वक्फ संशोधन अधिनियम पर, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला!: बरकरार रहेगा वक्फ कानून लेकिन इन 2 धाराओं पर लगाई रोक वही ये 2 अहम शर्त भी की तय..जानें सुप्रीम आदेश की 5 बड़ी बातें?
वक्फ संशोधन अधिनियम पर, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला!

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने पूरे कानून पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया, लेकिन सरकार को बड़ा झटका देते हुए कई विवादित प्रावधानों पर तत्काल रोक लगा दी। इसका असर सीधा वक्फ बोर्डों की संरचना, संपत्ति प्रबंधन और सदस्यता पर पड़ेगा।

कोर्ट ने यह दिया संदेश :

आपको बता दें कि CJI बी.आर. गवई और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि -

●कानून पूरी तरह से वैध है, लेकिन कुछ धाराएं संविधान और अधिकारों के खिलाफ हैं।
●वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति सीमित रहेगी।
●CEO और महत्वपूर्ण पदों पर जहां तक संभव हो, मुस्लिम समुदाय से ही लोगों की नियुक्ति होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की 5 बड़ी बातें :

गौरतलब है कि आज सुप्रीम कोर्ट के आदेश की 5 बड़ी बातें निम्नलिखित है।

1. गैर-मुस्लिम सदस्यों पर लगाम:
●केंद्रीय वक्फ बोर्ड (20 सदस्य) में अधिकतम 4 गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।
●राज्य वक्फ बोर्ड (11 सदस्य) में अधिकतम 3 गैर-मुस्लिम ही रहेंगे।
●पहले ऐसी कोई सीमा तय नहीं थी।

2. CEO की शर्त:
●राज्य वक्फ बोर्ड का CEO (जो बोर्ड का पदेन सचिव भी होता है) मुस्लिम समुदाय से ही होना चाहिए।
●कोर्ट ने कहा, "जहां तक संभव हो, सरकारें मुस्लिम उम्मीदवार को ही प्राथमिकता दें।"

3. 5 साल मुसलमान होने की शर्त रद्द:
सरकार ने प्रावधान रखा था कि वक्फ बनाने वाला व्यक्ति कम से कम 5 साल से मुसलमान होना चाहिए। कोर्ट ने इस शर्त पर रोक लगाई और कहा कि यह मनमाने ढंग से इस्तेमाल हो सकता है और नियम बनने तक लागू नहीं होगा।

4. संपत्ति विवाद में कलेक्टर का पावर खत्म:
आपको बता दें कि नई धारा 3C के तहत सरकारी अधिकारियों को वक्फ संपत्ति का मालिकाना तय करने का अधिकार दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे सत्ता के विभाजन के खिलाफ बताते हुए रोक लगा दी। अब मालिकाना हक केवल वक्फ ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट की प्रक्रिया से ही तय होगा।

5. रजिस्ट्रेशन अनिवार्य रहेगा:
गौरतलब है कि कोर्ट ने साफ किया कि वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन जरूरी रहेगा। यह नियम पहले भी 1995 और 2013 के कानूनों में था, इसलिए इसमें दखल देने से मना कर दिया।

ओवैसी समेत दिग्गज वकीलों की दलीलें :

आपको बता दें कि इस मामले में AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी समेत 5 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने पैरवी की। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखा। तीन दिन की लंबी सुनवाई (20 से 22 मई) के बाद कोर्ट ने 22 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे अब सुनाया गया।

फैसला क्यों अहम है?

गौरतलब है कि सरकार का इरादा था कि वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की बड़ी हिस्सेदारी दी जाए और संपत्ति पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाया जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि "वक्फ की संपत्तियां केवल ट्रिब्यूनल और न्यायिक प्रक्रिया से तय होंगी, न कि सरकारी अफसरों के आदेश से।" साथ ही, बोर्ड का स्वरूप मुस्लिम बहुल ही रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार वक्फ कानून बरकरार रहेगा, यानी पूरी तरह खत्म नहीं होगा। लेकिन विवादित प्रावधानों को रोककर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की मंशा पर ब्रेक लगा दिया है। आने वाले दिनों में इसका असर देशभर के वक्फ बोर्डों और लाखों वक्फ संपत्तियों पर दिखेगा। यह फैसला मुस्लिम समाज, सरकार और संपत्ति विवादों से जुड़े लाखों मामलों के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है।

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