उत्तर प्रदेश चुनावी जंग' सभी दिग्गज एक नजर में: कोन किस पर पड़ेगा भारी बीजेपी, बसपा और कांग्रेस-सपा गठबंधन?
उत्तर प्रदेश चुनावी जंग' सभी दिग्गज एक नजर में

उत्तर प्रदेश: लोकसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो उत्तर प्रदेश देश की सभी छोटी बड़ी राजनीतिक पार्टियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य माना जाता है। यूपी भारत में अभी तक सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाला राज्य बना हुआ है। बता दें की यहां से कुल 80 लोकसभा सीट आती हैं,जो की किसी राज्य से सर्वाधिक हैं।

कहते हैं कि देश में सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर निकलता है। देश का यह सबसे बड़ा राज्य, भारत में सबसे बड़ी सियासत का विद्यालय भी माना जाता है। इसलिए यह कहावत भी कही जाती गई कि “जिसने यूपी को जीत लिया, मान लिया जाता है कि वही दिल्ली में भी अपनी सरकार बनाएगा।” तभी तो जब साल 2014 में बीजेपी को केंद्र में अपनी सरकार बनानी थी, तब उसने अपने सबसे बड़े चेहरे यानि नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश के ही वाराणसी सीट से चुनाव में उतारा था। इस चुनाव में एक बार फिर से यूपी पर ही सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। एक बार फिर से सभी पार्टियों के द्वारा उत्तर प्रदेश को फतेह करने हेतु जीन जान लगाया जा रहा है। 

बीते दिन चुनाव आयोग ने होने वाले चुनावी महापर्व की तारीखों की घोषणा कर दी है। आइए समझे हैं इसमें यूपी में कब कब होगा चुनाव और यहां किन नेताओ के द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है।


जानिए किस चरण में और कहां होगा मतदान :

पहला चरण:  19 अप्रैल (8 सीट)

सहारनपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, कैराना, मुजफ्फरनगर, नगीना, पीलीभीत और रामपुर में वोटिंग होगी।

दूसरा चरण:  26 अप्रैल (8 सीट)

अमरोहा, बागपत, गाजियाबाद, मेरठ, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, मथुरा और अलीगढ़ में वोटिंग होगी।

तीसरा चरण: 7 मई (10 सीट)

हाथरस, आगरा, संभल, फतेहपुर सीकरी, फिरोजाबाद, मैनपुरी, बदायूं, एटा, बरेली और आंवला में मतदान होगा।

चौथा चरण: 13 मई (13 सीट)

शाहजहांपुर, खीरी, सीतपुर, धौरहरा, उन्नाव, हरदोई, मिश्रिख, फर्रुखाबाद, कानपुर, इटावा, कन्नौज, बहराइच और अकबरपुर में वोटिंग होगी।

पांचवां चरण: 20 मई (14 सीट)

मोहनलालगंज, रायबरेली, लखनऊ, जालौन, झांसी, अमेठी, हमीरपुर, बांदा, बाराबंकी, फतेहपुर, कौशांबी, फैजाबाद, गोंडा और कैसरगंज में वोटिंग होगी।

छठा चरण: 25 मई (14 सीट)

सुल्तानपुर, फूलपुर, प्रतापगढ़, अम्बेडकरनगर, बस्ती, श्रावस्ती, डुमरियागंज, संतकबीर नगर, लालगंज, जौनपुर, आजमगढ़, मछलीशहर, इलाहाबाद और भदोही में मतदान होगा।

सातवां चरण: 1 जून (13 सीट)

गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, बांसगांव, घोसी, बलिया, सलेमपुर, गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, कुशीनगर और रॉबर्ट्सगंज में वोटिंग होगी। 

इन सीटों पर रहेगी सबकी निगाहें:

लखनऊ:  बीते 28 वर्षों से राजधानी लखनऊ BJP का गढ़ माना जाता रहा है। साल 1996 से लेकर अब तक लखनऊ की लोकसभा सीट पर BJP का ही कब्जा रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी जी स्वयं ही इस सीट से 5 बार लगातार सांसद रहे थे। उनके बाद लालजी टंडन ने इस सीट से चुनाव लडे और जीते। उसके बाद अब पिछले दो लोकसभा चुनावों से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सीट पर अपना कब्जा जमाया हुआ है। इस बार भी बीजेपी के द्वारा उनपर भरोसा जताया गया है और इसी सीट से उन्हे चुनावी मैदान में उतारा गया हैै। वहीं सपा के द्वारा इस सीट से रविदास मल्होत्रा को इस बार अपना उम्मीदवार बनाया गया है।

रायबरेली: इस सीट को शुरुआत से ही कांग्रेस परिवार की एक परंपरागत सीट के रूप में माना गया है। साल 1977, 1966 तथा 1998 को छोड़ दे तो बाकी सभी लोकसभा चुनाव में यहां पर कांग्रेस को ही जीत मिली है। बीते चार बार से तो इस सीट पर कांग्रेस की सोनिया गांधी का ही कब्जा रहा है। हालांकि इस बार उन्होंने अपने स्वास्थय का हवाला देते हुए लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। अब इस बार यह देखना होगा की सोनिया गांधी के बिना ही इस सीट पर कांग्रेस अपनी कैसी रणनीति अपनाती है।

अमेठी:  यूपी की अमेठी सीट पर भी हमेशा से कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। बता दें की इस सीट पर हमेशा कांग्रेस की ही जीत हुई है। गांधी परिवार के शीर्ष नेता राजीव गांधी से लेकर राहुल गांधी तक सभी इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं। बता दें की राहुल के राजनीतिक सफर की शुरूआत भी अमेठी की ही सीट से हुई है। लेकिन, वर्ष 2019 में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने इस सीट पर राहुल गांधी को करीब 55 हजार वोटों से हरा दिया था। इस बार अब राहुल गांधी को वायनाड की ही सीट से कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। ऐसे में यह देखना होगा कि इस बार अमेठी की सीट पर बीजेपी अपना कब्जा जमाए रहती है अथवा कांग्रेस अपने गढ़ में एक बाद फर्ज वापसी कर सकेगी।

आजमगढ़:  लोकसभा की इस सीट को सपा तथा बसपा का गढ़ माना जाता है। बता दें कि तीन बार इस सीट पर बसपा के उम्मीदवार की जीत हुई है तो वहीं सपा के द्वारा भी यहां चार बार जीत दर्ज की जा चुकी है। साल 2014 में यहां की सीट से सपा के वरिष्ठ नेता श्री मुलायम सिंह यादव के द्वारा जीत दर्ज की गई थी। उसके बाद इसी सीट से वर्ष 2019 में वर्तमान सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी चुनाव जीत कर सांसद बनें थे। एक बार फिर यह सीट चर्चा में बनी हुई है।

जानते हैं कि कौन हैं यूपी के चर्चित चेहरे:

नरेन्द्र मोदी:

लगातार अपने तीसरे कार्यकाल के लिए प्रयासरत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ भारत पर अपने चुनावी प्रभुत्व की ही मुहर लगाना चाहते हैं, बल्कि इससे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा बनाए गए रिकॉर्ड की भी बराबरी करते हुए लगातार एक और विजय के साथ इतिहास रचने की भी कोशिश में हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा ‘‘मोदी की गारंटी'' तथा ‘‘विकसित भारत'' के इर्द-गिर्द चुनावी अपने विचार विमर्श को खड़ा करने की कोशिश करेंगे। बता दें की 73 वर्षीय मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के लिए अपने आत्मविश्वास के साथ इस चुनाव में उतर रहे हैं तथा उन्होंने अपने अगले कार्यकाल के लिए भी काम शुरू कर दिया है। इसलिए इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए मोदी का चेहरा एक बार फिर असर ला सकता है?

अमित शाह:

केंद्रीय मंत्रिमंडल के अंदर अघोषित रूप से 'नंबर 2' तथा भाजपा के 'चाणक्य' कहे जाने वाले नेता अमित शाह एक बार फिर से अपनी पार्टी की रणनीति में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। चाहे संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना हो अथवा CAA यानि संशोधित नागरिकता कानून हो, उन्होंने देश के गृह मंत्री के रूप में कई मुश्किल परिस्थितियों में अपनी सरकार को संभाला है। 59 वर्षीय अमित शाह एक बार फिर से चुनावी युद्ध के मैदान में अपने सभी सैनिकों का नेतृत्व करते हुए तथा एक सेनापति के रूप में नजर आएंगे।

राहुल गांधी:

कांग्रेस हमेशा से अपने पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी पार्टी के लिए ‘वैचारिक धुरी' कहती रही है। कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की ‘भारत जोड़ो यात्रा' की वजह से उनकी छवि में अवश्य बदलाव हुआ है। लेकिन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में हार के बाद इस पर सवालिया निशान लगा दिए गए है कि क्या उनकी यात्रा असल में प्रभावी थी?

53 वर्षीय राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा' के साथ एक बार फिर से लोगों के लिए ‘न्याय' को सुनिश्चित करने के अपने उद्देश्य से जनता के बीच चर्चित हैं। अब देखना यह होगा कि यह लोगों को पसंद आएगा या नहीं, यह तो सिर्फ समय ही बताएगा।

मल्लिकार्जुन खरगे:

कांग्रेस में एक कार्यकर्ता के रूप में शुरुआत कर अध्यक्ष के पद तक पहुंचे मल्लिकार्जुन खरगे भी सक्रिय रूप से राजनीति में पांच दशक का अनुभव रखते हैं। उन्होंने अक्टूबर साल 2022 में पार्टी की कमान संभाली थी। कहा जा रहा है कि 81 वर्षीय खरगे को इस चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए अपनी अब तक की सबसे कड़ी परीक्षा का सामना भी करना पड़ रहा है।

योगी आदित्यनाथ:

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बीजेपी के फायरब्रैंड नेता कहा जाता हैं। हिंदुत्व की राजनीति के द्वारा लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचने वाले योगी आदित्यनाथ वर्तमान में देश के सर्वाधिक चर्चित मुख्यमंत्री भी माने जाते हैं। बता दें की वह वर्तमान में गोरखपुर से बीजेपी के विधायक हैं। बीजेपी के द्वारा उनके चेहरे के दम पर ही दो बार यूपी में अपनी सरकार बनाई गई है तथा इस बार लोकसभा चुनाव में यूपी की पूरी 80 सीटें जीतने का टारगेट भी रखा गया है।

अखिलेश यादव:

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस समय करहल से विधायक हैं। समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े चेहरे होने के साथ ही उनको सबसे युवा सीएम होने का तमगा भी जाता है। सामाजवादी पार्टी में अब जिस तरह से आधुनिक तकनीकों का उपयोग होने लगा है, जिस तरह से पार्टी के लोगों की सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ी है, उसका भी क्रेडिट कहीं न कहीं अखिलेश यादव को ही जाता है।

मायावती:

यूपी की चुवानी सियासत को बिना मायावती के कभी भी पूरा नहीं कहा जा सकता। चार बार की प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती प्रदेश में दलित समाज के लिए देखें तो सबसे बड़ा चेहरा हैं। उन्होंने कैराना से लेकर बिजनौर तथा हरिद्वार तक से भी चुनाव लड़ लडा हैं। साल 2001 से मायावती लगातारा बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष रही हैं। हाल ही में उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को अब पार्टी का उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया है।

ओपी राजभर:

ओपी राजभर (सुलेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष) ने वर्तमान में बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया है। पिछड़ों के लिए सियासत करने वाले ओपी राजभर समय के साथ दोनों पार्टियों बीजेपी तथा सपा के साथ रह चुके हैं। प्रदेश की चुनावी सियासत में उनकी अहमियत और महत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि पूर्वांचल में देखें तो लगभग हर सीट पर उनकी एक निर्णायक भूमिका रहती है। बता दें कि वर्तमान में वह यूपी के जहूराबाद से विधायक है।

जयंत चौधरी:

प्रदेश में जाटों का जिक्र जब भी किया जाता है, उसमे जयंत चौधरी के नाम का आना लाजिमी हो जाता है। हालांकि इस समय जरूर उनकी पार्टी RLD प्रदेश में हाशिए पर आ चुकी है, किंतु वे लगातार अपने कार्यकर्ताओं के साथ जमीन पर संघर्ष कर रहे हैं। बता दें की पश्चिमी यूपी में राजनीति में सक्रिय रहने वाले जयंत चौधरी ने इस बाद बीजेपी का दामन थामा है।

इन सभी नेताओं के अलावा भी यूपी की राजनीति में समय-समय पर और भी कई नेताओं के नाम आते रहते हैं। जिनमे संजय निषाद, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, राजा भैया, शिवपाल, अनुप्रिया पटेल,इमरान मसूद, आजम खान, केशव प्रसाद मौर्य तथा संजीव बालियान जैसे कई महत्वपूर्ण नेताओं का भी जिक्र चुनावी समय में होता रहता है।

आइए देखते हैं यूपी की प्रमुख निर्णायक जातियां:

उत्तर प्रदेश में कोई भी चुनाव फतेह करने के लिए अगर देखें तो उसमें जातियों की समझ ही सबकुछ मालूम पड़ती है। प्रदेश में विकास के नाम पर भी वोट तभी मिलेगा, जब जातियों को भी सही तरह से साधा गया होगा। इसलिए यूपी की राजनीति को अच्छे से समझने के लिए यहां की जातियों का भी थोड़ा बहुत ज्ञान होना बेहद जरूरी है। फिर बात चाहे ओबीसी की हो अथवा मुस्लिम समाज की हो अथवा सवर्ण समाज को साधने की हो, सभी का प्रदेश की राजनीति में बेहद अहम योगदान रहता है।

मुस्लिम:

यूपी की जब कभी बात की जाती है तो यह सवाल हमेशा आया है की मुस्लिम समाज का वोट किस तरफ जाएगा? यूपी को देखें तो मुस्लिम जनसंख्या के हिसाब से यह चौथा सबसे बड़ा प्रदेश है। यहां पर करीब 20 प्रतिशत के करीब मुस्लिम रहते हैं। सपा तथा बसपा एवं कांग्रेस के बीच में तो इसे एक अच्छे वोटबैंक के रूप में माना जाता है। 

बीते कुछ समय की बात करें तो बीजेपी के द्वारा भी मुस्लिमों समाज के एक बड़े वर्ग को अपने पाले में लाने की कोशिश की गई है। अगर हम लोकसभा के लिहाज से बात करें तो राज्य की 80 सीटों में से करीब 36 सीटें ऐसी हैं जहां पर मुस्लिम जनसंख्या 20 फीसदी के करीब है। इसी तरह यहां 6 सीटें ऐसी भी हैं जहां पर यह आबादी करीब 50 प्रतिशत से भी अधिक हैं। 

प्रदेश में अगर मुस्लिम बहुल सीटों की चर्चा करें तो इस लिस्ट में बागपत, गोंडा, अमेठी, लखीमपुर खीरी, अलीगढ़, लखनऊ, मऊ, सीतापुर, महाराजगंज तथा पीलीभीत शामिल हैं।

OBC:

उत्तर प्रदेश में ओबीसी की पॉलिटिक्स समझना कई बार बेहद कन्फ्यूजिंग हो जाती है। इसका कारण यह है कि यहां कई छोटी उप जातियों को भी ओबीसी के अंदर रक्षा जाता है तथा उन सभी की अपनी अहमियत भी है। पूरे यूपी की अगर बात की जाए तो यहां ओबीसी वर्ग लगभग 52 फीसदी के आसपास बैठता है। इसमें भी जो गैर यादव समुदाय वाला वोटबैंक हैं उसकी आबादी तकरीबन 43 प्रतिशत के आस पास है। 

इसके अलावा देखें तो पिछले कुछ समय में यूपी में भाजपा का गैर यादव वोट एक बड़ा वोटबैंक बन गया है। इनमे कुर्मी, कुशवाहा, सैनी, शाक्य, कुम्हार, जायसवाल , गुर्जर, लोध, निषाद तथा राजभर जैसी कई छोटी जातियां भी शामिल हैं। 
अब यह तो गैर यादव वोटर हुए जिन्हे सपा का कोर वोटबैंक माना जाता है। सपा के लिए यादव समाज को सबसे उपर रखा जाता है। प्रदेश में देखें तो 8 फीसदी के करीबी उनकी आबादी है तथा इटावा, एटा, मैनपुरी फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, बदायूं, कन्नौज, आजमगढ़ तथा फैजाबाद जैसे और कई जिलों में तो यह सभी बेहद निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

ब्राह्मण:

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज भी यहाँ की सियासत को अच्छे से तथा काफी करीबी से प्रभावित करता है। इनकी आबादी देखें तो यह जरूर 8 से 10 प्रतिशत तक के करीब ही रहती है, किंतु एक दर्जन से भी अधिक जिले ऐसे भी है जहां पर इनकी आबादी करीब 20 प्रतिशत से भी आगे निकल जाती है। 

वाराणसी, अमेठी, प्रयागराज, जौनपुर, महाराजगंज, गोरखपुर, कानपुर तथा संत करीब नगर ऐसे कुछ जिले हैं जहां पर चुनाव में हार तथा जीत का निर्णय ब्राह्मण वोट द्वारा तय होता हैं। बता दें की बहुजन समाज पार्टी तथा बीजेपी का सर्वाधिक फोकस इसी वर्ग को अपने पाले में करने का रहता है। अब तो कई बार अखिलेश यादव भी इस समाज को अपनी पार्टी के साथ जोड़ने के लिए काफी कवायद करते हुए दिख जाते हैं।


समझते हैं उत्तर प्रदेश के बड़े चुनावी मुद्दे:


उत्तर प्रदेश को देखें तो यह अपने आप में ही किसी एक देश से कम नहीं माना जाता है। यहां की जितनी आबादी है तथा जितनी समस्याएं यहां पर मौजूद हैं, उस लिहाज से अगर देखें तो यहां के हर मुद्दे पर एक अलग ही तरह की राजतनीति होती दिखाई देती है। यूपी में क्षेत्र बदलने के साथ ही यहां के मुद्दे भी बदल जाते हैं तथा उन पर सियासत भी अलग ही ढंग से होती दिखाई देती है। 

जिस प्रकार वर्तमान समय में नजर डालें तो प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के द्वारा महंगाई, बेरोजगारी को एक बेहद गर्म और बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की गई है। चुनाव में भी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को घेरने हेतु इन्ही दोनों ही मुद्दों पर विपक्ष द्वारा जमकर बरसा जाएगा। इसके साथ ही किसानों का मुद्दा देखें तो वह भी विपक्ष की लिस्ट में सबसे ऊपर ही रहने वाला है। तो साथ ही जातिगत जनगणना के द्वारा भी बीजेपी को घेरने की तैयारी विपक्षी पार्टी कर रही है। लेकिन इसको काउंटर करने के लिए बीजेपी के द्वारा भी यूपी में अपने कई मुद्दे सेट किए गए हैं। 

सबसे ज्यादा फोकस तो कानून व्यवस्था पर किया जाएगा। ऐसा नेरेटिव पिछले करीब 7 वर्षो में सेट किया जा चुका है कि यूपी की कानून व्यवस्था योगी राज में काफी सुधर गई है। अब यहां अपराधियों के मन में कार्यवाही का एक डर है। ऐसे में सत्ताधारी पार्टी इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में दिख रही है। इसके साथ बुलडोजर की कार्रवाई भी बीजेपी का एक बेहद चर्चित प्वाइंट रहने वाला है क्योंकि इसके द्वारा साल 2022 में भी सत्ता में भाजपा के द्वारा वापसी की गई थी।

यूपी में अगर बुंदेलखंड के क्षेत्र को देखें तो यहां जरूर अभी भी पानी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना हुआ है। इस क्षेत्र में पानी का संकट बिल्कुल नया नहीं है, बल्कि पिछले कुछ वर्षो में स्थिति को सुधारने हेतु यहां युद्ध स्तर पर भी काम किया गया है। लेकिन अभी भी यहां कई ऐसे गांव मौजूद हैं जहां पर या तो लोग गंदा पानी पीने को मजबूर है अथवा फिर उनके यहां पर अभी तक पानी की पहुंच ही नहीं है। यहां पर कुछ इलाके ऐसे भी देखे गए हैं जहां पर पाइपलाइन तो बिछ चुकी है,किंतु उनमें अभी भी पानी नहीं आ रहा है। ऐसे में इस एरिया में पानी का संकट भी एक बड़ा मुद्दा बनता दिखाई दे रहा है।

यूपी में कांग्रेस के साथ है सपा का गठबंधन:

दरअसल, उत्तर प्रदेश में देखें तो समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस और टीएमसी के बीच गठबंधन किया है। गठबन्धन के बाद यूपी में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को टोटल 17 सीट ही दी है। जिसमे वाराणसी के साथ-साथ अमेठी तथा रायबरेली की भी सीट शामिल है। अब समाजवादी पार्टी के द्वारा 1 सीट टीएमसी को भी दे दी गई है। इस तरह अगर देखें तो सपा के पास कुल मिलाकर अब 62 सीटें ही बचती है। कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टी के बीच यूपी में सीट शेयरिंग की वजह से काफी खींचतान भी देखने को मिला था।

बीजेपी और रालोद का है गठबंधन:

जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल को बीजेपी से गठबंधन के बाद उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में 2 सीट मिली हैं। जिसके बाद पार्टी के द्वारा दोनों लोकसभा सीटों के लिए अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा भी कर दी गई है। राष्ट्रीय लोक दल को गठबंधन के बाद लोकसभा में जो दो सीटें मिली हैं वो बागपत और बिजनौर की हैं। इससे पहले ऐसा माना जा रहा था की जब समाजवादी पार्टी के साथ उनके गठबंधन की बात हो रही थी तब उन्हें प्रदेश में करीब सात सीटें ऑफर की गई थीं।
बता दें की बिजनौर से जयंत ने अपने प्रत्याशी के रूप में चंदन चौहान को लोकसभा का टिकट दिया है तो वहीं दूसरी ओर बागपत से राजकुमार सांगवान को आरएलडी का लोकसभा उम्मीदवार बनाया गया है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का राजनीतिक समीकरण:

बीते चुनाव में बीजेपी के द्वारा पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुल 23 सीटें जीती गई थी तथा सपा और बसपा ने वहां चार-चार सीटें ही हासिल की थी। बसपा ने यहां सहारनपुर, नगीना,अमरोहा और बिजनौर की सीटें जीती थी तो वहीं दूसरी तरफ सपा ने संभल, रामपुर, मैनपुरी और मुरादाबाद की सीटें हासिल की। बता दें कि, मैनपुरी की सीट का प्रतिनिधित्व मुलायम सिंह यादव किया करते थे, जहां वर्तमान में उनकी बहु डिंपल यादव सांसद हैं। इस बार भी डिंपल यादव को पार्टी ने इसी सीट से चुनावी मैदान में उतारा है।

पूर्वी यूपी में बसपा है सपा से ज्यादा मजबूत:

उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में करीब 30 सीटें हैं तथा वाराणसी की लोकसभा सीट भी इसी क्षेत्र में पड़ती है। वर्तमान में इस सीट का प्रतिनिधित्व पीएम नरेंद्र मोदी जी करते हैं। बहुजन समाज पार्टी ने यूपी के इस इलाके में पिछले चुनाव में कुल पांच सीटें हासिल की थी वहीं सपा को सिर्फ एक सीट ही मिली थी। अपना दल ने भी यहां दो सीटों पर जीत हासिल की थी।

देखते हैं साल 2014 और 2019 में कैसा रहा बीजेपी का प्रदर्शन:

दरअसल साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के द्वारा यूपी की कुल 80 सीटो में से 73 सीटो पर जीत दर्ज की गई थीं। बीजेपी 71 तथा अनुप्रिया पटेल की अपना दल ने भी दो सीटों पर अपना कब्जा जमाया था। किंतु साल 2019 में हुए चुनाव में सपा तथा बसपा एवं आरएलडी के गठबंधन के चलते ही बीजेपी का समीकरण थोड़ा गड़बड़ा गया था। ऐसे में बीजेपी गठबंधन ने राज्य की कुल 80 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 64 सीटें ही जीत सकी थीं। इस तरह से देखें तो उसने वर्ष 2014 की जीती हुई अपनी 9 सीटें साल 2019 में गंवा दी थी।

बता दें कि साल 2019 के हुए आम चुनाव में भाजपा ने जहा 80 लोकसभा सीटों में से 62 सीटें जीती थी वहीं राजद यानि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दल अर्थात अपना दल (सोनेलाल) नेंभी दो सीटों पर अपनी जीत दर्ज की थी। वहीं दूरी तरफ कांग्रेस राज्य में एकमात्र रायबरेली की सीट पर ही जीत हासिल करने में सफल हुई थी। जबकि बसपा यानि बहुजन समाज पार्टी ने कुल 10 तथा अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के द्वारा 5 सीटों पर जीत दर्ज की गई थी। राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) ने तो साल 2019 के आम चुनाव में अपना खाता भी नहीं खोल सका था। 

साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बिजनौर, संभल, अमरोहा, मुरादाबाद, घोसी, राययबरेली, गाजीपुर, सहारनपुर, मैनपुरी, जौनपुर, लालगंज, अंबेडकर नगर, आजमगढ़, रामपुर, श्रावस्ती तथा नगीना इन 16 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था।
इन 16 सीटों में से बसपा को 10 तथा सपा को 5 एवं 1 पर कांग्रेस ने अपनी जीत दर्ज की थी। वहीं आजमगढ़ तथा रामपुर में हुए उपचुनाव में BJP ने जीत हासिल कर ली। इस तरह से प्रदेश में शेष बची 14 सीटो पर अब बीजेपी का फोकस रहने वाला है।

अंततः देखें तो जयंत चौधरी के दादा तथा किसानों के नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को सरकार द्वारा मरणोपरांत भारत रत्न देने के हालिया घोषणा ने भी स्पष्ट रूप से इस समीकरण को अब और अधिक मजबूती प्रदान की है। तो वहीं विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A.भी प्रदेश में खोई हुई अपनी जमान तलाशने में लगा हुआ है। सपा तथा कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप होने के बाद आखिरकार अब दोनों दलों के बीच सारे समझौते हो गए हैं। वहीं बीजेपी भी अपने कामों की याद दिलाते हुए तथा मोदी को देश का निर्माणकर्ता बताते हुए पूरी तरह से मैदान में उतर चुकी है।

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