यूपी: बीते शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के द्वारा मदरसा बोर्ड को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया गया। दरअसल कोर्ट ने 2004 में बने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यह पूरा अधिनियम संविधान में मौजूद पंथ निरपेक्षता के मूल सिद्धांत के साथ साथ संविधान में व्याप्त समानता तथा जीवन एवं शिक्षा के मौलिक अधिकारों के भी बिल्कुल विपरीत है।
उच्च न्यायालय ने मदरसा अधिनियम को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन अधिनियम की धारा 22 के भी विपरीत पाया है तथा सरकार को यह आदेश दिया है कि वह मदरसों में पढ़ने वाले सभी छात्रों को जल्द ही विभिन्न बोर्ड के अंतर्गत नियमित स्कूलों में समायोजित करे।
माना जा रहा है की अधिनियम की समाप्ति होने के बाद काफी बड़ी संख्या में मदरसों में पढ़ने वाले विद्यार्थी प्रभावित होंगे। इसलिए राज्य पर्याप्त संख्या में स्कूलों में सीटें बढ़ाए तथा आवश्यकता पड़े तो नए विद्यालयों की स्थापना भी करे। बता दें कि यह निर्णय जस्टिस विवेक चौधरी तथा जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ के द्वारा अंशुमान सिंह राठौर की याचिका पर दिया गया है।
इस याचिका के साथ ही कोर्ट के द्वारा एकल पीठों की भेजी गई उन सभी याचिकाओं पर भी सुनवाई की गई जिनमें मदरसा बोर्ड अधिनियम के संवैधानिकता पर प्रश्न उठाते हुए सारे मामले बड़ी बेंच को भेजे गए थे। जिसके बाद इन याचिकाओं पर कोर्ट ने अपना निर्णय 8 फरवरी, 2024 को सुरक्षित रख लिया था।
कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य यह नहीं कर सकता कि किसी भी विशेष धर्म के बच्चे को अन्य से अलग शिक्षा दी जाए। धर्म के आधार पर समाज को बांटने वाली कोई भी राज्य की नीति देश के संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत होती है। सरकार को यह अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि 6 से 14 साल का कोई भी बच्चा मान्यता प्राप्त स्कूलों में दाखिले से छूट न जाए। याचिका में यह कहा गया कि था मदरसा अधिनियम में यह बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं है कि किसी एक विशेष धर्म को शिक्षा देने के लिए अलग से एक सरकारी बोर्ड बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
वहीं, राज्य सरकार तथा मदरसा बोर्ड की तरफ से यह दलील दी गई है कि सरकार के पास पारंपरिक शिक्षा प्रदान करने हेतु नियम बनाने की शक्ति मौजूद है। इस पर न्यायालय की तरफ से कहा गया कि सरकार के पास यह शक्ति तो जरूर है, किंतु उनसे द्वारा दी जाने वाली पारंपरिक शिक्षा संविधान के अनुसार पंथनिरपेक्ष वाली प्रकृति की ही होनी चाहिए। सरकार के पास कोई भी ऐसी शक्ति नहीं है जिसके अंतर्गत वह धार्मिक शिक्षा हेतु किसी बोर्ड का गठन कर सके।
न्यायालय के द्वारा नियुक्त न्यायमित्र के द्वारा भी यह दलील दी गई कि शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत सरकार 6 से 14 साल के बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जा सकती है जो कि यूनिवर्सल हो न कि किसी धर्म विशेष से संबधित। मुख्य याचिका के खिलाफ कुछ मदरसों तथा मदरसों में पढ़ने वाले शिक्षक तथा कर्मचारी संगठन ने एक हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र भी दाखिल किया था। सुनवाई के समय अपर महाधिवक्ता अनिल प्रताप सिंह तथा न्याय मित्र गौरव मेहरोत्रा ने भी इसपर अपना पक्ष रखा।
बता दें कि मदरसा शिक्षा के लिए यह अधिनियम साल 2004 में मुलायम सिंह यादव की सरकार के समय बना था। यह एक ऐसा कानून है जिससे राज्य के सभी मदरसों का संचालन होता है तथा मानक को पूरा करने वाले सभी मदरसों को मदरसा बोर्ड की तरफ से मान्यता दी जाती है। बोर्ड मदरसों की शिक्षण सामग्री उनका पाठ्यक्रम तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु भी सभी दिशा-निर्देश प्रदान करता है। प्रदेश में वर्तमान समय में प्राइमरी तथा जूनियर स्तर के करीब 11057 तथा करीब 4394 हाईस्कूल स्तर के मदरसे एवं सरकार से अनुदान प्राप्त करने वाले करीब 560 मदरसे कार्यरत हैं। इन सभी मदरसों में लगभग 13.57 लाख बच्चे अध्ययन करते हैं।
यूपी मदरसा बोर्ड के वर्तमान चेयरमैन डा. इफ्तिखार अहमद जावेद के द्वारा उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को कोर्ट की ओर से असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद उसके निर्णय पर आश्चर्य जताया है। उन्होंने कहा है कि यह निर्णय काफी बड़ा है, इसकी सरकार के द्वारा समीक्षा की जाएगी।
उन्होंने कहा कि मदरसों में सरकारी अनुदान धार्मिक शिक्षा के लिए नहीं दिया जाता है। यह अनुदान फारसी, अरबी तथा संस्कृत भाषा को आगे बढ़ाने के लिए दिया जाता है। यही मुख्य वजह है कि संस्कृत तथा अरबी फारसी बोर्ड भी सरकार की ओर से बनाए गए हैं। दोनों बोर्ड अपना काम भी अच्छे से कर रहे हैं। इसलिए ऐसा लगता है की न्यायालय को समझाने में कहीं न कहीं हमसे कोई चूक हुई है।
अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि न्यायालय के निर्णय को पहले देख-समझ लें तत्पश्चात इसकी समीक्षा भी करवाई जाएगी। इसके बाद ही सरकार के द्वारा इस संबंध में कोई उचित निर्णय लिया जाएगा।
डॉ. प्रियंका अवस्थी (मदरसा शिक्षा परिषद की रजिस्ट्रार ) ने यह बताया कि वर्तमान में मदरसा बोर्ड से मान्यता पाने वाले करीब 16,460 मदरसों के अन्तर्गत 13 लाख 83 हजार 107 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। वहीं, इनमें शामिल होने वाले 560 अनुदानित मदरसों के अन्तर्गत तकरीबन 1 लाख 92 हजार 317 से अधिक विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद मदरसों के शिक्षा ले रहे इन सभी 13 लाख से अधिक बच्चों के भविष्य पर अंधेरा छा जायेगा।
वहीं दूसरी तरह यदि इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के पश्चात अनुदानित मदरसे बंद कर दिए जाएंगे तो वहां कार्यरत करीब 10,200 शिक्षक तथा शिक्षणेतर कर्मचारियों की रोजी-रोटी पर भी बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।
वहीं कोर्ट के आदेश के बाद अखिल भारत हिन्दू महासभा के प्रवक्ता श्री शिशिर चतुर्वेदी के द्वारा यह कहा गया कि जिस प्रकार हाईकोर्ट ने अपना यह फैसला दिया है, जिसके अन्तर्गत 2004 के यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट को असंवैधानिक करार करते हुए यह कहा गया है कि यह हमारे संविधान की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। जिस प्रकार से यहां एक धार्मिक पुस्तक से धर्म की शिक्षा दी जा रही हो, जिस प्रकार से यहां कट्टर पंथ का भी पाठ पढ़ाया जाता हो तथा यहां बिना कोई टेट का एग्जाम दिए ही शिक्षक भी भर्ती हो जाते हैं। जिस प्रकार से सरकारी भर्तियों की यहां लूट होती है। यह सब अब बंद होना चाहिए तथा इन सभी मदरसों को प्राइमरी स्कूल में बदल देना चाहिए। इनको जो भी धन अवैध तरीके से दिया जा रहा है वह भी बंद होना चाहिए।