादुर समूह के लड़ाके अफ़ग़ानिस्तान के हैं, उनमें से ज़्यादातर खोस्त प्रांत के हैं।

उसी दिन उत्तरी वज़रिस्तान ज़िले में पाकिस्तानी सेना ने भी अपने इलाक़े में ख़ुफ़िया सूचनाओं पर आधारित एक अभियान चलाया। हमले में एक कमांडर समेत आठ चरमपंथियों की जान गई जो मीर अली हमले में शामिल थे।

टीटीपी अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के बीच संबंधों में मुख्य अड़चन रही है। पाकिस्तान का दावा है कि अफ़ग़ानिस्तान ने टीटीपी को पनाह दी है। पाकिस्तान इसे अपनी सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा बताता है। पाकिस्तान अपने यहाँ सैकड़ों हमलों के लिए टीटीपी को ज़िम्मेदार बताता है।

रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ ने 16 मार्च के हमले पर प्रतिक्रिया देते हुए आरोपों को दोहराया। उन्होंने अपने गृहनगर सियालकोट में मीडिया से कहा "हमारे (पाकिस्तान) ख़िलाफ़ दहशतगर्द ज़्यादातर अफ़ग़ानिस्तान से संचालित होता है।"

पाकिस्तान के विशेष प्रतिनिधि राजदूत आसिफ़ दुर्रानी ने भी अफगानिस्तान में कहा कि पाकिस्तान के लिए टीटीपी ख़तरे की रेखा है। उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान के पास इस बात के सबूत हैं कि प्रतिबंधित टीटीपी को अफ़ग़ानिस्तान प्रतिनिधियों के ज़रिए भारत से पैसा मिल रहा है।

ऐसा अनुमान है कि 5,000 से 6,000 टीटीपी आतंकवादियों ने अफ़ग़ानिस्तान में शरण ले रखी है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने अंतरिम अफ़ग़ानिस्तान सरकार से बार-बार कहा है कि उन्हें टीटीपी के हथियार लेने और उनका आत्मसमर्पण करवाने की ज़रूरत है।

पिछले साल ही पाकिस्तान ने अपने यहाँ अवैध रूप से रह रहे हज़ारों अफ़ग़ानों को इस उम्मीद में बाहर निकाल दिया था कि इससे चरमपंथ की समस्या से निपटने में सहायता मिलेगी। इसके बाद भी हमलों में कोई कमी देखने में नहीं आ रही है।

पिछले साल पाकिस्तान भर में लगभग 650 हमले हुए। इन हमलों में क़रीब 1,000 लोग मारे गए। इनमें से अधिकांश सुरक्षाकर्मी थे। इनमें से अधिकतर हमलों में अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से लगे ख़ैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों को निशाना बनाया गया।

कई सशस्त्र समूह पाकिस्तान में आतंकवाद में शामिल रहे हैं। पाकिस्तान का मुख्य हमलावर टीटीपी रहा है, जो वैचारिक रूप से अफ़ग़ान तालिबान से जुड़ा है। वहीं दूसरी ओर अफगानिस्तान पाकिस्तान के इन आरोपों से इनकार करता है। उसका दावा है कि पाकिस्तान अपनी कमज़ोरियों और समस्याओं के लिए उसे दोषी ठहराने की कोशिश कर रहा है।

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए अफ़ग़ानिस्तान तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा ''हम अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी विदेशी समूह की उपस्थिति को नकराते हैं। उन्हें अफ़ग़ानिस्तान धरती पर काम करने की इजाज़त नहीं है। इस संबंध में हमने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है और आगे भी करते रहेंगे। यह बात हमें स्वीकारनी होगी कि अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान से बहुत लंबा सीमा साझा करता है। जिसमें पहाड़ों और जंगलों सहित ऊबड़-खाबड़ इलाकों और ऐसे स्थान भी हैं जो हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं।''

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच संघर्ष हुआ कैसे शुरू?

दोनों देशों के बीच ताजा संघर्ष की शुरुआत शनिवार (16 मार्च) को हुई। दरअसल शनिवार को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के मीर अली में एक आत्मघाती हमलावर ने अपने विस्फोटक से भरे ट्रक को एक सैन्य चौकी में घुसा दिया। यह इलाका अफगानिस्तान की सीमा से लगा हुआ है। इस घटना में सात पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। पाकिस्तानी सेना ने दावा किया कि उसकी जवाबी गोलीबारी में सभी छह हमलावरों को मार गिराया गया।

हाल ही बने एक आतंकी समूह जैश-ए-फुरसन-ए-मुहम्मद ने हमले की जिम्मेदारी ली है। इस समूह को मुख्य रूप से पाकिस्तानी तालिबान तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के सदस्यों ने बनाया है। प्रतिबंधित टीटीपी के निशाने पर अक्सर पाकिस्तानी सैनिक और पुलिसकर्मी रहे हैं। इस हमले के बाद पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने जवाबी कार्रवाई करने का एलान किया।  

इस हमले के बाद क्या हुआ?

इसके जवाब में पाकिस्तान ने सोमवार तड़के (18 मार्च) अफगानिस्तान के अंदर पाकिस्तानी तालिबान के कई संदिग्ध ठिकानों को निशाना बनाया। अफगान तालिबान ने कहा कि हमलों में करीबन आठ लोग मारे गए। सूचना के मुताबिक हमले पाकिस्तान की सीमा से लगे खोस्त और पक्तिका प्रांतों में किए गए थे। 

इसे पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के अंदर सीमावर्ती क्षेत्रों में खुफिया-आधारित आतंकवाद विरोधी अभियान बताया। मुख्य अफगान तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने हमलों की पुष्टि करते हुए कहा कि इस तरह के हमले अफगानिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन हैं और इसके बुरे परिणाम होंगे।

सैनिकों की मौत का बदला लिया जाएगा

चकलाला गैरीसन रावलपिंडी में उस समय माहौल गमगीन था, जब पाकिस्तानी झंडे में लिपटे लेफ्टिनेंट कर्नल सैयद काशिफ़ अली और कैप्टन मुहम्मद अहमद बदर के ताबूतों को पूरे सैन्य सम्मान के साथ एम्बुलेंस से उतारा गया।

मीर अली इलाक़े जो कि उत्तरी वजीरिस्तान में है वहा एक सैन्य चौकी पर 16 मार्च को हुए हमले में अपनी जान गँवाने वाले अधिकारियों की अंतिम विदाई देने के लिए पाकिस्तान के शीर्ष सैन्य अधिकारी और राजनीतिक नेतृत्व सबसे आगे खड़ा था।

सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर और राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ने प्रार्थना सभा के बाद दूसरे सैनिकों के साथ ताबूतों को कंधा दिया। इसके बाद दोनों ने मृतकों के परिवारों से कहा कि उनके बेटों के ख़ून का बदला लिया जाएगा।

इसके कुछ घंटों बाद ही अफ़ग़ानिस्तान से ख़बर आई कि पाकिस्तान ने सीमा पार कई ठिकानों पर हमला किया है। इसकी जानकारी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक बयान जारी कर दी।

इस तनातनी का परिणाम क्या होगा

 पाक-अफ़ग़ान संबंधों के विशेषज्ञ सलमान जावेद का मानना है कि तनाव में आई वृद्धि को 16 मार्च की एक अकेली घटना से नहीं जोड़ा जा सकता है बल्कि हमले उन हमलों की श्रृंखला का परिणाम थे जो अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ग़ान तालिबान की सरकार बनाने के बाद से सीमा पार से किए गए हैं।

सलमान जावेद ने टीटीपी की ओर से किए गए कुछ बड़े हमलों को सूचीबद्ध करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने आतंकवादी समूह के साथ सुलह करने की कोशिश की।

''पूर्व आईएसआई प्रमुख जनरल फैज़ हमीद काबुल गए ताकि वह टीटीपी के साथ बातचीत कर सकें, कई राजनीतिक और आधिकारिक प्रतिनिधिमंडलों ने दौरा किया। वहाँ बंद दरवाज़े की कूटनीति हुई, मौलवियों का एक समूह टीटीपी से निपटने का रास्ता खोजने के लिए अफ़ग़ानिस्तान गया लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ।''

वो कहते हैं ''जब सभी राजनीतिक विकल्प समाप्त हो गए, तो पिछले साल पाकिस्तान की नीति में बदलाव आना शुरू हुआ। डेरा इस्माइल ख़ान में एक हमला हुआ था जिसमें अफ़ग़ान नागरिक शामिल थे। बाद में पेशावर पुलिस लाइन मस्जिद को अफ़ग़ान नागरिकों ने निशाना बनाया था, यह सूची लंबी है इसीलिए पाकिस्तान ने हमलों का विकल्प चुना।''जावेद का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान के अंदर आतंकियों को खदेड़ने की नीति के अच्छे-बुरे परिणाम निकलेंगे।

वो कहते हैं ''सैन्य रूप से, एक झटका होगा। अफ़ग़ानिस्तान के पास वायु सेना नहीं है और पाकिस्तान की मारक क्षमता बहुत बेहतर है, लेकिन उनके पास आत्मघाती हमलावर और टीटीपी जैसे प्रॉक्सी हैं, जिनका उपयोग वे पाकिस्तान के ख़िलाफ़ घातक हमले करने में कर सकते हैं। इसलिए, भविष्य में हमलों में तेज़ी आ सकती है।''

जावेद कहते हैं ''दूसरी बात यह कि सार्वजनिक नैरेटिव में एक-दूसरे के प्रति दुश्मनी दोनों देशों में बढ़ेगी। इससे लोगों के आपसी रिश्ते ख़राब होंगे। लेकिन दूसरी तरफ़ पाकिस्तान ने एक मिसाल कायम की है कि वह आक्रामकता को बर्दाश्त नहीं करेगा और भविष्य में चुनौती मिलने पर वह किसी भी सीमा को लांघने को तैयार है।''

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