आइए जानें प्रदेश की राजनीति के वो बड़े चेहरे जिन्होंने बदला हैं अपना पाला: क्या यूपी की सियासत जातीय समीकरण के इर्द गिर्द रहती हैं? 
आइए जानें प्रदेश की राजनीति के वो बड़े चेहरे जिन्होंने बदला हैं अपना पाला

लोकसभा चुनाव सर पर है अब नेता एक पाले से दूसरे पाले मे शिफ्ट हो रहे हैं। यूपी में अब तक 10 बड़े चेहरों ने अभी तक अपने पाले बदले है। इनमें 3 मुस्लिम, 2 ठाकुर, 2 ब्राह्मण और 1-1 पंजाबी खत्री, दलित और जाट हैं।

इन नेताओं का क्षेत्र में अपना वजूद और अपना वोट बैंक रहा है। क्योंकि, यूपी की सियासत जातीय समीकरण के इर्द-गिर्द रहती है। ऐसे में जाहिर है कि इन नेताओं के पाला बदलने से वहां का चुनावी समीकरण भी बदलेंगे। चलिए, आपको बताते हैं कि किन नेताओं ने पार्टी छोड़ी, किसने बागवत की और उसका कितना असर पड़ सकता है।

1- मनोज कुमार पांडेय: सपा का ब्राह्मण चेहरा

अखिलेश के भरोसेमंद साथी रहे मनोज कुमार पांडेय ने राज्यसभा चुनाव (27 फरवरी) को पाला बदल दिया। पहले उन्होंने पार्टी के सचेतक पद से इस्तीफा दिया। फिर कॉस वोटिंग की। मनोज पांडेय 3 बार यानी 2012, 2017 और 2022 में ऊंचाहर विधानसभा से लगातार विधायक हैं। मनोज सपा का ब्राह्मण चेहरा माने जाते थे।

रायबरेली में सियासी प्रभाव: ऊंचाहार सीट जब से बनी है, तभी से मनोज इस सीट पर लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। 2017 की भाजपा लहर में भी मनोज पांडेय ने जीत हासिल की। वह सपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। चर्चा है कि भाजपा उनको रायबरेली सीट से प्रत्याशी बना सकती है।
रायबरेली से सोनिया गांधी ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। रायबरेली की सदर विधायक अदिति सिंह भाजपा में शामिल होकर विधायक बन चुकी हैं। अगर मनोज आए तो भाजपा को मजबूती मिलेगी। यही वजह है कि रायबरेली सीट पर प्रत्याशी का ऐलान अभी वेटिंग लिस्ट में है।

  2. रितेश पांडेय: भाजपा जॉइन करने के 5 दिन बाद टिकट

रितेश पांडेय अंबेडकरनगर से बसपा सांसद हैं। फरवरी में भाजपा जॉइन की। 5 दिन बाद ही उनको भाजपा ने अंबेडकरनगर से टिकट दे दिया। रितेश के पिता राकेश पांडेय सपा से विधायक हैं। इसके पहले वह 2009 और 2014 में अंबेडकरनगर से सांसद रह चुके हैं। 42 साल के रितेश ने विदेश में स्टडी की है।

अंबडेकरनगर में सियासी प्रभाव : रितेश राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनके पिता राकेश पांडेय का उस क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। यही वजह है कि बेटा बसपा से सांसद है, जबकि वह खुद सपा से विधायक हैं। राकेश पांडेय ने भी राज्यसभा चुनाव में सपा से बगावत करते हुए भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में वोट किया।


राजनीति जानकार बताते हैं कि 2019 में भाजपा अंबेडकरनगर सीट हार गई थी। रितेश के आने से अब उस सीट पर जीत की संभावनाएं बढ़ गई हैं। यही नहीं, अवध की अन्य सीटों पर भी ब्राह्मण वोट बैंक भाजपा के साथ मजबूती से जुड़ेगा।

3- अभय सिंह: क्रॉस वोटिंग करके बगावत, Y श्रेणी की सुरक्षा मिली


अयोध्या की गोसाईगंज विधानसभा से सपा विधायक अभय सिंह ने राज्यसभा चुनाव में सपा से बगावत की। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में वोट डाला। अभय सिंह ने बसपा के साथ सियासत की शुरुआत की। फिर सपा में चले गए। 2022 में वे दूसरी बार विधायक बने थे। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी आरती तिवारी को हराया था। 2012 में वे आरती के पति खब्बू तिवारी को हरा चुके हैं।


अयोध्या और अंबेडकरनगर में सियासी प्रभाव: अभय सिंह मूल रूप से जौनपुर के रहने वाले हैं। वे पूर्व पीएम वीपी सिंह के रिश्तेदार भी हैं। बाहुबली विधायक होने के चलते अयोध्या और आस-पास की सीट पर उनका असर है। केंद्र सरकार ने हाल ही में उन्हें Y कैटेगरी की सुरक्षा दी है।
अवध क्षेत्र में क्षत्रिय वोट बैंक पर अभय सिंह की मजबूत पकड़ मानी जाती है। अयोध्या के साथ ही अंबेडकरनगर में भी क्षत्रिय वोट बैंक पर उनका प्रभाव है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट बताते हैं कि अभय सिंह के आने से इन दोनों सीटों पर सपा के वोट बैंक में सेंध लगेगी और भाजपा मजबूत हो सकती है।


4- दानिश अली: कांग्रेस ने अमरोहा सीट से टिकट


दानिश अली अमरोहा से बसपा सांसद है। ये उस समय चर्चा में आए जब दिल्ली के भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने उन पर विवादित बयान दिया। बिधूड़ी ने उन्हें आतंकी तक कह डाला। इसके बाद कांग्रेस के दिग्गज नेताओं संग उनकी तस्वीरें सामने आईं। इसके बाद बसपा ने पार्टी विरोधी एक्टिविटी के चलते दानिश को निष्कासित कर दिया। अब उन्हें कांग्रेस ने अमरोहा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है।

अमरोहा में सियासी प्रभाव: 2019 चुनाव में दानिश ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। उन्हें 51% वोट हासिल हुए थे। दानिश ने भाजपा के कुंवर सिंह तंवर को 63 हजार से अधिक वोटों से हराया था। अमरोहा लोकसभा में मुस्लिम और दलित वोट बैंक मायने रखता है।
दानिश पहले युवा जनता दल के साथ रहे। फिर उन्होंने बसपा जॉइन की। अमरोहा में आखिरी बार कांग्रेस ने 1984 में जीत दर्ज की थी। अमरोहा में जातीय समीकरण को देखते हुए कांग्रेस ने उन पर भरोसा जताया है। कांग्रेस को उम्मीद है कि दानिश अमरोहा में पार्टी के 40 साल के सूखे को खत्म करेंगे।

5- इमरान मसूद: बसपा से फिर कांग्रेस में आए,सहारनपुर से पार्टी ने उतारा

इमरान मसूद राजनीतिक परिवार से आते हैं। वह पूर्व केंद्रीय मंत्री रशीद मसूद के भतीजे हैं। इमरान ने साल 2006 में सहारनपुर नगर पालिका का चुनाव जीता। 2007 विधानसभा चुनाव में सपा से टिकट मांगा। टिकट न मिलने पर वह मुजफ्फराबाद विधानसभा सीट से निर्दलीय लड़े और जीते।

2012 विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस से उन्हें नकुड़ विधानसभा सीट से टिकट मिला, लेकिन वह हार गए। इसके बाद 2014 में उन्होंने फिर से पाला बदला और सपा जॉइन कर ली। सपा ने सहारनपुर लोकसभा से टिकट दिया। इस चुनाव में भी उन्हें हार मिली।

2017 में वह फिर कांग्रेस में आए और पांच साल तक रहे। 2022 में वह फिर सपा में चले गए। निकाय चुनाव से ऐन वक्त पहले उन्होंने टिकट नहीं मिलने पर बगावती तेवर दिखाते हुए सपा छोड़कर बसपा में एंट्री कर ली। करीब 6 माह पहले राहुल और प्रियंका गांधी की तारीफ करने पर बसपा ने उन्हें निष्कासित कर दिया था। इसके बाद उन्होंने फिर से कांग्रेस का दामन थाम लिया।

सहारनपुर में सियासी प्रभाव: सपा और बसपा में रहे इमरान मसूद दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं से जुड़े हुए हैं। इस बार सपा और कांग्रेस में गठबंधन है। मसूद का अपना अलग जनाधार भी है। वह मुस्लिम फेस हैं और सहारनपुर मुस्लिम बाहुल्य सीट मानी जाती है।


2014 चुनाव में कांग्रेस से लड़ रहे इमरान मसूद को 65 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। जबकि बसपा-सपा उम्मीदवार को 3 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। 2019 में बसपा-सपा गठबंधन था। इसके बावजूद इमरान तीसरे नंबर पर रहे। गठबंधन प्रत्याशी होने के चलते इस बार सपा का वोट भी उनके खाते में आना तय माना जा रहा है।

6- अजय कपूर : कांग्रेस की टिकट पर 3 बार रहे विधायक अब जॉइन की भाजपा


अजय कपूर कांग्रेस की टिकट पर 3 बार विधायक रहे हैं। वह 2002 में पहली बार विधायक बने। 2017 और 2022 विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वह कांग्रेस में राष्ट्रीय महासचिव और बिहार प्रभारी भी रह चुके हैं। भाजपा जॉइन करने के बाद ऐसी चर्चा थी कि पार्टी उन्हें कानपुर से लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी बनाएगी। लेकिन अब कानपुर लोकसभा सीट से भाजपा ने अपने प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है।

कानपुर में सियासी प्रभाव: कानपुर सीट ब्राह्मण बाहुल्य है। यहां पंजाबी वोटर्स की संख्या भी अच्छी-खासी है। इन वोटर्स में अजय कपूर का अच्छा प्रभाव है। अजय कपूर के भाई विजय कपूर और संजय कपूर बिजनेसमैन हैं। ऐसे में कानपुर की बिजनेस बिरादरी में भी उनकी पैठ है।
कानपुर के सपा विधायक इरफान सोलंकी जेल में । यहां इरफान का मुस्लिम आबादी में अच्छा प्रभाव है। 2009 में यहां कांग्रेस के टिकट पर श्रीप्रकाश जयसवाल ने जीत दर्ज की थी। क्योंकि, सपा और कांग्रेस इस बार दोनों गठबंधन में हैं। इसलिए भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है। अजय कपूर ऐसे में यहां भाजपा के लिए ट्रंप कार्ड हो सकते हैं। स्थानीय वोटर्स में उनकी अच्छी पकड़ है। अब भाजपा पूरी कोशिश करेगी कि वो यहां जीत की हैट्रिक लगा सके।


7- संगीता आजाद : परिवार के साथ जुड़ा दलित वोट बैंक

2019 चुनाव में लालगंज सीट से बसपा सांसद संगीता आजाद ने जीत दर्ज की थी। एक हफ्ते पहले वह भाजपा में शामिल हो गई हैं। संगीता ने भाजपा कैंडिडेट नीलम सोनकर को डेढ़ लाख वोटों से हराया, वह भाजपा में शामिल हो गई हैं। संगीता ने भाजपा कैंडिडेट नीलम सोनकर को डेढ़ लाख वोटों से हराया था। संगीता के पति अरिमर्दन आजाद लालगंज से बसपा के विधायक रह चुके हैं। वह भी भाजपा में शामिल हो गए हैं।

संगीता की सास 2 बार जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। संगीता के ससुर गांधी आजाद क्षेत्र के जाने माने चेहरे रहे हैं। वह बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। ऐसे में उनके बेटे और सांसद बहू का पार्टी छोड़ना बसपा के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है।
आजमगढ़-लालगंज सीट पर सियासी प्रभाव: राजनीतिक जानकार मानते हैं कि संगीता के भाजपा में आने से न सिर्फ लालगंज और आजमगढ़ सीट, बल्कि पूर्वांचल की राजनीति पर असर पड़ेगा। यहां का दलित वोटर्स खासकर गैर-जाटव भाजपा के साथ जुड़ सकता है। क्योंकि, संगीता राजनीतिक परिवार से हैं। ऐसे में वोट बैंक पर उनकी अच्छी पकड़ है।

8- राकेश प्रताप सिंह : सपा से बगावत, सरकार ने दी Y श्रेणी सुरक्षा


राकेश प्रताप सिंह अमेठी की गौरीगंज से सपा विधायक हैं। राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने के बाद वह लगातार भाजपा के लिए एक्टिव दिख रहे हैं। भाजपा ने क्रॉस वोटिंग के बाद राकेश प्रताप समेत 4 विधायकों को रिटर्न गिफ्ट भी दिया। सभी को Y-श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था मिली है। 2012 में राकेश सिंह ने पहली बार गौरीगंज सीट से चुनाव लड़ा और पहली बार में ही विधायक बने। 2017 में दोबारा विधायक बने, फिर 31 अक्टूबर 2021 को विधायकी से इस्तीफा दे दिया था। 2022 के विधानसभा चुनाव में योगी लहर में राकेश सिंह ने भाजपा उम्मीदवार को हराया।

अमेठी में सियासी प्रभाव: राकेश प्रताप सिंह साल 2021 में उस समय चर्चा में आए जब सरकार की कार्यप्रणाली से नाराज होकर विधायकी से इस्तीफा दे दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने समर्थकों के साथ अनशन पर बैठने का ऐलान भी किया था। भाजपा अमेठी लोकसभा जीतने के लिए राकेश को साथ लेकर आई है। क्योंकि वह बीजेपी लहर के बावजूद लगातार 2 बार से विधायकी जीत रहे हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि राकेश सिंह की क्षत्रिय वोट बैंक पर अच्छी पकड़ है। ऐसे में अमेठी, रायबरेली और सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी को फायदा पहुंचा सकते हैं।

9- गुड्डू जमाली: बसपा छोड़ सपा में आए, एमएलसी बने

शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली बसपा के दिग्गज नेताओं में रहे हैं। लेकिन अब उन्होंने सपा में एंट्री ले ली है। गुड्डू जमाली आजमगढ़ की मुबारकपुर सीट मुबारकपुर सीट से 2012 और 2017 में विधायक रहे हैं। वह बसपा की टिकट से ही सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और धर्मेंद्र यादव के खिलाफ आजमगढ़ में चुनाव लड़ चुके हैं।

आजमगढ़ के मुस्लिम वोट बैंक पर जमाली की अच्छी पकड़ है। इसलिए, सपा जॉइन करने के तुरंत बाद ही सपा ने उनको एमएलसी बना दिया। आजमगढ़ सीट पर सपा ने धर्मेंद्र यादव को उतारा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यहां सभा कर चुके हैं। ऐसे में आजमगढ़ सीट सपा और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी है।

आजमगढ़ में सियासी प्रभाव : गुड्डू जमाली पूर्वांचल में बड़े मुस्लिम नेता के रूप में पहचान है। मुस्लिमों के साथ-साथ कारोबारी वर्ग में भी उनकी अच्छी पकड़ है। लोकसभा उपचुनाव-2022 में इस सीट पर भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने जीत दर्ज की थी। जबकि सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे धर्मेंद्र यादव हार गए।

इसके पीछे की वजह यह थी कि गुड्डू जमाली ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। तब उनको 2.66 लाख वोट मिले थे। जबकि भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ को 3.12 लाख वोट और धर्मेंद्र को 3.04 लाख वोट मिले थे। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि गुड्डू जमाली के सपा जॉइन करने के बाद भाजपा प्रत्याशी को आजमगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में कड़ी टक्कर मिल सकती है।

10- चौधरी सुनील सिंह: एनडीए में शामिल हुई रालोद, तो जताई नाराजगी

लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी सुनील सिंह इंडि गठबंधन का सपोर्ट कर रहे हैं। वह MLC रह चुके हैं। जयंत चौधरी ने जब NDA के साथ जाने का फैसला किया, तो उन्होंने इस पर नाराजगी जताई। वह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीति की विरासत को आगे बढ़ने का दावा करते हैं।

पश्चिम यूपी में सियासी प्रभाव: सुनील सिंह के इंडि गठबंधन का सपोर्ट करने से जाट और किसान वोट बैंक पर असर पड़ेगा। पश्चिम यूपी में जाट और किसान वोट बैंक बेहद अहम है। सुनील सिंह इस वोट बैंक पर अपनी पकड़ का दावा करते हैं।

राहुल गांधी की न्याय यात्रा हो या अखिलेश यादव की रैली, चौधरी सुनील सिंह खुलकर अपने कार्यकर्ता और समर्थकों के साथ समर्थन कर रहे हैं। वह इसका ऐलान भी कर चुके हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि सुनील चौधरी के समर्थन के बाद इंडि गठबंधन को फायदा मिल सकता है। 

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