दोहा : मिडिल ईस्ट में सियासी पारा इस वक्त चरम पर है। कतर में सोमवार को बुलाई गई इमरजेंसी इस्लामिक समिट ने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया है। वजह है इजरायल के कतर समेत 6 इस्लामिक देशों पर ताबड़तोड़ हमले जिसमें कतर में हमास नेताओं पर हुआ मिसाइल अटैक भी शामिल है। इस बैठक में अरब और इस्लामी देशों ने साफ कर दिया कि अब वे केवल बयानबाज़ी से आगे बढ़कर ठोस सैन्य रणनीति बनाएंगे। सबसे बड़ा प्रस्ताव आया कि- इस्लामिक देशों का NATO बनाने का। यानी अब हालात ऐसे बन सकते हैं कि अगर इजरायल ने एक मुस्लिम देश पर हमला किया, तो सभी मुस्लिम देशों की फौज एकजुट होकर जवाब देगी।
क्यों बुलाई गई थी यह समिट?
आपको बता दें कि बीते हफ्ते 8 से 10 सितंबर के बीच इजरायल ने 72 घंटे में गाजा, सीरिया, लेबनान, यमन, ट्यूनीशिया और कतर में हमले किए। खासकर दोहा (कतर) में हमास नेताओं और उनके परिवारों को निशाना बनाया गया। कतर के अमीर शेख तमीम ने कहा कि “यह दिखाता है कि इजरायल किसी अंतरराष्ट्रीय नियम की परवाह नहीं करता। अब हमें सामूहिक सुरक्षा तंत्र खड़ा करना होगा।”
इस्लामिक NATO कैसा होगा? और इसके परिणाम :
गौरतलब है कि खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के 6 देश सऊदी अरब, कतर, कुवैत, बहरीन, ओमान और UAE पहले से ही सुरक्षा समझौते में जुड़े हैं। अब इसमें दूसरे मुस्लिम देश भी शामिल हो सकते हैं। प्रस्ताव ये है कि NATO की तर्ज पर एक संयुक्त फौज बने, जिसमें अगर एक देश पर हमला हो, तो सभी उस पर हमला मानकर युद्ध में उतरें। कतर के विदेश मंत्रालय ने बताया कि “दोहा में इस्लामिक यूनिफाइड कमांड की बैठक जल्द होगी।” परिणामस्वरूप एक पर हमला सबपर हमला माना जा सकता है जिससे पूरा मिडिल ईस्ट युद्ध मे जा सकता है।
NATO क्या है और क्यों बना मिसाल?
आपको बता दें कि NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को ब्रसेल्स में हुई थी। यह यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों का गठबंधन है, जिसका मकसद था सोवियत संघ की ताकत को रोकना। इसमें आज 33 देश सदस्य हैं। इसका सबसे अहम नियम है आर्टिकल 5, जिसके तहत किसी एक सदस्य देश पर हमला, सभी पर हमला माना जाता है।
क्या मुस्लिम देश NATO जैसा संगठन बना पाएंगे?
गौरतलब है कि चुनौती यह है कि मुस्लिम देशों के बीच कई आपसी मतभेद हैं जैसे ईरान बनाम सऊदी अरब, तुर्की बनाम UAE जैसे टकराव पहले से मौजूद हैं। लेकिन इजरायल के हमलों ने एक कॉमन दुश्मन की तस्वीर पेश की है। यही वजह है कि दोहा समिट में साझा फौज बनाने पर जोर दिया गया। अगर ऐसा हुआ, तो यह दुनिया के पावर बैलेंस को बदल देगा और मध्य-पूर्व में तीसरे महायुद्ध जैसी स्थिति खड़ी कर सकता है।
कतर समिट से निकला यह संदेश साफ है कि अब इजरायल के खिलाफ मुस्लिम दुनिया सिर्फ बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रहेगी। अगर "इस्लामिक NATO" बनता है, तो यह 21वीं सदी का सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन होगा। सवाल सिर्फ इतना है कि क्या अरब और मुस्लिम देश अपने मतभेद भुलाकर एक साथ आ पाएंगे? अगला कदम होगा दोहा में इस्लामिक यूनिफाइड कमांड की बैठक, जहां तय होगा कि क्या सचमुच “इस्लामिक NATO” का जन्म होने वाला है या यह चर्चा सिर्फ बयानबाजी तक सीमित रह जायेगी।