जाटलैंड से होगी गठबन्धन के गणित की असली परीक्षा: पश्चिमी यूपी में रहा है चौ० चरण सिंह के परिवार का वर्चश्व
जाटलैंड से होगी गठबन्धन के गणित की असली परीक्षा

नाम : जयंत चौधरी
पिता का नाम : स्व. अजित सिंह
आयु: 45 वर्ष
पता: नई दिल्ली
शिक्षा: स्नातक, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स
राजनीतिक करियर: 2009 में मथुरा की लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। वर्तमान में रालोद अध्यक्ष तथा राज्यसभा सांसद

सियासत, सोशल मीडिया तथा सौगात इन सभी प्लेटफार्म पर रालोद के प्रमुख जयंत चौधरी काफी लकी सिद्ध हो रहे हैं। सबसे पहले उनके दादा तथा पूर्व प्रधानमंत्री एवं किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह को देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित भी किया गया। इस सौगात के अलावा कई सालों के सूखे के बाद एक बार फिर उत्तर प्रदेश सरकार में रालोद पार्टी को एंट्री मिली है। बता दें कि इस बार रालोद प्रमुख जयंत खुद तो चुनाव के मैदान में नहीं है लेकिन चुनाव के बाद बिजनौर तथा बागपत के परिणाम ही अब उनके सियासी फैसले पर सफलता की मोहर लगाएगा।

पश्चिमी यूपी में है परिवार का वर्चस्व:

दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति को देखें तो यहां चौधरी चरण सिंह के परिवार का अपना अलग ही वर्चस्व रहा है। जयंत चौधरी के द्वारा अब तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व किया जा रहा है। उनकी भी छवि युवा किसान नेता की मानी जाती है। वह सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहते हैं। पार्टी के फैसले भी जयंत स्वयं ही लेते हैं। 

साल 2009 में जयंत पहली बार मथुरा की लोकसभा सीट चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे थे। तब भी भाजपा के साथ ही रालोद गठबंधन हुआ था। उस समय उनके पिता अर्थात छोटे चौधरी अजित सिंह पार्टी अध्यक्ष थे। अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने भाजपा के साथ यह चुनावी गठबंधन किया था। हालांकि छोटे चौधरी के निधन के बाद पार्टी की जिम्मेदारी अब जयंत के कंधों पर है तथा वेस्ट यूपी की जाट बेल्ट में उनके बढ़ते रसूक को ही देखते हुए BJP ने भी उनके साथ चुनावी गठबंधन किया है।

भाजपा से अलगाव के बाद हार गए कई चुनाव:

भाजपा से अलग होने के बाद साल 2017 का विधानसभा चुनाव एवं साल 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ गठबंधन करके रालोद के द्वारा लड़ा गया। लेकिन पार्टी को अपनी साख बचाने तक के भी लाले पड़ गए। विधानसभा चुनाव में पार्टी को जहां केवल एक सीट, छपरौली पर ही रालोद के उम्मीदवार को जीत मिली वहीं दूसरी ओर लोकसभा के चुनाव में तो मुजफ्फरनगर से जयंत के पिता चौधरी अजित सिंह तथा बागपत की सीट से खुद जयंत चौधरी भी चुनाव हार गए।

बता दें कि छपरौली से जीता पार्टी का अकेला विधायक भी 1 साल बाद ही भाजपाई हो गया तथा करीब 4 साल तक यानी 2022 तक एक ऐसा वक्त भी रहा जब पार्टी का यूपी की विधानसभा तथा लोकसभा में कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं बचा। हालांकि छोटे चौधरी की मृत्यु के बाद दोबारा जयंत चौधरी ने पार्टी को एक नए सिरे से खड़ा किया है। साथ ही पिछले विधानसभा के चुनाव में सपा के साथ उन्होंने गठबंधन किया तथा पार्टी ने चुनाव में 8 सीटों पर जीत भी दर्ज की थी।

जीत से मिली थी तवज्जो:

साल 2022 में हुए विधानसभा के चुनाव के नतीजे के बाद मिली जीत से जयंत को राष्ट्रीय राजनीति में भी तवज्जो मिलने लगी है। इंडिया गठबंधन तथा सपा के द्वारा एक तरफ जहां रालोद को अपने करीब लाने की कोशिश की गई वहीं दूसरी तरफ भाजपा की नजरे भी उन पर पड़ी। 
भाजपा ने उनके दादा तथा देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देकर जयंत से लिए चुनावी घाट जोड़ का दरवाजा खोल दिया। अंततः हुआ यह की जयंत अब बीजेपी के साथ गठबंधन में मौजूद हैं। बरसों की पूरी हुई इस मुराद के बाद जयंत ने अपने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि “दिल जीत लिया”।
माना जा रहा है कि रालोद का भाजपा से गठबंधन करने का फायदा एक ओर जहां भाजपा को वेस्ट यूपी में मिलेगा तो वहीं रालोद को भी अपनी खोई हुई उस सियासी जमीन के मिलने की भी संभावना है जो भाजपा के साथ रहते हुए पार्टी को साल 2009 में हुए आम चुनाव में 5 सांसदों के रूप में मिली थी।

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