उपराष्ट्रपति बने सीपी राधाकृष्णन: जानें कितना अहम है यह संवैधानिक पद और क्या हैं वेतन-भत्ते पेंशन जैसी सुविधाएं?
उपराष्ट्रपति बने सीपी राधाकृष्णन

नई दिल्ली। सीपी राधाकृष्णन देश के नए उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो गए हैं। उन्होंने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को हराया। राधाकृष्णन को 452 प्रथम वरीयता मत मिले, जबकि रेड्डी को 300 वोट हासिल हुए। इसके साथ ही वे भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने वाले हैं।
जगदीप धनखड़ के जुलाई में इस्तीफे के बाद यह पद खाली था। अब सवाल उठता है कि उपराष्ट्रपति का पद कितना महत्वपूर्ण है, इसके साथ कौन-सी जिम्मेदारियां जुड़ी हैं और उन्हें क्या सुविधाएं मिलती हैं? आइए विस्तार से जानते हैं—

उपराष्ट्रपति का संवैधानिक महत्व
भारत का उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है। उनका कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है, लेकिन वे तब तक पद पर बने रहते हैं जब तक उनका उत्तराधिकारी शपथ नहीं ले लेता।
संविधान में यह स्पष्ट नहीं है कि उपराष्ट्रपति के असामयिक निधन या इस्तीफे की स्थिति में उनके कार्यभार को कौन संभालेगा।

उपराष्ट्रपति की जिम्मेदारियां और शक्तियां:

  1. राज्यसभा के पदेन सभापति
    उपराष्ट्रपति राज्यसभा के एक्स-ऑफिसियो चेयरमैन यानी पदेन सभापति होते हैं।
    वे सदन में संविधान और नियमों की व्याख्या के अंतिम प्राधिकारी हैं।
    उनके फैसले बाध्यकारी मिसाल बनते हैं।

  2. दल-बदल कानून पर निर्णय
    वे तय करते हैं कि राज्यसभा का कोई सदस्य दल-बदल कानून के तहत अयोग्य ठहराया जाए या नहीं।

  3. कार्यवाही और अनुशासन
    प्रश्नकाल और चर्चा को व्यवस्थित करना।
    विवाद की स्थिति में सदन की मर्यादा बनाए रखना।
    सांसदों की उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास करना।

  4. समितियों का गठन और नामांकन
    संसदीय समितियों में सदस्यों को नामित करने का अधिकार।
    समितियों के अध्यक्ष नियुक्त करना और दिशा-निर्देश जारी करना।
    हज समिति, आईसीपीएस जैसी संस्थाओं में सदस्यों का नामांकन।
    प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष चयन में भूमिका।

कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर भूमिका
अगर राष्ट्रपति का पद मृत्यु, इस्तीफा या बर्खास्तगी से खाली हो जाए तो उपराष्ट्रपति कार्यकारी राष्ट्रपति बनते हैं।
वे इस जिम्मेदारी को अधिकतम छह महीने तक निभा सकते हैं।
राष्ट्रपति की विदेश यात्रा या अस्वस्थता के दौरान भी उपराष्ट्रपति अस्थायी तौर पर राष्ट्रपति का दायित्व निभाते हैं।
इस अवधि में उन्हें राष्ट्रपति की सारी शक्तियां और वेतन मिलते हैं, न कि राज्यसभा सभापति के भत्ते।

वेतन और भत्ते:
उपराष्ट्रपति को अलग से वेतन नहीं मिलता।
उन्हें वेतन राज्यसभा के सभापति के तौर पर मिलता है, जो लगभग चार लाख रुपये मासिक है।
अगर वे कार्यवाहक राष्ट्रपति बनते हैं तो उन्हें राष्ट्रपति का वेतन और भत्ते मिलते हैं।

सुविधाएं और पेंशन:
न्यूज एजेंसी रिपोर्ट्स के मुताबिक, उपराष्ट्रपति को कई सुविधाएं दी जाती हैं—

  • मुफ्त सरकारी आवास (टाइप-8 बंगला)।

  • मुफ्त चिकित्सा सेवा।

  • ट्रेन और हवाई यात्रा के लिए भत्ता।

  • सुरक्षा व्यवस्था, लैंडलाइन-मोबाइल सेवा।

  • निजी सचिव, अतिरिक्त सचिव, निजी सहायक, डॉक्टर, नर्सिंग अफसर और चार अटेंडेंट का स्टाफ।

सेवानिवृत्ति के बाद:
हर महीने दो लाख रुपये पेंशन।
टाइप-8 सरकारी आवास और स्टाफ सपोर्ट।
निधन की स्थिति में पत्नी को आजीवन टाइप-7 घर।

भारत का उपराष्ट्रपति केवल औपचारिक पद नहीं है, बल्कि संसदीय लोकतंत्र में संतुलन और अनुशासन बनाए रखने का स्तंभ है। राज्यसभा के सभापति के तौर पर उनके फैसले न केवल संसदीय कार्यवाही को दिशा देते हैं, बल्कि संवैधानिक लोकतंत्र की नींव को भी मजबूत करते हैं।

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