लखनऊ। कांग्रेस की ओर से महीनों तक मायावती को मनाने की कोशिश की गयी लेकिन उसका परिणाम कुछ भी नहीं निकला और अंत मे बसपा सुप्रीमो अकेले ही इस दौड़ मे भागने का फैसला किया। उनकी इस चाल से उनके ही पार्टी के सदस्यों को बसपा का अंत नज़र आने लगा है।
बसपा के टिकट पर जीते ज्यादातर सांसद खुद समझ रहे हैं कि मायावती की इस राह में अनिश्चितता की धुंध अधिक है और मंजिल लगभग ओझल, लेकिन जिस दिशा में 'हाथी' का एक-एक कदम बढ़ता दिख रहा है, उसमें चुनौती की धमक सपा-कांग्रेस गठबंधन को जरूर उठानी पड़ सकती है। बसपा ने कुछ सीटों से संकेत दे दिया है कि अनुसूचित जाति वर्ग में विशेष तौर पर सजातीय (जाटव) वोट के प्रति काफी हद तक आश्वस्त रहते हुए मायावती इस बार मुस्लिमों को अधिक टिकट दे सकती हैं। उनका यह दांव राष्ट्रीय राजनीति के लिए बेहद अहम यूपी की कई सीटों पर सपा-कांग्रेस गठबंधन के समीकरणों को नुकसान पहुंचा सकता है।
देश में सर्वाधिक 80 संसदीय सीटों वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा अपनी पहली सूची में 51 प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। सपा ने कई सीटों पर उम्मीदवार तय कर दिए हैं और कांग्रेस में भी मंथन चल रहा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से बिछाई जा रही बिसात में अभी बसपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन मायावती के रुख पर भाजपा के साथ ही सपा-कांग्रेस गठबंधन की भी नजरे टिकी हुई हैं।
बसपा एक ऐसी पार्टी है जिसमें पार्टी सुप्रीमो की अनुमति के बिना एक पत्ता तक नहीं हिल सकता है, उसके स्थानीय पदाधिकारियों ने अपने अपने क्षेत्र से कुछ नामों को आगे बढ़ाकर पार्टी की चुनावी रणनीति क्या होगी उसका संकेत दे दिया है। अमरोहा से डा. मुजाहिद हुसैन, मुरादाबाद से इरफान सैफी, पीलीभीत से अनीश अहमद खान व सहारनपुर से माजिद अली का नाम सामने आया है। इन सभी सीटों पर मुस्लिम वोटरों की अच्छी संख्या है।
सपा व कांग्रेस गठबंधन जिन मुस्लिम बहुल सीटों पर इस आबादी के भरोसे ताकत दिखाने के लिए प्रयासरत है, वहां बसपा मतों का विभाजन कर सकती है। मायावती ऐसा पहले भी करके दिखा चुकी हैं। अखिलेश यादव 2019 में आजमगढ़ लोकसभा सीट के उपचुनाव मुस्लिम-यादव के मजबूत समीकरण के चलते इस सीट से भाई धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया। भाजपा व सपा में सीधे मुकाबले की उम्मीद थी, लेकिन मायावती ने मुस्लिम नेता शाह आलम गुड्डू को उतार दिया। बसपा प्रत्याशी को लगभग ढाई लाख वोट मिले और सपा प्रत्याशी की करीब डेढ़ लाख वोटों से हार हो गई।
अब यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि बसपा अब ज्यादा कमजोर हो गई है, क्योंकि कमजोर तो वह तभी से है, जब 2014 में शून्य पर सिमट गई थी। एससी व मुस्लिमों मतों में उसकी हिस्सेदारी बरकरार रहने का ही परिणाम है कि 2019 में सपा का साथ मिला तो बसपा की सीटें 10 पर पहुंच गई थीं। अपने आधार वोटबैंक यानी एससी वर्ग के वोटों को थामे रखने को वह इस वर्ग से भी प्रत्याशी उतारेगी। यूपी की सुरक्षित 17 लोकसभा सीटों सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश की उन सीटों पर वह सीधे तौर पर भाजपा को चुनौती देना चाहेंगी, जहां एससी वर्ग का मतदाता प्रभावी भूमिका में है।
बसपा ने विधानसभा चुनाव में बिगाड़ दिया था खेल
बसपा ने 88 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। इसका सबसे अधिक नुकसान सपा को उठाना पड़ा। बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में भले ही जीत नहीं पाए, लेकिन अधिकतर सीटों पर सपा को नुकसान पहुंचाया था। इन 88 सीटों में से 26 सीटें ऐसी थीं जिनमें सपा के मुस्लिम प्रत्याशियों के सामने बसपा का मुस्लिम प्रत्याशी था ।
सीटें नाम स्थिति वोटिंग %
अमरोहा दानिश अली जीत 51.39
सहारनपुर हाजी फजलुर्रहमान जीत 41.72
गाजीपुर अफजाल अंसारी जीत 51.11
मेरठ हाजी मोहम्मद याकूब हार 47.78
धौरहरा अरशद इलियास सिद्दीकी हार 33.11
डुमरियागंज आफताब आलम हारे 39.27