लोकसभा चुनाव 2024 और बसपा की चुनावी रणनीति: क्या बसपा सुप्रीमो और भतीजे आकाश आनंद हो पाएंगे इम्तिहान में पास?
लोकसभा चुनाव 2024 और बसपा की चुनावी रणनीति

बसपा की सुप्रीमो मायावती अपने सूबे की सबसे प्रभावशाली तथा चतुर राजनेताओं में से एक मानी जाती हैं। इनके द्वारा सरकार चलाने के कौशल तथा स्पष्टवादिता की चर्चा करते हुए आज भी कई लोग मिल ही जाते हैं। वह बेहद माप तौल कर बोलती हैं तथा समय से तालमेल कर आगे बढ़ती हैं। वह हार नहीं मानतीं। यही वजह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वह वापसी करती आई हैं। कांग्रेस हो या भाजपा या फिर सपा, अपने से बड़े हिस्सेदार से हाथ मिलाकर आगे निकलने की अपनी विरल क्षमता उन्होंने बार-बार साबित की है।

मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद तीन बड़े फैसले किए। पहला, जीरो से दहाई में पहुंचाने वाले महागठबंधन से नाता तोड़ा। दूसरा, अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। तीसरा, 2022 के विधानसभा चुनाव में सबसे खराब नतीजे के बावजूद इंडिया गठबंधन की अपील ठुकराकर लोकसभा चुनाव भी अकेले लड़ने का एलान किया। यूपी की जनता उनके इन फैसलों को किस नजरिए से लेती है, यह चुनाव इसकी कसौटी होगा।

महागठबंधन छोड़ना होगा कितना सही:

सबसे पहले बात करेंगे पार्टी के द्वारा महागठबंधन से अलग रहने की। काफी लंबे समय से चली आ रही अपनी सियासी दुश्मनी के बावजूद भी साल 2019 में सपा तथा बसपा एक साथ मिलकर मैदान में आईं थीं। राष्ट्रीय लोकदल भी साथ था। 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न जीतने वाली बसपा, महागठबंधन में शामिल होकर 10 सीटें पाने में सफल रही सपा 2014 जितनी पांच सीटें ही जीत सकी रालोद शून्य पर अटका रहा। महागठबंधन ने भाजपा विरोधी मतदाताओं को एक मजबूत विकल्प दिया था। इसे बड़ी सफलता तो नहीं मिली, लेकिन 2014 में 73 सीटें जीतने वाले राजग को 64 पर रोक दिया। निराश मतदाताओं का वर्ग महागठबंधन से भविष्य में बेहतर संभावनाओं के लिए आशान्वित था। पर मायावती इससे अलग हो गई। नतीजा ये हुआ कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा 403 सदस्यीय विधानसभा में एक सीट पर सिमट गई। यह चुनाव बताएगा कि 2019 के बाद लिए गए फैसलों व प्रयोगों से मायावती सत्ता विरोधी मतदाताओं का भरोसा जीतने में सफल हुई या नहीं।

मायावती के द्वारा लाए 3 बड़े फैसलों की परीक्षा लेगा लोकसभा चुनाव

•जिस सपा-रालोद के गठबंधन के साथ शून्य से 10 पर पहुंचीं, उससे नाता तोड़ लिया है।
•भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी बनाया है।
 •इस चुनाव में बसपा अकेले मैदान में है।

उत्तराधिकारी आकाश का होगा पहला इम्तिहान:

बसपा की सुप्रीमो सुश्री मायावती के द्वारा अपने भतीजे आकाश आनंद को साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में आगरा की रैली में प्रथम बार भाषण देने के लिए भेजा गया था। उस समय चुनाव आयोग के द्वारा मायावती पर 48 घंटे का प्रतिबंध लगा दिया गया था। वह चुनाव सपा व रालोद से महागठबंधन कर लड़ा गया था। बसपा को इस चुनाव में 10 सीटें मिली थीं।

■ महागठबंधन से बाहर निकलने के बाद मायावती ने दिसंबर- 2023 में लोकसभा चुनाव- 2024 की तैयारी को लेकर लखनऊ में एक बैठक बुलाई थी। उसी में आकाश आनंद को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। बार-बार परिवार से उत्तराधिकारी न होने की बात दोहराने के बाद भी उन्होंने ऐसा किया।

■ आकाश अभी युवा भी हैं तथा विदेश में लिखे पढ़े हैं, लेकिन वह अभी तक जमीन से जुड़ नहीं पाए हैं। वह अपने सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहते हैं, किंतु अपनी बुआ मायावती की तरह वह मीडिया के सवालों का सामना करने से बचते दिखाई देते हैं।

ऐसा कहा जा रहा है कि दलित समाज के वर्तमान युवा मतदाताओं में बदलाव के साथ ही आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद की बढ़ती पकड़ को भी देखने के बाद ही मायावती ने आननफानन में युवा आकाश को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और पार्टी में सक्रिय किया है। आकाश को कई राज्यों की जिम्मेदारी दी गई है। यह चुनाव बताएगा कि मायावती का अपने उत्तराधिकारी के साथ मैदान में उतरना कितना सफल रहा। इस चुनाव में पार्टी की परफॉर्मेंस से आकाश का भी आकलन होगा।

मायावती का बेस वोट है जाटव:

29.04% दलित आबादी है उत्तर प्रदेश में तथा कुल दलित आबादी में करीब 55% जाटव, दुसाध, धूसिया आदि हैं।

गिरता वोट शेयर भी है बड़ी चुनौती:

मायावती ने वर्ष 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 206 जीत कर स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई थी। 2022 के चुनाव में उमाशंकर सिंह के रूप में बलिया से बीएसपी का सिर्फ एक विधायक चुनाव जीता। बसपा को 2007 में 30.43 फीसदी वोट मिले थे। 
2019 में जब बसपा महागठबंधन में चुनाव लड़ी तो वोट शेयर 19.26 प्रतिशत पर पहुंच गया था। 2022 के विधानसभा चुनाव में उसका वोट शेयर घटकर 12.88 फ़ीसदी ही रह गया।

यूपी: लोकसभा चुनाव में बसपा की परफॉर्मेंस:

वर्ष 1989 में 02 सीटें जीतीं तथा वोट शेयर 9.86% रहा
साल 1991 में 01 सीट तथा 8.32% वोट शेयर रहा
साल 1996 में 06 सीटें तथा 20.06% वोट शेयर रहा
साल 1998 में 04 सीटें तथा 20.09% वोट शेयर रहा
साल 1999 में 14 सीटें तथा 22.08% वोट शेयर रहा
साल 2004 में 19 सीट तथा 24.67% वोट शेयर रहा
साल 2009 में 20 सीटें तथा 27.42% वोट शेयर रहा
साल 2014 में 00 सीट तथा 19.06% वोट शेयर रहा
साल 2019 में 10सीटें तथा 19.43% वोट शेयर रहा

क्या त्रिकोण बनाकर वापसी कर पाएगी पार्टी:

इंडिया गठबंधन के द्वारा लड़ाई में भाजपा के खिलाफ शामिल होने के लिए कई बार मायावती को न्योता भी दिया गया। लेकिन इन सबके बावजूद मायावती ने अकेले ही चुनाव लड़ने का एलान किया। जानकार मानते हैं कि मायावती ने महसूस किया होगा कि गठबंधन से लड़ने पर उनका बेस वोट कई सीटों पर दूसरे के साथ शिफ्ट हो सकता है। ऐसे में उन्होंने राजग व सपा-कांग्रेस गठबंधन से अलग रहने का फैसला किया है। वह दोनों गठबंधनों के बीच त्रिकोण बनाकर बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही होंगी।

कतरफा संवाद से कट रहे हैंए वोटर:

मायावती सोशल मीडिया एक्स के जरिए अपनी बातें रखती हैं। कभी पार्टी की कोई मीटिंग करती हैं तो शुरुआत में सिर्फ फोटोजर्नलिस्ट को तस्वीरें लेने भर का समय देती हैं। कभी यदि वे मीडिया के सामने आती भी हैं तो मीडिया के सवालों से बचने की कोशिश करती रही हैं। पार्टी के अन्य कर्ताधर्ता एवं कोऑर्डिनेटर तथा अन्य सभी नेताओं को भी मीडिया से कोई बातचीत की इजाजत नहीं होती है। उनकी पार्टी के भीतर क्या हो रहा है, उनके फॉलोअर व समर्थक तब तक अंधेरे में रहते हैं, जब तक इसका मायावती आधिकारिक एलान नहीं करतीं। अपने इस एकतरफा संवाद शैली की वजह से उनके कोर वोटर तक उनसे कटने लगे हैं।

चुनाव एलान के 1 सप्ताह बाद ही सतीश मिश्र परिदृश्य से हुए गायब:

बसपा में अपर कास्ट के बड़े चेहरों में सतीश चंद्र मिश्रा इकलौते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव तक मिश्रा व उनका परिवार सक्रिय नजर आ रहा था। लोकसभा चुनाव का एलान हुए एक सप्ताह बीत गए हैं, पर मिश्रा चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। इस बार न वह सम्मेलन सभाएं करने निकले और न ही लखनऊ में दूसरे दलों के लोगों को पार्टियों में शामिल करने वाली जिम्मेदारी में ही नजर आ रहे हैं।

10 मौजूदा सांसदों में से 6 को किया बाहर:

बसपा के दस सांसदों में से छह बाहर हो चुके हैं। इनमें से तीन अन्य दलों में प्रत्याशी भी बन चुके हैं। अमरोहा से दानिश अली कांग्रेस से मैदान में हैं। वहीं अंबेडकरनगर से रितेश पांडेय भाजपा से और गाजीपुर से अफजाल अंसारी सपा से टिकट हासिल कर चुके हैं। लालगंज से संगीता आजाद भाजपा में शामिल हो चुकी हैं और श्रावस्ती से राम शिरोमणि वर्मा को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव की कांग्रेस से नजदीकी छिपी नहीं है।

बसपा से मिलकर चुनाव लड़ सकता है अपना दल कमेरावादी:

सपा से अपना गठबंधन तोड़ने के पश्चात 3 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए एलान करने वाले अपना दल (कमेरावादी) पार्टी की नेता पल्लवी पटेल ने भी यू-टर्न लेते हुए अपने फैसले को अब रद्द कर दिया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि जल्द ही तीन सीटों की नई घोषणा की जाएगी। तीन दिन में फैसला बदले जाने से पल्लवी की पार्टी तथा बसपा के साथ गठबंधन होने की संभावनाओं को बल मिला है।

सूत्रों का कहना है कि इस संबंध में पल्लवी और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच बातचीत हो चुकी है। जल्द ही गठबंधन की औपचारिक घोषणा हो सकती है। इस आधार पर ही उन्होंने तीनों सीटों पर चुनाव लड़ने के फैसले को रद्द किया है। बता दें कि अपना दल (कमेरावादी) को बसपा से ऑफर की खबर सबसे पहले 'अमर उजाला' ने (शनिवार के अंक में) प्रकाशित किया था। सूत्रों का कहना है कि सपा से गठबंधन तोड़ते हुए तीन दिन पहले ही पल्लवी ने फूलपुर, कौशांबी और मिर्जापुर सीट पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। तभी से बसपा ने उनसे बातचीत करने के लिए एक नेशनल कोऑर्डिनेटर को लगाया है। सूत्रों के मुताबिक कोऑर्डिनेटर के जरिए मायावती से करीब दो-तीन राउंड की बात हो चुकी है।

सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि होली के बाद पल्लवी की मायावती के साथ बैठक होना तय है। इसमें गठबंधन को अमली जामा पहनाया जा सकता है। सूत्रों का यह भी कहना है कि बसपा के साथ होने वाले नए गठबंधन में अपना दल (कमेरावादी) के साथ ही सपा से रिश्ता तोड़ने वाली जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) समेत कई अन्य छोटे दल भी शामिल हो सकते हैं।

सिंबल पर अटकी है बात:

अपना दल (कमेरावादी) और बसपा के बीच गठबंधन को लेकर सभी मुद्दों पर सहमति बन गई है, लेकिन सिंबल को लेकर मामला अटका है। बसपा चाहती है कि पल्लवी पटेल बसपा के सिंबल पर चुनाव लड़ें। जबकि पल्लवी अपने सिंबल पर लड़ना चाहती हैं। उन्हें पांच सीटें मिल सकती हैं।

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