आज होगी काशी में हरिश्चंद्र घाट पर मसाने की होली: 11 बजे से 2 किमी तक निकलेगी शोभायात्रा, 1 बजे महाश्मशान पर चिता भस्म की होली
आज होगी काशी में हरिश्चंद्र घाट पर मसाने की होली

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी पर होली का रंग पूरी तरह से चढ़ गया है। अबीर, गुलाल, रंग और फूलों के अलावा काशी में चिता की राख से खेली जाने वाली होली का अलग ही अंदाज है। आज दोपहर 1 बजे काशी के प्रसिद्ध हरिश्चंद्र घाट पर चिता भस्म से मसाने की होली खेली जाएगी।

महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर मसाने की होली के लिए तैयारियां हो चुकी हैं। इससे ठीक पहले यानि करीब 11 बजे मसान नाथ की शोभायात्रा निकाली जाएगी। बाबा कीनाराम आश्रम से 2 किलोमीटर आगे यह शोभायात्रा हरिश्चंद्र घाट पहुंचेगी। घाट पर काशी के पारंपरिक लोक रंग का अद्भुत प्रदर्शन मसाने की होली के रूप में दिखेगा।

आज खेली जाएगी काशी के हरिश्चंद्र घाट पर चिता भस्म की होली:

शोभायात्रा के दौरान फूलों की वर्षा की जाएगी और पूरे रास्ते इस यात्रा में लोग शामिल होते रहेंगे। आयोजक काशी मोक्षदायिनी सेवा समिति द्वारा कहा गया कि इस बार भी शानदार झांकियों का आयोजन किया जा रहा है।

हरिश्चंद्र घाट पर रहेंगे सुरक्षा के इंतजाम:

कार्यक्रम के आयोजक पवन कुमार चौधरी ने बताया कि मसाने की होली के लिए हजारों की संख्या में लोग घाट पर इकट्ठा होंगे। सुरक्षा-व्यवस्था के लिए पुलिस तैनात रहेगी। इस बार  राधा-कृष्ण सहित, मां काली, मां दुर्गा एवं शिव के विभिन्न रूपों वाली झांकी निकाली जाएगी। बाबा कीनाराम मंदिर से झांकी के निकलने के बाद जब हम सोनारपुरा पहुंचेंगे तो वहां झांकी का स्वागत पुष्पवर्षा से होगा।

अब जानें क्यों चिता की राख से ही खेली जाती है काशी में होली...:

भगवान शिव से जुड़ी है यह परंपरा

हिंदू वेदपुराण और शास्त्रों के अनुसार होली के त्योहार पर बाबा विश्वनाथ देवी देवता, यक्ष, गंधर्व से लेकर अपने भक्तों भूत, प्रेत, पिशाच और अदृश्य शक्तियां के साथ महाश्मशान पर होली खेलते हैं। इन्हें बाबा इंसानों के बीच जाने से रोककर भी रखते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव अपने सभी भूत-प्रेत और शक्तियों के साथ होली खेलने घाट पर आते हैं।

यह भी मान्यता है कि विवाह के बाद भगवान शिव, माता पार्वती को रंगभरी एकादशी के दिन ही गौना कराकर काशी पहुंचते हैं। इसके बाद वे होली खेलते हैं। लेकिन इस दौरान वे भूत, पिशाच और अघोरियों के साथ होली नहीं खेल पाते, इसलिए महाश्मशान पर चिता का राख के साथ अड़भंगी भोलेनाथ, खेले मसाने में होली दिगंबर की धुन पर होली खेलते हैं।

इन गीतों से गुंजायमान होगा पूरा क्षेत्र:

• खेलें मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

• खेले मसाने में होरी, रंग-गुलाल हटा के, लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से, चिता, भस्म भर झोरी दिगंबर।

• खेले मसाने में होरी, कौनऊ बाधा ना साजन ना गोरी, गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना, ना साजन ना गोरी दिगंबर।

आयोजकों का यह भी कहना है कि चिता की राख से होली खेलने की परंपरा बहुत ही पुरानी है। इस दिन यानि रंगभरी एकादशी के दिन वाराणसी के महाश्मशान में चिता की राख से होली खेली जाएगी। घाट पर डमरू का निनाद होगा, घंटे-घड़ियाल का शोर होगा और महादेव के गण होली खेलेंगे।

मणिकर्णिका घाट पर 21 मार्च को होली:

 फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को भगवान भोलेनाथ औघड़ स्वरूप में काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली खेलते हैं। इसका आयोजन 21 मार्च को किया गया है आपको बता दें कि मणिकर्णिका घाट पर भस्म से होली खेलने के लिए देश-विदेश से पर्यटक जुटते हैं।

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